वाह!
फूल रही हैं रोटियां
इस बार मान गई हैं,
खुशी में हो रही हैं गोल-गोल।
ओह!
पर हो गई एक गड़बड़
रोटियों से यारी पर
खफा हैं परांठे,
टेढ़े-तिरछे।
बनाए नहीं मानते,
बार-बार बिगड़ जाते,
चकले पर उलट जाते,
बेलन से झगड़ जाते,
पकने से द्रोह करते,
जैसे सीधे बाप के बिगड़ैल बेटे।
पर खुश हैं रोटियां
जैसे अच्छी मां,
प्यारी पत्नी और दुलारी बेटियां।
इन दिनों घट गई रसोई से दूरियां
रोटियों के प्रेम में तल रहा हूं पूरियां।
--दो--
भोलीभाली रोटियां
चालाक परांठे,
रोटियां तालमेल
परांठे घालमेल,
रोटियां सहारा
परांठे साजिश,
रोटियां जरूरत
परांठे ऐय्याशी,
रोटियां हकीकत
परांठे तमाशा।
--तीन--
कहते हैं, पहले नहीं थे परांठे
बस रोटियां थीं
जब तेल आया,
हुआ भ्रष्टाचार
सादगी पर प्रहार,
तो बने परांठे,
जैसे भ्रष्ट, कमजोर नेता,
थोड़े राजा, ज्यादा अभिनेता।
पालक, मूली हो या आलू
हो गया गठजोड़ चालू।
अच्छा लगा, लच्छा लगा,
चल गए परांठे,
जैसे चल गए नेता।
नेता और परांठे
दोनों देखते तेल की धार।
तेल में सिमटा सारा सार।
पर जब नाराज होंगे
पेटों के ज्वालामुखी,
भाग जाएंगे नेता और परांठे,
बस, अकेले काम आएंगी रोटियां।
साधु को सदा याद रहे कि वह साधु है
1 month ago
6 comments:
बहुत अच्छी है रोटीयां
rotee kee baat ..chandryaan abhiyaan ke samay...sanyog h ya sprayaas?..patni ke kaam ko kisee bahaane yaad kiya...mehsoos kiyaa..
bahut mazedar likha hai. Nazeer Akbarabadi bhi keh gaye hain - "insan ko insan banati hain rotiyan."
वाह भई-क्या गहरी बात की है रोटी पराठों के माध्यम से. बहुत बढ़िया. बधाई.
bahut badhiya sir munh me pani aa gaya
तो अब पता चला कि ज्ञान जी कवि भी हैं! बधाई, वाह रोटी, परांठों से पूरियों तक आते आते..मुंह में पानी आ गया.
Post a Comment