Saturday 18 October, 2008

स-स्वाद यादें

(एक मित्र के लिए )
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यादों का भी स्वाद
दिल में आबाद
कुछ मीठी और ढेर सारी खट्टी
बेकार, बेमजा यादें
पीछा नहीं छोड़तीं
रहरहकर जीवन की जीभ पर
दौड़ती बिना ब्रेक
हंसती, दुखी देख।

मन करता है बुलाऊं
जो छोड़ गए ढेर सारा खट्टापन जिंदगी में मेरे
रस में गिरा गए
कुछ ऐसा, जो घुल न सका
निर्मम हठी ढेले-सा
उजड़े हुए मेले-सा
कुछ लगा है मेरे दिल में।

वर्षों से अधपकी कढ़ाई चढ़ी जलेबियां,
आंच मांगते समोसे,
तलने के इंतजार में पूरियां,
बासी होने पर अड़ी तरकारी
झूलने को लालायित झूले,
खेले जाने के इंतजार में बैलून,
अकेलेपन के राग में बांसूरी
मेले के माइक में अटका कोई विरह गीत
किसी मित्र का छूटा हुआ हाथ
जगह-जगह टूटे ठेले
तोल-मोल के झमेले,
कादो-कीचड़ कौन हेले,
यादों में उजड़े पड़े मेले में
छूटा बहुत कुछ बदसूरत।

कटारी-सा काटता कसैलापन
कभी टनों मिर्चियों का तीखापन
दौड़ता रगों में
चिढ़ता रतजगों में।

बार-बार, हर बार मजबूरन
चखा, तो जाना
स-स्वाद होती हैं यादें।

लबालब भरा दिल
लेकिन मुंह में नहीं आती
वरना थूककर चल देते हम
मुंह में रह जाता मीठा
और धूल चाटता
कसैला, खट्टा और तीखा।

6 comments:

Gyanesh upadhyay said...

बहुत दिनों बाद एक कविता संकोच का दरवाजा तोड़कर दहलीज से बाहर निकली है, लिखता तो हूं, लेकिन उन्हें फाइलों में सहेज लेता हूं, निहायत निजी बयान होती हैं कविताएं

Udan Tashtari said...

बहुत गहरी अभिव्यक्ति है..और निकालिये फाईलों से. अनेकों शुभकामनाऐं.

श्यामल सुमन said...

ज्ञानेश जी,

अच्छी प्रस्तुति। रघुनाथ प्रसाद जी कहते हैं-

जख्मे जिगर हमारा भरने लगा है शायद।
नश्तर बतौर तोहफा उसने थमा दिया।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

हिन्दीवाणी said...

ज्ञानेश भाई, इस तरह मुलाकात की उम्मीद मुझे नहीं थी। लेकिन मेरे ब्लॉग की यह उपलब्धि ही कही जाएगी कि किसी बहाने ही सही आपसे संवाद स्थापित हो गया। मुझे यही सूचना थी कि आप राजस्थान में विराज रहे हैं। बहरहाल, मैं आपके ब्लॉग पर आया। कविता और कुछ लेखों को भी पढ़ा। इसी से पता चलता है कि आप अब भी उतना ही सक्रिय हैं, जितना पहले थे। विचारों के धार में भी कोई बदलाव नहीं आया है। शेष ठीक है। इस खाकसार को कभी कभार याद कर लिया करेंगे तो आपकी मेहरबानी होगी। सिलसिला जारी रहे।

राजीव जैन said...

सर बहुत बढ़िया
निकालिए फाइलों से उन ढेर सारी रचनाओ को और छाप दीजिये ब्लॉग पर

manglam said...

बहुत खूब। दिल से निकलकर दिल में उतरने वाले शब्दों को क्या बखूबी सहेजा है आपने। सिलसिला बनाए रखें, यही अपेक्षा है।