Wednesday, 9 July 2008

जाति के जर्रे - 3

मुझे खुशी है, मेरे गांव में जातिवाद का शिकंजा उस तरह से कड़ा नहीं है, जैसा कि हरियाणा या पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों में रहा है । पिछड़ी जातियों में भी कुछ लोगों ने खूब नाम कमाया है, जैसा भोजपुरी के शेक्सपीयर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर भी हमारे ही जिले के थे। वे जाति के नाई थे, उन्हें शुरुआती दिनों में अपमान भी खूब झेलना पड़ा, लेकिन अपने ज्ञान के दम पर उन्होंने पर्याप्त सम्मान अर्जित किया। भिखारी ठाकुर पर मेरे एक प्रिय लेखक संजीव सूत्रधार नाम से बेहतरीन उपन्यास लिख चुके हैं। भिखारी ठाकुर के जरिये बिहारी संस्कृति की श्रेष्ठता का साक्षात्कार हम करते हैं। बिहार में जाति व्यवस्था को जानने में भी सूत्रधार के जरिये काफी मदद मिलती है। बिहार की भूमि ने कला का सदैव सम्मान किया है, यह बात मैं अपने उत्तरी बिहार के बारे में दावे के साथ कह सकता हूं, क्योंकि इस इलाके को मैंने देखा है। नाच जैसी मुश्किल नाट्य शैली इसी क्षेत्र की देन है, जिसे भिखारी ठाकुर ने चरम सम्मान पर पहुंचाया था। नाच बड़े लोगों और पंडितों के बीच भी लोकप्रिय हुआ था, भिखारी ठाकुर पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन बहुत विद्वान थे, उन्हें धर्म के बारे में भी कई ब्राहमणों से ज्यादा ज्ञान था। तो भिखारी ठाकुर के ज्ञान के सामने मत्था टेकने वालों की संख्या कम नहीं थी। कहने का मतलब यह कि कला और ज्ञान के आगे जाति की दीवार को ढहते देर नहीं लगती।

बहरहाल, कला एक राह थी, जिसके माध्यम से दलितों को पर्याप्त सम्मान नसीब हुआ। कोई शक नहीं पिछडों मे जब कोई उभरता है तो उसका फायदा सबको मिलता है । उनके लिए पढ़ने के अवसर तो बाद में बने, क्योंकि शिक्षा सुविधाओं का विस्तार बहुत बाद में हुआ। कुछ दलितों का शोषण मेरे गांव में अवश्य हुआ होगा, लेकिन अगर कोई ब्रह्मण शोषण करता होगा, तो दूसरा ब्रह्मण उसका विरोध भी करता होगा। आज एक बड़ी बात यह है कि दलितों और पिछड़ों के पास अपने नेता हैं, उनका शोषण अकल्पनीय है। राजनीतिक जागरुकता ने पिछड़ों के लिए सुरक्षा कवच का निर्माण कर रखा है। राजनीतिक जागरुकता के कारण उनमें एकता आई है, वे किसी न किसी दबंग खेमे के साथ जा जुड़े हैं और ऐसा जरूरी भी है, क्योंकि अकेले रहने में शोषण की ज्यादा गुंजाइश रहती है। पिछड़े मजदूरों के एकजुट रहने की वजह से हमारे गांव में किसी से बेगार करवाने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। तो मैं देखता हूं, दलित-पिछडे़ जहां भी जागरूक और एकजुट हुए हैं, वहां उन्होंने शोषण की स्थितियों से पीछा छुड़ा लिया है। भिखारी ठाकुर भी अपनी स्थितियों से तभी ऊपर उठ पाए, जब उन्होंने अपना एक समृद्ध समुदाय बनाया, कलाकारों की एक मजबूत टोली बनाई।
क्रमश:

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