Monday, 27 February 2012

ट्रिपल 'पी'


अपने देश में कुल ३९ टाइगर रिजर्व हैं। इनमें केवल एक टाइगर रिजर्व ऐसा है, जहां केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश नहीं जा सके हैं। जिस एक रिजर्व में वे नहीं जा सके हैं, वह है छत्तीसगढ़ का इंद्रावती टाइगर रिजर्व। इस इलाके में माओवादियों का वर्चस्व है, सरकार वहां नहीं पहुंच पाती है, केवल रामकृष्ण मिशन वाले वहां जा पाते हैं। रमेश के अनुसार, आज देश के ७८ जिले नक्सल प्रभावित हैं, वे इनमें से २५ से ज्यादा जिलों में जा चुके हैं। उन्हें माओ एक्सपर्ट मिनिस्टर या टाइगर मिनिस्टर कहा जा सकता है, लेकिन यह कोई मजाक का विषय नहीं है। आज माओवादी हिंसा ने देश के एक बहुत बड़े हिस्से में ग्रामीण विकास को ख्वाब बना रखा है। झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडीसा इत्यादि के अनेक जिलों में स्थिति बहुत चिंताजनक है। जयराम रमेश ने बताया कि उनके एक सहयोगी का भी नक्सलियों ने अपहरण कर लिया था, जिन नक्सलियों ने अपहरण किया था, वे बामुश्किल १४ साल के थे। माओवादी हिंसा ने संस्कृति और पूरे ग्रामीण माहौल को ही बदल दिया है। जब इन इलाकों में केन्द्र सरकार या राज्य सरकार का ही कोई मतलब नहीं है, तो सरकारी योजनाओं के बारे में सोचना ही बेकार है। माओवादी ङ्क्षहसा पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी कई बार अपनी चिंता का इजहार कर चुके हैं। जयराम रमेश मानते हैं कि केवल सुरक्षा बढ़ाकर माओवादी हिंसा का सामना नहीं किया जा सकता। वे माओवाद को खत्म करने के लिए ‘ट्रिपल पी’ पर ध्यान देने की वकालत करते हैं। पहला ‘पी’ : पॉलिटिक्स (राजनीति), दूसरा ‘पी’ : पीपुल्स इन्वोल्वमेंट(जनभागीदारी) और तीसरा ‘पी’ : पोलिसिंग या पैरामिलिटरी फोर्स (कानून व्यवस्था स्थापित करना व बल प्रयोग)। पहली बात यह कि माओवादी हिंसा से मुकाबले के लिए राजनीति को ईमानदार होना होगा। माओवादियों को मुख्यधारा में लाना होगा। जयराम रमेश मानते हैं कि ममता बनर्जी ने जंगलमहल में यह काम किया है, हालांकि वे इस काम का ज्यादा श्रेय युवा सांसद शुभेन्दु अधिकारी को देते हैं। दूसरी बात, सरकारी योजनाओं और कार्यों में स्थानीय लोगों को भागीदार बनाना होगा। जब देश की मुख्यधारा से आम लोगों को जोड़ा जाएगा, तो माओवाद का आधार स्वत: कमजोर पड़ जाएगा। तीसरी और अंतिम बात, पोलिसिंग। कानून का राज स्थापित करने व रखने के लिए पुलिस और अद्र्धसैनिक बलों का सहारा लेना होगा। पुड्डुचेरी ऑल इंडिया एडिटर्स कांफ्रेंस में पूर्वोत्तर भारत के पत्रकार-संपादकों को यह शिकायत ज्यादा थी कि उनके इलाके में केवल एक ‘पी’ है : पैरामिलिटरी फोर्स। इसका केन्द्रीय मंत्रियों के पास कोई ठोस जवाब नहीं था। वैसे केवल पूर्वोत्तर भारत में ही नहीं, भारत में जहां भी आंतरिक हिंसा हो रही है, वहां सिर्फ पोलिसिंग पर ध्यान दिया जा रहा है। राजनीति सुधारने और जनभागीदारी बढ़ाने के प्रयास नहीं के बराबर हैं। अच्छी बात है, राजनीति और सरकार की विफलता का अहसास जयराम रमेश जैसे मंत्रियों को है, लेकिन सरकार ठोस पहल क्यों नहीं कर रही है? आज जरूरत केवल अच्छी बातें करने की नहीं, बल्कि उन्हें लागू करने की है। कहीं ऐसा न हो कि अच्छी-अच्छी बातें करते हुए हम तबाह हो जाएं।

published on 18-2-2012 in patrika and rajasthan patrika

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