Thursday 15 May, 2008

शक्ति हमें देना दाता

जयपुर मे कर्फू लगाकर ठीक किया गया, लेकिन यह तरीका ज्यादा कारगर नहीं है। स्थितियों को सामान्य बनाने के प्रयत्न होने चाहिए। सतर्कता ठीक है, लेकिन जनजीवन बाधित नहीं होना चाहिए। प्रशंसा करें या आलोचना? बुधवार को लगभग आधा दर्जन से ज्यादा वीआईपी नेताओं ने मौका मुआयना किया है। जब वल्र्ड ट्रेड सेंटर विध्वंस की घटना हुई थी, तब जॉर्ज बुश ने कोई मौका मुआयना नहीं किया था, लेकिन तब भी बचे हुए तमाम आतंकी पकड़े गए थे और उसके बाद से आज तक आतंकियों में इतनी हिम्मत नहीं कि अमेरिका में पटाखे भी फोड़ सकें। खैर, हमारे यहां नेताओं को मौका मुआयना करना कुछ ज्यादा ही अ\'छा लगता है, लेकिन आम तौर पर मौका मुआयना राजनीतिक मकसद से संपन्न किया जाता है। इतने नेताओं को मौका मुआयना करवाने वाले आला अधिकारी शायद ही यह बता पाएंगे कि नेताओं के भ्रमण से उन्हें क्या फायदे हुए हैं? जांच-पड़ताल में नेताओं के भ्रमण से क्या प्रगति आई है? नेताओं ने जांच अधिकारियों को कौन-सा गुर सिखाया है? हमारे नेता अपना काम मौके पर गए बिना भी बेहतर ढंग से कर सकते हैं।
दूसरी अफसोस की बात यह कि इन विस्फोटों में राजनीति के भी मौके तलाशे गए हैं। जनता ऐसी राजनीति को अब समझने लगी है, उसे पता है, सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की, आतंकवाद के सामने सभी लाचार हो जाते हैं। गरीबों को लाठियों से खदेड़ने वाली पुलिस के हाथ-पांव आतंकी हमलों के समय फूल जाते हैं। वक्त की मांग है, आतंकवाद के खिलाफ विशेष नीति, विशेष बल और विशेष कानून लाया जाए।

आज लाल है गुलाबी


अविश्वसनीय, अकल्पनीय,... आज ऐसे ही कुछ शब्दों की जरूरत है, लेकिन ऐसे शब्द कम पड़ रहे हैं। हमारे जयपुर में जो हुआ है, उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। मंगलवार, 13 मई 2008 पुराने शहर के स्वçर्णम इतिहास के सबसे काले दिन के रूप में दर्ज हो जाएगा। मंगलवार की शुरुआत ही आंधी-बारिश के साथ हुई थी और शाम ढलते-ढलते जो नजारे बड़ी चौपड़, त्रिपोलिया, सांगानेरी गेट, सुभाष चौक, चांदपोल में दिखे, उसे देख किसी की भी आंखें नम हो जातीं। वे इलाके खून से लथपथ हो गए, जिन इलाकों की रौनक पूरी दुनिया में मशहूर थी। यह कहते हुए हमारा मन भारी हो जाता है कि जयपुर अब पहले जैसा सुरक्षित नहीं रहा। जिस आजादी के साथ यहां पर्यटक घूमा करते थे, लोग चौपड़ों पर घंटों गप्प लड़ाते थे, बाजारों में टहला करते थे, उस पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ेगा। जयपुर घायल है, दुखी है, लेकिन यह समय हाथ पर हाथ रखकर बैठने या खून देखकर घबराने का नहीं है। यह समय हार मानकर घरों में çछप जाने का नहीं है, यह समय जोर-जोर से रोने या शोक मनाने का नहीं है, यह समय अफवाहें फैलाने का नहीं है, यह समय झूठ पर विश्वास करने का नहीं है। यह समय तो अपने शहर पर हुए हमले का मुंहतोड़ जवाब देने का है। यह समय सचाइयों को परखने का है। यह समय सावधान हो जाने का है। यह समय एक दूसरे को जानने और समझने का है। यह समय एकजुट होने का है। ये विस्फोट बड़ी चुनौती हैं और जयपुर इस चुनौती का सामना करने में पूर्ण सक्षम है। जिन आतंकियों ने जयपुर के चमकदार माथे पर पत्थर मारा है, वे किसी भी हाल में बचकर नहीं जाने चाहिए। सूचना है कि खुफिया एजेंसियों ने जयपुर में हमले के बारे में पहले ही आगाह कर दिया था, लेकिन पुलिस का खुफिया महकमा और पुलिस पूरी तरह से नाकाम रही। जयपुर पुलिस के लिए यह हमला शर्मनाक है। पुलिस के हालिया इतिहास को याद करना गलत नहीं होगा। एक थानेदार, एक एसआई, एक एएसआई को अवैध वसूली करते रंगे हाथ पकड़ा गया था। क्या यही है सुरक्षित जयपुर की पुलिस? अगर जयपुर की पुलिस वाकई काबिल है, तो यह आगामी चार-पांच दिन में साबित हो जाना चाहिए। यह विस्फोट आतंकी संगठनों के स्लीपिंग सेल का काम हो सकता है। पाकिस्तानी मूल वाले आतंकी संगठन लश्कर-ए-ताइबा और बांग्लादेशी मूल वाले हूजी पर शक जताया जा रहा है, लेकिन केवल शक जताने से कुछ नहीं होगा। पिछले साल 11 अक्टूबर को अजमेर में ख्वाजा की दरगाह पर विस्फोट हुए थे, उनमें भी आतंकियों का पता नहीं चला था, लेकिन जयपुर में ऐसा नहीं होना चाहिए। राज्य सरकार से लेकर केन्द्र सरकार तक सक्रिय हो गई है, पूरे देश में अलर्ट घोषित हो गया है। देश के एक सबसे शांत शहर पर हमला हुआ है, आतंकियों के काले इरादे बिल्कुल जाहिर हैं। वे भारत में अमन-चैन के मशहूर इलाकों को भी नफरत और हिंसा की आग में झोंकना चाहते हैं, उन्हें नाकाम करना जरूरी है। पुलिस को सावधानी और संयम का भी व्यवहार करना होगा, ताकि लोगों में घबराहट न फैले। मंगलवार को विस्फोट के बाद शहर में अघोषित कफ्यूü जैसा हाल है, शहर में माहौल को जल्द से जल्द सामान्य बनाना होगा। आज शोक सभाओं की नहीं, बल्कि सतर्कता सभाओं की जरूरत है, इसी में हमारी जीत है और हम जीतेंगे।

