हेर्बेर्ट बाकर ने संसद भवन डिजाइन किया था। उन्होंने सोचा था, सुंदर भारत के इस सुंदर भवन में अच्छी-अच्छी बातें होंगी। जो बातें होंगी, उन पर समृद्ध इतिहास वाला देश भारत गर्व करेगा, लेकिन यह क्या? इस सुंदर लाल भवन में जब पटल पर नोटों के बंडल रखे जा रहे थे, तब जो शिकायतों का नाद हो रहा था, तब जो इतिहास लिखा जा रहा था, वह निश्चित रूप से इतना काला था कि उसकी कालिमा मिटाए न मिटेगी। लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कह दिया, जांच होगी और किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। जांच झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड के समय भी हुई थी, कुछ नहीं हुआ। तब रिश्वत लेने वाले माननीय जी आज कोयला मंत्री बनने को लालायित हैं। संसद से ज्यादा गंभीरता तो हमारे क्रिकेट में बची है। अगर किसी क्रिकेट मैच से पहले यह पता लग जाए कि मैच फिक्स हो चुका है, तो जाहिर है शरद पवार जैसे लोग मैच रुकवा देंगे, लेकिन संसद में जो विश्वास मत संघर्ष होने वाला था, उसमें फिक्सिंग की पूरी आशंका नजर आने के बावजूद मैच हुआ। क्या यह मैच नाजायज, अनैतिक नहीं कहा जाएगा? दूसरी कलंक लगाने वाली बात यह कि बसपा सांसदों ने सदन में बाकायदे दस्तावेज पेश करते हुए यह शिकायत की है कि विश्वास मत के पक्ष में मत देने के लिए सीबीआई ने बसपा सांसदों को धमकाया। यह भी जांच का मुद्दा है। तीसरी कलंक वाली बात दागी सांसद पप्पू यादव का आरोप है। पप्पू ने भाजपा नेता विजय कुमार मल्होत्रा पर रिश्वत का प्रस्ताव करने का आरोप लगाया है। तीनों ही कलंक सनसनीखेज हैं, जिनका यथोचित कारवाई के साथ पटाक्षेप होना चाहिए।
जीत गई सरकार
यूपीए सरकार 256 के मुकाबले 275 मतों से विश्वास मत जीत गई। पहली बात, परमाणु करार अब होकर रहेगा। सरकार अब करार के पक्ष में इतनी तेजी से काम करेगी कि बुश प्रशासन भी दंग रह जाएगा। अमेरिका और दुनिया के अमीर देशों को भी यूपीए की जीत से खुशी हुई होगी। दूसरी बात, कांग्रेस अब वामपंथियों के साथ-साथ अन्य विपक्षी नेताओं का सामना काफी रोष और जोश के साथ करेगी। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को सरकार का हमलावर रुख झेलना पड़ सकता है। तीसरी बात, कांग्रेस करार की ओर से निश्चिंत होकर अब आर्थिक विकास की ओर ध्यान देने की कोशिश करेगी। महंगाई के खिलाफ कुछ कदमों की उम्मीद जनता कर सकती है। वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की ओर सरकार बढ़ सकती है। चौथी बात, बाजार में खुशी है। विदेशी और विशेष रूप से अमेरिकी आधार वाले निवेशक हमारे शेयर बाजार पर भरोसा कर सकते हैं। सरकार बचाने में लगे कुछ नामी उद्योगपति भी फायदे में रहेंगे। पांचवी बात, सरकार के जो आर्थिक व व्यवस्थागत फैसले वामपंथियों के साथ रहते रुके हुए थे, वे अब धड़ाधड़ संभव होंगे।
अब आगे क्या?
22 जुलाई के बाद देश की राजनीति करवट ले चुकी है। अब लोकसभा चुनाव अगले साल अपने निर्धारित समय पर होंगे। यूपीए का रथ बिना वामपंथियों की मदद के आगे बढ़ चला है। विश्वास मत पर जीत यूपीए के लिए क्वार्टर फाइनल में मिली जीत है। सेमी फाइनल नवंबर में होगा, जब राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली सहित कुछ अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। फाइनल मैच लोकसभा चुनाव होगा, अत: कांग्रेस के पास समय बहुत नहीं है। संसद में आंकड़ों के खेल में वह भले जीत गई हो, लेकिन देश में आम जनता यूपीए सरकार से खुश नहीं है। कांग्रेस को मुसलिम तुष्टिकरण में मुश्किल आ सकती है। अब वामपंथियों के पास अपनी बात रखने और साबित करने का पूरा समय है। भाजपा को भी एक तरह खुश होना चाहिए। भाजपा और राजग के सारे मुद्दे ताजा हैं, महंगाई अकेले काफी है। संसद के आंकड़ों से ज्यादा महत्वपूर्ण जनता के आंकड़े होते हैं। जो भी संसद के आंकड़ों का गुमान पालेगा, वह चुनावी मैदान में मुंह की खाएगा। सरकार दागदार होकर सदन में विश्वास मत जीत गई, लेकिन जनता का दिल जीतने का सबसे अहम काम बाकी है।
3 comments:
अफसोसजनक....दुखद....निन्दनीय!!
खैरा, आम चुनाव में जनता क्या फैसला करती है, वो देखने योग्य होगा उस समय के समीकरण के अनुसार.
aapka. dhanyavad, swasth hoker aap yahan padhare achch laga.
उपाध्यायजी, आपकी चिन्ताएं जायज हैं। इस पर सिवाय अफसोस करने के किया भी क्या जा सकता है? रही बात जनता के फैसले की, तो वह फिर ऐसे ही निकम्मे लोगों को वरण करेगी। क्योंकि चुनावी मंडप में जात, बिरादरी, व्यक्तिगत हित, स्वार्थ, क्षेत्रीयता, कुनबापरस्ती, भाई-भतीजावाद जैसे मुद्दे हावी होने हैं। उसमें आचरण शुचिता का सवाल दूर-दूर तक नहीं है। सटीक लेखन के लिए बधाई।
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