अपने देश में पोस्टमॉर्टम ज्यादा होता है और इलाज कम। यानी घोटालों को रोकने के उपाय कम होते हैं, लेकिन घोटाले जब हो जाते हैं, तो उनका पोस्टमॉर्टम शुरू कर दिया जाता है। सीबीआई हो या सीएजी, ऐसी तमाम संस्थाएं पोस्टमॉर्टम का ही काम करती हैं। ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश मानते हैं कि ‘ओपीडी’ को ठीक करने की जरूरत है, ताकि सही समय पर इलाज हो जाए और पोस्टमॉर्टम की नौबत ही न आए। २ लाख ५० हजार पंचायतों वाले देश में जब ग्रामीण विकास का आधा पैसा लूट का शिकार हो रहा है, अनेक पंच-सरपंच बोलेरो, पजेरो खरीदने में लगे हैं, वहां बैठकर घोटालों पर चर्चा से जरूरी है, घोटालों को रोकने के उपाय करना। ग्रामीण विकास पर केन्द्र सरकार ८८ हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है। रक्षा बजट के बाद ग्रामीण बजट का ही नंबर आता है। करीब ४० हजार करोड़ रुपए तो अकेले मनरेगा में खर्च हो रहे हैं, तो फिर केन्द्र सरकार क्या कर रही है? जयराम रमेश भी राज्य सरकारों को दोषी ठहराते हैं, क्योंकि क्रियान्वयन का काम राज्य सरकारों के जिम्मे है। केन्द्र सरकार ने सोशल ऑडिट का इंतजाम किया है। ग्रामीण खर्च को सीएजी के दायरे में कर दिया गया है। गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) खुश हो सकते हैं कि जयराम रमेश उन्हें सरकारी संस्थाओं से ज्यादा भरोसेमंद मानते हैं। जयराम रमेश अगर कामयाब हुए, तो केन्द्र सरकार देश भर में ६०-७० ऐसे शोध संस्थान बनाएगी, जो ग्रामीण योजनाओं के कार्यों का आकलन करेंगे और हर महीने-दो महीने में रिपोर्ट देंगे।
हालांकि ऐसा नहीं है कि जयराम रमेश की दृष्टि पूरी तरह से स्पष्ट हो। जहां एक तरफ वे यह मानते हैं कि राज्य सरकारें ठीक से धन खर्च नहीं कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर वे राज्यों को खर्च करने की ज्यादा आजादी देना चाहते हैं। एक तरफ वे दलील दे रहे हैं कि काम हो रहा है, दूसरी ओर कहे रहे हैं कि भ्रष्टाचार हो रहा है। वे भ्रष्टाचार रोकने की कोशिश का दावा करते हैं, लेकिन रोकने की गारंटी की चर्चा नहीं करते। बारहवीं योजना के अंत तक राज्यों को यह छूट मिल जाएगी कि वे केन्द्र द्वारा प्राप्त योजना खर्च का पचास प्रतिशत राज्य की जरूरत के हिसाब से खर्च कर सकेंगे। १० प्रतिशत का एक फ्लेक्सी फंड भी होगा, जिसका उपयोग राज्य सरकार अपने हिसाब से कर सकेगी। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि जितनी तेजी से योजनाएं बढ़ रही हैं, जितनी तेजी से उन पर होने वाला खर्च बढ़ रहा है, उतनी तेजी से निगरानी व्यवस्था नहीं सुधर रही है।
केरल मूल के निवासी, कर्नाटक में जन्मे, तमिलनाडु में विवाहित और आंध्र प्रदेश का नेतृत्व करने वाले जयराम रमेश की चिंता पर किसी को शक नहीं। पुड्डुचेरी ऑल इंडिया एडिटर्स कांफ्रेंस में उन्होंने ट्रिपल ‘एफ’ की चर्चा की : फंड, फंक्शन और फंक्शनरी। कोष, कार्य और कार्य-कर्मी या कार्य को अंजाम देने वाले। ये तीनों सुधर जाएं, तो विकास का रथ दौडऩे लगेगा। क्या जयराम रमेश अपने मन मुताबिक काम कर सकेंगे? वे पहले वाणिज्य मंत्रालय में थे, जाना पड़ा, वन व पर्यावरण मंत्री थे, वहां से भी जाना पड़ा और अब देखना है, वे ग्रामीण विकास को किस हद तक दुरुस्त कर पाते हैं। उनसे उम्मीदें तो बहुत हैं।
published on 17-2-2012 in patrika and rajasthan patrika.
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