पत्रकार होने का धर्म

यह मेरे इस शहर जयपुर के लिए पहला बड़ा हादसा था, यों तो मैंने बहुत शहर dekhe हैं मगर जयपुर दिखने में वाकई अजब-गजब है। लोगों के बारे में मेरी राय अभी प्रशंसनीय नहीं बन पाई है, लेकिन शहर के बारे में समग्रता में मेरी राय दुरुस्त है। मैं डेली न्यूज के संपादकीय पेज का प्रभारी हूं, मैं पेज लगाकर घर के लिए रवाना हो चुका था, लेकिन रास्ते से ही लौट आया, क्योंकि जयपुर में विस्फोट की खबर लग चुकी थी, एक फोन घर किया, सलामती की खबर ली और दफ्तर में मोर्चे पर लग गया। पहले संपादकीय लिखा और फिर मन न माना, तो एक लेख। मुझे उम्मीद थी, शहर के दोनों नामी अखबार संपादकीय पेजों को विस्फोट जनित विचारों से रंग देंगे। ये दोनों अखबार शहर की सेवा का घमंड पाला करते हैं, लेकिन अफसोस, 14 मई को दोनों ही अखबारों के संपादकीय पेज पर विस्फोट की चिंता की एक लकीर तक नहीं थी। पता नहीं, ऐसे मौकों पर कई पत्रकार भाइयों को नींद कैसे आ जाती है? आश्चर्य होता है। जो समय पर सो जाए, उसके बाद में जागने का क्या मतलब है? उसमें और एक आम आदमी में क्या फर्क है? 11 अक्टूबर को जब अजमेर में ख्वाजा के दरबार में विस्फोट हुआ था, तब भी मुझे नींद नहीं आई थी, देर रात तक दफ्तर में रहा था। तब भी तत्काल टिप्पणी करने वालों में डेली न्यूज ही था। हां, एक और बात, 11 अक्टूबर को वरिष्ठ सम्मानित पत्रकार राजीव तिवारी के साथ मेरा मिलना तय था, लेकिन मैं अजमेर कांड के कारण वह मुलाकात अधूरी रह गई थी, आज मेरा सौभाग्य है, वह मेरे संपादक हैं। 13 मई को जब मैंने लिखा, आज लाल है गुलाबी, तब राजीव जी ने मेरी ओर ऐसी अभिभूत नजरों से देखा, जिसे मैं भूल नहीं सकता। पत्रकारिता आगे भी जारी रहेगी, लेकिन इस शहर का यह हादसा और उसके अनुभव हमेशा याद रहेंगे।