Tuesday, 26 November 2013

तोरे नैना बड़े दगाबाज रे

- भ्रमित नायक : २०१० का दशक-
(समापन भाग)
इस दशक की शुरुआत में पूरी दुनिया को आर्थिक मंदी से गुजरना पड़ा। पैसा वापस जाने लगा, नए पैसे ने आना कम कर दिया। विदेशी-प्रवासी-विलासी दूल्हे धोखेबाज निकलने लगे। कई सपने टूटे, नायक आसमान से जमीन पर गिरने लगे, लेकिन जमीन बदल चुकी थी। देश वैसा नहीं था, जैसा पहले सोचा गया था। सरकार और सरकार के नायक भ्रमित थे कि किधर जाएं। फिल्मों में तो प्यार हुक्का बार हो गया था। सुन्दर कन्या भ्रमित हो गई थी - गा रही थी कि मेरे फोटो को सीने से यार चिपकाले सैंया फेविकॉल से। ऐसा नहीं है कि यह बेतुका गाना फ्लॉप हो गया हो, इसे लोगों ने खूब पसंद किया। लोग अलग तरह की आवाज और धुन सुनकर मस्त थे, उन्हें अर्थ से ज्यादा मतलब नहीं रहा। दिखावा पूरी तरह से हावी हो गया। समलैंगिक समूह रैली निकालने का साहस करने लगे। फिल्मों के लिए समलैंगिकता एक प्रिय विषय बन गई। कुछ लोगों को अपने लिंग को लेकर भी भ्रम होने लगा। इस दशक में फिल्मों ने इस विकल्प को और मजबूत करना शुरू कर दिया कि जरूरी नहीं कि नायक किसी नायिका की ही तलाश करे, वह किसी सह-नायक को भी अपनी नायिका मान सकता है, उसके साथ जिंदगी बिता सकता है। ऐसा नहीं है कि केवल फिल्में ही भ्रम का शिकार हों, देश में भी नाना प्रकार के भ्रम चलन में हैं। नेता कितने विश्वसनीय हैं, इसे लेकर भ्रम है। घोटाले हुए हैं, तो कितना नुकसान हुआ है, इसे लेकर भी भ्रम है। हमारे देश का पैसा हमारा है या नहीं, इसे लेकर भी भ्रम है। पैसा जेब में कब तक रहेगा, इसे लेकर भ्रम है। बीवी या प्रेमिका निष्ठावान है या नहीं, इसे लेकर भ्रम है। केवल देश में ही नहीं, उसकी फिल्मों में भी विचारों की मंदी का दौर है। विचार और नैतिकता का ऐसा अकाल पड़ा कि अब पोर्न उद्योग से भी कलाकार लेने में संकोच नहीं रहा। अच्छाई और बुराई के बीच भ्रम को मानो स्वीकार कर लिया गया है। पिछले दशक में एक प्रवासी से विवाह करके विदेश चली गई स्टार अभिनेत्री माधुरी दीक्षित वापस लौट आई। भ्रम खड़ा हो गया कि लौटना था, तो गए क्यों थे? संशय बरकरार है कि यह लौटना सफल होगा या नहीं। हो सकता है, माधुरी एक अपवाद मात्र हों, क्योंकि फिलहाल ज्यादातर लोग देश से भाग जाना चाहते हैं। जो भी सक्षम है, भाग रहा है कि अब इस देश में रखा क्या है? देश के सच से भागते विदेशी निवेशकों, कंपनियों, सरकारों, नेताओं के लिए यह गाना मुफीद है ...कल मिले ये हमको भूल गए आज रे, तोरे नैना बड़े दगाबाज रे... 
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-  ज्ञानेश उपाध्याय 
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संदर्भ ग्रंथ : 1 : हीरो - पहला और दूसरा खंड - लेखक अशोक राज 
2 : वर्तमान साहित्य, सिनेमा विशेषांक - वर्ष 2002 
3 : बॉलीवुड - ए हिस्ट्री, लेखक : मिहिर बोस 
4 : आइडोलॉजी ऑफ हिन्दी फिल्म , लेखक : एम. माधव प्रसाद

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