सेकुलर खेमा शांति काल में सांप्रदायिकता की राजनीति करता है और जब विनाशकाल शुरू- होता है या जब दंगे शुरू होते हैं , तो सांप्रदायिक राजनीति का रोना रोता है । उनकी पोल एक बार फिर खुल गई है। राजीव गाँधी ने अयोध्या विवाद का ताला खुलवाया था, तो विवाद कहां तक पहुंचा, सभी जानते हैं । कश्मीर में अमरनाथ बोर्ड को भूखंड देकर वापस ले लिया गया, यह मामला न जाने कहां पहुंचेगा, बीजेपी का बंद चिंता की बात है, तुष्टिकर का दोहरा खेल खेलने वाले ये लोग खुद को सभ्य बोलते हैं, शर्म आती है, वामपंथियों पर, कभी मैं भी एस यफ आई में रहा था। उन कुछ दिनों पर गर्व होता है, लेकिन इस गर्व को छीनने का काम कामरेड कर रहे हैं । जब परमानु करार के विरोध में दिए जा रहे तर्कों से बात नहीं बनी, तो धर्म का कार्ड खेल दिया गया। सबसे पहले माकपा पोलित ब्यूरो के एम के पंढे ने मुसलमान वोट बैंक की चिंता करने की सलाह दी। प्रकाश करात ने लेख लिख दिया करार से सांप्रदायिक ताकतों को फायदा होगा। मतलब ले दकर बस एक सांप्रदायिकता का सहारा है, उसी के दम पर भारतीय राजनीति होगी। मायावती को भी चिंता हो रही है, वे करार को मुसलमान विरोधी बता कर वोट की राजनीति जुट गई हैं । भारतीय मुसलमान नेताओं की वैचारिकता तो सदेव संदेह के दायरे में रही है , व्यापक समाज की बात छोड दीजिए, वे तो अपने समाज की वाजिब वैध बेहतरी के लिए भी खास नहीं कर सकें हैं । केवल सांप्रदायिकता पर गाल बजाते रहते हैं । क्या वाकई इस करार से मुसलमान नाराज हो जाएंगे? क्या करार से फायदा केवल हिन्दुओं को होगा? क्या करार से पैदा होने वाली बिजली केवल हिन्दुओं के घरों को जगमग करेगी ? क्या मुसलमानों के घरों में परमानु करार से बिजली नहीं पहुंचेगी?
सभ्य समाज में एक ही आंख से देखने की बदमाशी में जुटे कथित सेकुलर लोगों को कौन समझाए की यह की करार कोई हिंदू भारत और ईसाई अमेरिका के बीच नहीं हो रहा है। अफसोस की बात है , पढे-लिखे वामपंथी भी कथित मुसलमानों की नाराजगी को लेकर चिंतित थे और अब मायावती भी चिंतित नजर आ रही हैं। साफ दिख रहा है कौन माहौल को सांप्रदायिक बना रहा है, जिस भाजपा पर बार-बार उंगली उठाई जाती है , वह तो चुपचाप अपने चुनावी उम्मीदवार तय करने में जुटी है, वह जीत सकती है , क्योंकि उसके लिए जमीन तैयार करने वालों की कोई कमी नहीं है ।
साधु को सदा याद रहे कि वह साधु है
1 month ago
4 comments:
सर जी नमस्ते,
आपने अच्छा लिखा है। आज कुछ लोग निजी स्वार्धो के कारण परमाणु करार के मुद्दे को सांप्रदायिक रूप प्रदान कर रहे हैं। हमें निष्पक्ष होकर विचार करना होगा कि यह करार हमारे देश और हमारे लिए फायदेमंद या नुकसानदेह है।
bahut shandar sir
आपकी एक-एक बात सही है। भारत को वास्तविक 'सेक्युलर' बनाने के बजाय इसका उपयोग वोट कबाड़ने के लिये किया जा रहा है। औत यह बहुत पहले से होता आ रहा है।
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