तमिल शब्द पुड्डुचेरी का मतलब है नया गांव। यह एक ऐसा केन्द्र शासित प्रदेश है, जिसके दो भूखंड या जिले पांडिचेरी और कराइकल तमिलनाडु के अंदर हैं, तो एक जिला यनम आंध्र प्रदेश में और एक जिला माहे केरल में। जैसे ये चारों टुकड़े परस्पर जुड़े नहीं हैं, ठीक इसी तरह से पुड्डुचेरी में आयोजित ऑल इंडिया एडिटर्स कांफ्रेंस से निकली ध्वनियां या व्यंजनाएं भी टुकड़ों में बंटी हुई हैं। अगर १०-११ फरवरी को आयोजित कांफ्रेंस की चार मुख्य बातों को समेटें, तो पहली बात यह निकलेगी कि केन्द्र सरकार को राज्यों से बड़ी शिकायतें हैं। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने ही नहीं, प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी. नारायणसामी, मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री डी. पुरंदेश्वरी, खाद्य व उपभोक्ता मामलों के मंत्री के.वी. थॉमस ने भी बार-बार कहा कि केन्द्र सरकार अच्छा काम कर रही है, लेकिन राज्य सरकारों से पर्याप्त सहयोग नहीं मिल रहा है। ज्यादातर राज्य सरकारों को भी केन्द्र सरकार से यही शिकायत है। अफसोस की बात यह कि इन शिकायतों का कोई इलाज कहीं भी खोजा नहीं जा रहा है।
दूसरी बात, सभी मंत्रियों ने परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से स्वीकार किया कि सामाजिक सरोकार वाली तमाम योजनाओं में भ्रष्टाचार हो रहा है। जयराम रमेश की मानें, तो भ्रष्टाचार हो रहा है, लेकिन काम भी हो रहा है, मीडिया को काम पर ध्यान देना चाहिए। भ्रष्टाचार कब खत्म होगा और कब केवल काम होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं था।
तीसरी बात, पुड्डुचेरी के एकमात्र लोकसभा सांसद व अच्छे-अच्छे कानूनों की बात कर रहे राज्यमंत्री नारायणसामी से जब मैंने पूछा कि लोकपाल, व्हिसिल ब्लोवर्स, फॉरेन ब्राइबरी बिल जैसे बहुत अच्छे विधेयक लंबित हैं, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय या प्रधानमंत्री राजनीतिक सहमति बनाने के लिए प्रयासरत नहीं दिखते हैं, तो ये बिल अच्छे व मजबूत स्वरूप में कैसे पास होंगे? तो उन्होंने जवाब दिया, ‘घबराओ मत, सब बिल पास होगा।’ कांफ्रेंस में मुद्दे कई उठे राजनीतिक बातें भी हुईं, कमजोर लोकपाल के लिए विपक्ष को ही दोषी ठहराया गया। सहमति बनाने की कोशिशें दूर-दूर तक नजर न आईं।
चौथी बात, समन्वय का अभाव बार-बार उजागर हुआ। थोड़ी तकलीफ के साथ यह स्वीकार करना चाहिए कि केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के बीच ही नहीं, परस्पर केन्द्रीय मंत्रालयों के बीच भी समन्वय का अभाव देश के लिए बहुत घातक है। अच्छी नीतियां और अच्छी योजनाएं समन्वय व संवाद के अभाव में लूट का शिकार हो रही हैं। यह उत्तर सम्मेलन में बहुत आम था कि यह मामला केन्द्र सरकार नहीं, राज्य सरकार से सम्बंधित है, यह मामला मेरे मंत्रालय से नहीं, दूसरे मंत्रालय से सम्बंधित है। क्षेत्राधिकार से सम्बंधित इस पुलिसिया बहाने ने देश को कितना नुकसान पहुंचाया है, यह हर सजग भारतीय जानता है।
आज जैसे टुकड़ों में बंटे पुड्डुचेरी के सुनियोजित विकास व भविष्य के बारे में ठीक से सोचने की जरूरत है, ठीक उसी तरह से देश के बारे में भी सोचना होगा। राज्यों व केन्द्र की अलग-अलग सरकारें शासन-प्रशासन की सुविधा के लिए गठित हैं, समस्या बढ़ाने के लिए नहीं। निस्संदेह, ऐसे सम्मेलनों को और ज्यादा संवाद प्रधान बनाने की जरूरत है। सरकार की राम कहानी अपनी जगह है, लेकिन उसे ऐसे सम्मेलनों में सुनाना कम और सुनना ज्यादा चाहिए, लेकिन अदम गोंडवी के शब्दों में अगर मंत्रियों पर टिप्पणी करें, तो शेर हाजिर है : जुड़ गई थी भीड़, जिसमें जोर था सैलाब था, जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था।
published on 15-2-2012 in patrika and rajasthan patrika
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