Sunday, 14 February 2010

कहां से आते हैं साधु?

हमारे देश में साधुओं का मजाक उड़ाने की छूट है, तो बड़ी सहजता से उनका मजाक उड़ाया जाता है। ऐसा भी नहीं है, साधुओं का मजाक उड़ाने के खिलाफ कानून बना दिया जाए, स्वयं साधु ऐसे किसी कानून का विरोध करेंगे। कबीर कह गए थे, निन्दक नियरे राखिये। निन्दा भले ही किसी को अच्छी नहीं लगती, लेकिन निन्दा से कुछ न कुछ हर कोई सीखता अवश्य है। साधु होना कतई आसान नहीं है। गांधी जी १९१५ में हरिद्वार में लगे कुंभ में आए थे। उन्होंने साधुओं को मालपुए छकते देखा था और यह अनुमान भी लगाया था कि ये लोग शायद पकवान छकने के लिए ही साधु बने हैं। हां, वैसे भी साधु होते होंगे, लेकिन तब भी साधु होना आसान नहीं है। पहले वे घर-परिवार छोड़ते हैं, बाद में घर-परिवार ही उन्हें अपने से दूर भगाने लगता है। अकेलेपन से इनकार नहीं किया जा सकता। आज आधुनिक चमक-दमक को देखकर यह कहना मुश्किल नहीं है कि कई साधु अवसाद ग्रस्त रहते होंगे। उन्हें तपस्या निरर्थक मालूम पड़ती होगी। वैज्ञानिक आधुनिकता ने एक स्वर्ग-सा परिवेश पृथ्वी पर रच ही दिया है, वह अवश्य साधुओं को लुभाता होगा। ह्रदय को लुभाने वाली तमाम बुराइयों से बचकर साधु होना कदापि आसान नहीं है। बुराइयों वाले भी हैं, लेकिन उन्हें सच्चा सुख-सन्तोष नहीं मिल सकता। जो बुरा होगा, उसका मन जानता होगा कि वह साधु नहीं है। कोई दूसरों को धोखा दे सकता है, लेकिन अपने आप को नहीं।
जब मैंने जाने-माने पत्रकार रामशरण जोशी जी को कुंभ यात्रा की योजना के बारे में बताया था, तब उन्होंने कहा था कि वहां यह पता करने की कोशिश करना कि अब साधु अमीर परिवार से आ रहे हैं या गरीब परिवार से। यह सवाल मेरे मन को मथ रहा था। हरिद्वार में जब महामण्डलेश्वर भगवानदास जी से बात हुई, तब उन्होंने कहा, अमीर परिवारों से भी लोग आते हैं साधु बनने। हालांकि उन्होंने माना कि ऐसे साधुओं की तादाद कम है। लोग ईश्वर से मन्नत मांगते हैं, सन्तान दो, भले ही साधु बनाकर अपनी सेवा में लगा लेना। ऐसे बच्चे भी साधु बनते हैं। गरीब परिवार के लोग बड़ी संख्या में साधु बनते हैं। अभाव से आहत होकर वैराग्य का जागना स्वाभाविक है। साधु बनकर कम से कम दो जून की रोटी का तो जुगाड़ हो ही जाता है। दूसरी बात कि साधु बन जाओ, तो फिर कोई जाति नहीं पूछता। पूजा-पाठ से मानसिक सुख तो मिलता ही है। इहलोक ही नहीं, परलोक भी सुधरने की आश्वस्ती रहती है। साधु बनने के अपने कई फायदे हैं, लेकिन इसके बावजूद साधु होना दुष्कर है। साधुओं की पवित्रता और उनका आध्यात्मिक विकास होना अत्यन्त आवश्यक है। अच्छे साधु ही अच्छे लोगों को आकर्षित करते हैं। गौतम बुद्ध हों या भगवान महावीर राजसी पृष्ठभूमि से आए थे, लेकिन उनके समय भी अमीर पृष्ठभूमि से साधु कम ही आते थे, यह कोई नई बात नहीं है। गरीबों के देश में गरीबों के घर से साधु नहीं आएंगे, तो कहां से आएंगे?

5 comments:

vikas mehta said...

aapki baat sahi hai lekin yah amir gareeb ki baat isme lana is vishy me khaa tak sahi hai sadhu sadhu hota hai amir ho ya gareeb

Gyanesh upadhyay said...

विकाश जी आप मेरी बात नहीं समझ पाए, मैं साधुओं की अमीरी या गरीबी की बात नहीं कर रहा। वे तो वाकई दौलत से अमीर या गरीब नहीं होते, लेकिन मेरा अध्ययन इस पर था कि किन परिवारों से साधु आते हैं , अमीर परिवार से आते हैं या गरीब परिवार से , यह पता लगाने में भला क्या बुराई है? यह समाज शास्त्रीय अध्ययन है।

RAJNISH PARIHAR said...

आपका सवाल सही है...मैं भी ये जानने का इच्छुक था की आखिर ये साधू आते कहाँ से है?मेरा शौध तो ये कहता है की ये अक्सर गरीब परिवार से आते है!हाँ कुछ मामलों में घर की जिम्मेवारियों से भाग कर आये लोग भी मिले जो परिस्थितियों वश साधू बन गए..

निर्मला कपिला said...

अक्सर अपनी जिम्मेदारियों से भाग कर आये लोग साधु बनते हैं मगर बहुत कम साधू हैं जो साधू की तरह रहते हैं बाकी तो नशा ऐश आराम ही करते हैं। धन्यवाद्

Anonymous said...

priy mitra. shodh ke liye badhai.bada hi naveen vichar aap ne chuna hai or jaan kar koi hairani nahi hui ke adhik sadhu garib pariwar se hi aaate hai sadhu jeevan sachmuch behad kathin hota hai.mamla hasi majak ka nahi hai kya aaj bhi hum kisi sadhu ko dekh kar namastak nahi ho jaate.yahi to sadhutav hai mitro.
or janab na jaane kis roop mein narayan mil jaai...