Wednesday 25 September, 2013


एक साल भर पुराना चित्र मित्र अनुज कोसलेंद्र जी के साथ

आधार निराधार?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आधार कार्ड की अनिवार्यता को खत्म करके जहां करोड़ों "आधार-हीन" लोगों को राहत का अहसास कराया है, वहीं आधार कार्ड निर्माण की महत्वाकांक्षी योजना पर प्रश्नचिन्ह भी लगा दिया है। सरकार की कई एजेंसियां, विशेष रूप से बैंक और रसोई गैस एजेंसियो ने मिलकर ऎसा माहौल बना दिया है, मानो यदि आधार कार्ड नहीं होगा, तो भारतीय नागरिक होने के बावजूद कोई सब्सिडी या सरकारी सुविधा नहीं मिलेगी। मानो कार्ड नहीं, तो फिर आप भारतीय नागरिक भी नहीं! विगत लोकसभा चुनाव से पहले जल्दबाजी में केन्द्र सरकार ने फरवरी 2009 में आधार कार्ड योजना की शुरूआत की थी। आधार को जो जरूरी कानूनी व प्रामाणिक आधार चाहिए था, वह संसद के जरिये नहीं मिल सका। परिणाम यह हुआ कि भारत में रह रहे अवैध लोगों ने भी पहली फुर्सत में आधार कार्ड बनवा लिए। आधार कार्ड तो तभी बनना चाहिए था, जब किसी की राष्ट्रीयता पूरी तरह से पुख्ता होती। आधार में सबसे बड़ी कमी यह रही कि जिसके पास भी भारतीय होने का कोई पहचानपत्र है, जिसके पास भी कोई पता-ठिकाना होने का प्रमाण है, उसका आधार बन गया। आधार कार्ड बनाने से पहले कोई पुख्ता जांच-पड़ताल नहीं की गई। आधार कार्ड के निर्माण की प्रक्रिया इतनी लचीली रही कि अवैध लोग भी कार्ड बनवाने में सफल हो गए। कार्ड बन गया, तो मानो भारत की नागरिकता मिल गई, नागरिकता मिल गई, तो हर चीज व सरकारी सेवा में सब्सिडी लेने का दावा भी मजबूत हो गया। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से देश में जो भ्रम की स्थिति बढ़ी है, उसे केन्द्र सरकार ही दूर कर सकती है, लेकिन अफसोस की बात है - सरकार और सरकार की एजेंसियां ही लोगों को आधार के मामले में लगातार भ्रमित कर रही हैं। स्वयं केन्द्र सरकार ने ही संसद में कहा था कि उसने अपनी किसी भी योजना का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं बनाया है। तो फिर ये बैंक और गैस एजेंसियां कौन हैं, जो आधार नंबर मांग रही हैं? किसके कहने पर मांग रही हैं? वह कौन है, जो आधार कार्ड के लिए अखबारों में भ्रामक विज्ञापन छपवा रहा है? आधार कार्ड के लिए 55 हजार करोड़ रूपए फूंक देने के बावजूद यदि ऎसी शर्मनाक भ्रामक स्थिति है, तो यह निस्संदेह, केन्द्र सरकार की विफलता है। आज जरूरी है - सरकार आधार के लिए मूलभूत वैध आधार बनाए, यदि वह ऎसा नहीं करेगी, तो लोग यही मानने लगेंगे कि यह योजना हजारों करोड़ रूपए की बंदरबांट के लिए ही बनी है।