जाति के जर्रे : भाग आठ
तो नारा क्षेत्र की अहिमयत पूरे इलाके में है। जब ज्यादा बारिश होती है, तो पुलिया तक पानी चढ़ जाता है, सड़क पर से पानी बहने लगता है। लाठी के सहारे लोग जमीन खोजते हुए नारा पार करते हैं।
लेकिन उस साल बारिश शुरू ही हुई थी, मोहन और जवाहिर के पिताजी धूनीराम बीमार थे। जब बूंदाबांदी ठीक-ठाक होती दिखी, तो धूनीराम ने अपनी पत्नी को बुलाया और कहा, `मैं तो नहीं जा पाऊंगा। जाओ, बाबाजी लोग को बोलो, धान रोपाई का समय आ गया है। चंवर में पहले धान रोपा जाएगा, तो ठीक रहेगा।´ धूनीराम की पत्नी बारिश में पन्नी से खुद को ढके हुए हमारे घर तक आई थी और बाबूजी से कहा था, `चलिए बोआई करवाइए।´ बाबूजी भी तैयार बैठे थे, स्कूल में शायद छुट्टी का दिन होगा या फिर बारिश के कारण छुट्टी घोषित हो गई होगी। तो वे चल पड़े चंवर। खेत पर पहुंचे, तो वहां पहले से बोआई करने के लिए धूनीराम के परिवार के लोग व अन्य खेतिहर मजदूर जुटे थे, मोहन और जवाहिर भी मां और बीमार पिता के आदेश सुनकर चंवर में पहुंच गए थे। रुक-रुककर झीमी-झीमी बारिश हो रही थी, बोआई के लिए बिल्कुल सटीक समय था। धान के पौधे लेकर सबसे पहले धूनी की पत्नी पानी भरे खेतों में उतरी, तो पैर खेत में बिल्कुल नहीं गड़े। कुछ और चली, तो आगे भी खेत में पैर नहीं धंस रहे थे। चिंतित हो गई, भोजपुरी में चिल्लाई, `आहे राम, खेत में बोआई कइसे होई?´ बाबूजी मुस्कराए कि धूनी की पत्नी शायद मजाक कर रही है, लेकिन धूनी की पत्नी ने फिर ठेठ भोजुपरी में कहा, `ऐ बबुआ, बोआई कइसे होई?´
बाबूजी ने पूछा, `क्या बात है? क्यों नहीं होगी बोआई?´तब धूनी की पत्नी बोली, `मेड़ पर से उतर कर थोड़ा खेत में आइए और देखिए।´बाबूजी थोड़ा चिंतित हुए और मेड़ पर से उतर कर खेत में आए। यह क्या? खेत तो जुता ही नहीं था। बेहिसाब अचरज हुआ। थोड़ा और चले, फिर वही बात, खेत जुता ही नहीं था और ऊपर-ऊपर पानी जमा था। बोआई मुश्किल थी। उन्हें समझते देर नहीं लगी। उन्होंने गुस्से के साथ मोहन और जवाहिर की ओर देखा, जो जानबूझकर अनजान बनते हुए किसी और दिशा में देख रहे थे।धूनी की पत्नी ने भोजपुरी में कहा, `खेत त जोताइले नइखे, बोआई का हुई? रउआ, खेत न जोतवैनी हं?´ गुस्साए बाबूजी ने कहा, `अपने बेटों से पूछो, जो इस खेत को जोतने का पैसा मुझसे दो बार ले चुके हैं। पांच-छह दिन बैल खोलकर ले गए थे कि बारिश आने वाली है, चंवर में खेत जोतना है, लेकिन देख लो कैसी जोताई हुई है।´
धूनी की पत्नी ने बेटों से चिल्लाकर पूछा, `खेत की जुताई क्यों नहीं हुई?´
कोई जवाब न मिला। खेत पर बोआई के लिए आए अन्य मजदूर भी पूछने लगे, मोहन और जवाहिर की बोलती बंद थी। क्या जवाब देते? बाबूजी के बैल लेकर उन्होंने दूसरों के खेतों में जुताई की थी, कमाई की थी। दोनों ही तरफ से पैसे वसूले थे। दिमाग पर लोभ का परदा पड़ा था, उन्हें अंदाजा न था कि बारिश इतनी जल्दी आ जाएगी और उनमें बाबूजी के प्रति कोई डर भी नहीं था। वे जानते थे, बाबूजी थोड़ा-बहुत नाराज होने के सिवाय और कुछ नहीं कर सकेंगे। मोहन और जवाहिर की चुप्पी में उनकी मां को जवाब मिल चुका था, वह गुस्से से कांप रही थी, `बाबूजी के बैल भी लिए, पैसे भी लिए, लेकिन दूसरों का खेत जोता और बाबूजी का खेत यों ही पड़ा रह गया। राक्षसों, तुम लोगों ने ऐसा क्यों किया? भले आदमी को ही ठगोगे? दूसरा कोई न मिला?´मोहन और जवाहिर चुप थे, मन ही मन पछता रहे थे। उनकी मां का गुस्सा चरम पर था, वह बेटों पर बुरी तरह कुपित थी, रहा न गया, लगी श्राप देने, `जिससे सबसे ज्यादा अन्न और धन मिलता है, उसी को तुम लोगों ने धोखा दिया है, जाओ, तुम लोग हमेशा अभाव में ही रहोगे, क्योंकि तुम लोगों के मन में बेईमानी है। तुम लोगों को अन्न-धन के लिए तरसना पड़ेगा।´
बाबूजी बिना कुछ बोले निराश होकर चंवर से भीगते हुए लौट आए थे। उन लोगों ने धोखा दिया था, जिन पर सर्वाधिक भरोसा था। बाबूजी को ऐसा लगा था, मानो वे सेना विहीन हो गए हों। उस साल चंवर में धान की काफी कम उपज हुई थी, लेकिन उस साल बहुत दिनों तक मोहन और जवाहिर नजर नहीं आए थे और उनके पिता धूनीराम दुख के कारण ज्यादा बीमार रहने लगे थे। बाद में धूनीराम के यहां जब अन्न का ज्यादा अभाव हो गया, तब भारी अपराध बोध के साथ उन्हें बाबूजी के पास आना ही पड़ा था। यहां न आते, तो कहां जाते? मां का श्राप जो मिला था, अन्न और धन के लिए तरस रहे थे। भूखे बच्चों का रोना बर्दास्त नहीं होता था, बीवियों ने ताना मारकर बेहाल कर रखा था। पहले मोहन भाई आए थे, बिना कुछ बोले हमारे यहां साफ-सफाई में लग गए थे। बाबूजी ने काम करते देखा, लेकिन कहा कुछ नहीं, स्कूल चले गए। शाम के समय बड़ी अम्मा ने सबसे छिपाकर मोहन को सेर भर गेहूं दिया और बाबूजी ने हथेली पर पांच रुपये मजदूरी के रखे, तो मोहन भाई की आंखों से पछतावे के आंसू बह निकले।
साधु को सदा याद रहे कि वह साधु है
1 month ago
1 comment:
how are u? kabhi kabhi tumhari bahut yad aati hai, purane din yad aate hai. baiya bhabhi kaise hain? unhe mera pranam kahana.
shashi bhooshan dwivedi
shashibd1@rediffmail.com
blog- kathavarta
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