देश में पांच सौ से ज्यादा ऐसे संगठन हैं, जो या तो हिंसक हैं या फिर अपनी बात मनवाने के लिए हिंसा का सहारा ले सकते हैं। ऐसे संगठनों में युवाओं को आगे रखा जाता है और घाघ लोग परदे के पीछे रहकर मजा लेते हैं। उन्हें युवाओं का जीवन संवारने की कोई चिंता नहीं होती। उनके लिए तो गरीब, मध्यवर्गीय युवा महज हथियार हैं, जिनके इस्तेमाल से खूब ताकत, पैसा और रसूख पैदा किया जा सकता है। भारतीय युवाओं को गौर करना चाहिए, ज्यादातर डॉन, माफिया, आतंकी सरगना विदेश में आरामदेह जगहों पर रहते हुए भारत में युवाओं को हिंसा की आग में झोंकना चाहते हैं। भारत में बढ़ती युवा आबादी देश को वर्ष 2050 तक तरक्की के शिखर पर ले जा सकती है, लेकिन अगर युवा भटके, तो देश ठहर जाएगा और जवानी हमारे हाथ से निकल जाएगी, अत: यह संभलने का वक्त है
`गर्म आंसू और ठंडी आहें मन में क्या-क्या मौसम है,´ लेकिन सत्ता में बैठे बादशाह हमसे यही चाहेंगे कि `इस बगिया में भेद न खोलो, सैर करो, खामोश रहो।´ लेकिन खामोश रहने वालों को देश माफ नहीं करेगा। यह ऐसा समय है, जब युवाओं को भटकने से बचाकर देश को भटकने से बचाना होगा, वरना चंद भटके हुए युवा देश को गमों में डुबो देंगे। सिमी में भी युवा हैं, बजरंग दल और खालिस्तान, उल्फा, लश्कर, पीपुल्स वार गु्रप, सबमें युवा हैं, क्योंकि उनके बिना काम नहीं चल सकता, लेकिन इन युवाओं के मन में देश की छवि इतनी अलग-अलग बना दी गई है कि उन सबका सामूहिक देश नजरअंदाज हो गया है। निष्पक्ष, संतुलित सोच के विद्वान दुर्लभ होते जा रहे हैं। पत्रकारिता में ही बड़े-बड़े नाम हैं, जिनकी एकमुखी विचारधारा को समझना कठिन नहीं है। अगर कोई वामपंथी कलमकार है, तो वह अद्धसत्य दिखाते हुए दक्षिणपंथियों को धूल चटाने में जुटा है, वह अपने पापों पर बात करना नहीं चाहता। अगर कोई भगवा समर्थक है, तो वह बजरंगियों का पुरजोर बचाव करता है और वामपंथियों, कांग्रेसियों की निंदा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता। विचारधारा के इस दोगलेपन ने देश को बड़ी क्षति पहुंचाई है। समाज वास्तविकता जानने से वंचित है, जिसकी वजह से जगह-जगह समस्याएं पैदा हो रही हैं। कुछ ऐसे कथित समाजवादी चिंतक, लेखक, विश्लेषक भी हैं, जो चुनाव दर चुनाव अमीर होते जाते हैं। पत्रकारों की जमात में भी घोर हिन्दू और घोर मुस्लिम मिल जाते हैं। बुद्धिजीवियों में एक जमात वह भी है, जो मौकापरस्त और लिजलिजी है, जो विचारों की जलेबी बनाने का काम करती है। ज्यादातर बुद्धिजीवी, होते कुछ हैं, दिखते कुछ हैं, लिखते कुछ हैं, करते कुछ हैं। कुछ तो सुरापान उपरांत राष्ट्र चिंतन करते हैं। सरकार भी लोगों को भ्रमित करती है। एक तरफ, सरकार सिमी पर प्रतिबंध लगवाती है और दूसरी ओर, उसके मंत्री रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव सिमी को प्रतिबंध मुक्त करने की बात करते हैं। पासवान तो वाजपेयी सरकार के समय भी मंत्री रहे थे, तब उन्होंने बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की मांग क्यों नहीं की थी? लादेन के हमशक्ल के साथ उन्होंने प्रचार किया था, लेकिन उन्हें शर्म नहीं आती। जाहिर है, ऐसे नेता मुस्लिमों को बरगलाते हैं। ये ऐसे नेता हैं, जिन्होंने मुस्लिमों के विकास के लिए एक ढेला भी नहीं सरकाया है, लेकिन उन्हें बरगलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। जब देश का एक मंत्री लादेन को रोल मॉडल मानेगा, तो नागौरी जैसे लोगों को भारतीय होने पर शर्म भी महसूस होगी, वे छोटे-मोटे लादेन बन जाने की कोशिश करेंगे और कीमत चुकाएगा देश। देश में मुस्लिमों को अविश्वसनीय बनाने में जितना योगदान आतंकी संगठनों का है, उससे ज्यादा योगदान पासवान जैसे नेताओं का है। इन्होंने मिलकर देश में ऐसा असुरक्षा का माहौल बनाया है कि शबाना आजमी को मुंबई में घर खरीदने में परेशानी होती है और कश्मीर में कोई हिन्दू घर खरीदने की हिम्मत नहीं करता। हम ऐसे हालात में नियमों की अनदेखी और वोट की राजनीति की वजह से पहुंचे हैं। नियमों, कानूनों का कड़ाई से पालन करके सऊदी अरब व अमेरिका जैसे देश खुशहाल हो जाते हैं और नियमों-कानूनों से खिलवाड़ करके पाकिस्तान व भारत जैसे देश बदहाल रहते हैं। किसी भी व्यक्ति, समाज या देश की स्थायी सफलता नियमों-कानूनों के पालन पर ही निर्भर है। दुर्भाग्य से हममें से ज्यादातर लोग छोटे-छोटे नियमों का भी पालन करने को तैयार नहीं हैं, तो बताइए, क्या हमारा समाज असुरक्षित नहीं होगा? हमें सुधार करना ही होगा, वरना हमारी युवा आबादी वरदान बनने की बजाय अभिशाप बन जाएगी।
-----युवा सत्य------
- भारत में 70 प्रतिशत लोग 35 से कम उम्र के हैं
- 2250 लाख भारतीय 10 से 19 वर्ष के हैं-
- 71।3 प्रतिशत भारतीय 15 से 24 उम्र के-
- भारत की औसत उम्र करीब 27 साल है-
- चीन की औसत आयु 33 साल है
-भारत वर्ष 2050 तक जवानों का देश कहलाएगा
- करीब 18 प्रतिशत युवा देश से बाहर जाना चाहते हैं