Sunday, 27 July 2008

बेखौफ सफर पर दहशतगर्द

....हैदराबाद, जयपुर, बेंगलुरू के बाद अब अहमदाबाद में वो बेखौफ अपनी हैवानियत को अंजाम दे गया, आखिर क्यों उसकी गर्दन हमारी पकड़ से दूर है?


बेंगलुरू में शुक्रवार को आठ बम विस्फोट हुए थे और अब शनिवार को अहमदाबाद में 17 बम धमाके हुए हैं। लगातार दो दिन आतंकियों ने भारत में धमाके किए हैं, तो लगता है, हैवान आतंकियों को कोहराम मचाने की जल्दी है। पहली नजर में यह पुलिस और उसके खुफिया तंत्र की विफलता है और कुछ व्यापकता में जाएं, तो यह हम सबकी विफलता है। उस तबके की विफलता है, जो अपनी खुशियों में खोया हुआ है। जो होटलों में ऐय्याशी के प्रति चिंतित है, जिसने देश के बारे में सोचना छोड़ दिया है। हर विस्फोट हमें थोड़ी देर के लिए जगाता है और हम फिर कुंभकर्ण की तरह सो जाते हैं, जबकि हमें अपने नेताओं की नाक में दम कर देना चाहिए। ये नेता ऐसी-ऐसी कारगुजारियों-कारस्तानियों में जुटे हैं कि किसी भी भले आदमी का सिर शर्म से झुक सकता है। जो राजनेता समाज को सुरक्षा नहीं दे सकता, उसे नेतागिरी छोड़ देनी चाहिए। देश में आतंकवाद के खिलाफ व्यापक बहस होनी चाहिए। हमें विचार करना चाहिए कि आतंकवाद का सामना कैसे-कैसे किया जा सकता है। इसके लिए अगर संसद का विशेष सत्र भी बुला लिया जाए, तो इससे बेहतर और कुछ नहीं होगा।---

शर्म करो सरकार

जो एटमिक डील को साकार करने में दिन रात एक किए हुए हैं, लेकिन उन्हें आतंकियों को नेस्तनाबूत करने की कोई फिक्र नहीं है। उन्होंने कानून तक लचीले बना रखे हैं। आतंकवाद के खिलाफ हमारी केन्द्र सरकार का प्रदर्शन तो शर्मनाक है। जिस आतंकी को सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुना दी, उसके प्रति जिस सरकार में हमदर्दी है, वह भला आतंकवाद का खात्मा कैसे करेगी? एक सरकार आतंकियों को कांधार छोड़ आती है, तो दूसरी सरकार आतंकियों को चिकन-बिरयानी खिलाती है, तो भला इस देश में आतंकी नहीं पलेंगे, तो कौन पलेगा? टाडा और पोटा जैसे कानून रद्द कर दिए गए, जो मूल समस्या थी, उसका समाधान नहीं किया गया। गड़बड़ी कानून में नहीं, हमारे तंत्र में है, जो कानून का ढंग से पालन करवाने मे नाकाम रहता है। तंत्र वह है, जो राजनेताओं की जी-हुजूरी में दिन रात एक किए हुए है। अपनी-अपनी पसंद के अफसर बिठाए जाते हैं, अपनी-अपनी पसंद की अदालतें तक बिठाई जाती हैं, तो भला कौन रोकेगा आतंकवाद को? शर्म आनी चाहिए सत्ता में बैठे लोगों को। केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटील का आतंकवाद और नक्सलवाद के प्रति रवैया बेहद लचर रहा है। उन्हें यह ध्यान दिलाते देर नहीं लगती है कि ये विस्फोट राज्य सरकार के सिरदर्द हैं। हमारे केन्द्र सरकार के कर्णधारों के कंठ से एक दुरुस्त ललकार तक नहीं निकल सकती। आवाज ऐसी निकलती है कि एक चूहा तक नहीं बिदकता। सरकार वह होती है, जिसकी दहाड़ से दुष्ट अपराधी कांपते हैं, लेकिन जिस सरकार में कोई दहाड़ने वाला न हो, उसका क्या होगा? सरकार में तो लालू प्रसाद यादव जैसे मसखरे शामिल हैं, जो जनता का झूठा मनोरंजन करते फिरते हैं। दागियों से प्यार करने वाली सरकार, दागियों के वोट पर विश्वास मत जीतने वाली सरकार की जितनी आलोचना की जाए कम है? --

अमेरिका से डील पर गुस्सा?

केन्द्र सरकार को अमर सिंह जैसे उत्सव प्रेमियों के साथ मौज मनाना छोड़कर अमेरिका से दोस्ती की कीमत अदा करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। अमेरिका से दोस्ती करने वाला कोई देश दुनिया में सुरक्षित नहीं रहा है। इस्राइल का उदाहरण सबके सामने है, लेकिन इस्राइल आतंकी हमलों को झेलने के लिए हरदम तैयार रहता है। हमें भी तैयार रहना होगा। अमीरी और बुलंदी कीमत मांगती है। देश विकास कर रहा है, तो सुरक्षा के मद में खर्च बढ़ाना ही होगा। सुरक्षा ढांचे को फिर खड़ा करने की जरूरत है। अमेरिका से दोस्ती करनी है, तो अमेरिका जैसा ताकतवर बनना होगा। भारत कहीं से कमजोर नहीं है, जरूरत बस जागने की है। ध्यान रहे, इक्कीसवीं सदी में उन्नीसवीं सदी की पुलिस बार-बार मुंह की खाने को मजबूर है। सरकारों की जो व्यस्तता तबादलों और अन्य फालतू के कामों में दिखती है, वह आतंकवाद के खिलाफ क्यों नहीं दिखती? हमारी राजनीति में एक तबका है, जो गलत लोगों और बांग्लादेशियों को बसाने का काम करता है। अवैध बस्तियों के लिए जिम्मेदार दलालों के राजनीतिक पाटिüयों से गहरे संबंध होते हैं। बस्तियां ढहाई जाती हैं, अवैध लोग खदेड़े जाते हैं, लेकिन अवैधता को अंजाम देने वाले राजनीतिक तंत्र और उसके छुटभैय्ये गुर्गों का बाल भी बांका नहीं होता। आतंकियों की स्लीपींग सेल हर शहर में मौजूद है, तो उसके पीछे हमारी सरकारों की कोताही और लापरवाही ही है। जयपुर, बेंगलुरू और अहमदाबाद में भी बिना स्थानीय मदद के आतंकियों ने विस्फोटों को अंजाम नहीं दिया होगा। हर सरकार के पीछे जो स्याह गलियारा है, उसी से आतंकियों को खाद-पानी मिलता है। सरकारों को अपने स्याह गलियारों और गलत धंधों पर पूरी तरह से अंकुश लगाना होगा, तभी हम आतंक से लड़ पाएंगे।

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