पूरबी गीत-संगीत मुझे अच्छा लगता है। वह मुझे बेचैन करता है। कोई पूरबी गाना चले, तो रुककर मैं सुनता हूं। महुआ चैनल की कृपा से कभी-कभी पूरबी सुनने को मिल जाता है, लेकिन मेरी इच्छा है कि पूरबी गानों की एक पूरी सीडी या डीवीडी रखूं। इस बार बिहार यात्रा के दौरान पूरबी की खोज करता रहा। हर जगह निराशा ही हाथ लगी। दुकान वाले नए गाने तो जानते हैं, लेकिन पूरबी संगीत की पहचान न के बराबर लोगों को है। मेरे परिवार में ही पूरबी पहचानने वाले कम लोग हैं, हालांकि सुना सभी ने है। थोड़ा गाकर भी बताया, फिर भी पूरबी खोजने में मुश्किल आई। गुड्डू रंगीला टाइप गानों या फिर अच्छों में मनोज तिवारी ने दुकानों को भर रखा है। पता नहीं किसी ने केवल पूरबी पर काम किया है या नहीं?
लौटने के दिन ४ जून को अंतिम मौका था, थावे वाली माता के दर्शन के लिए गया था। उनके और हरषू भगत के दर्शन के बाद सीडियों की दुकानों को खंगालना शुरू किया। यहां भी वही जवाब। बहुत खोजा, पूछा तो एक जगह गायिका कल्पना के संग्रह में एक पूरबी गाना मिला, उस गाने के नाम पर ही सीडी का नाम था : देवरा तूड़ी किल्ली। जो लोग भोजपुरी थोड़ा भी समझ रहे होंगे, वे इस गाने का अर्थ समझ गए होंगे। इसके मुखड़े का हिस्सा है, आ जा घरे छोड़ के तू दिल्ली, देवरा तूड़ी किल्ली। यह गाना मैं पहले भी सुन चुका था, लेकिन गाना चूंकि पूरबी में है, इसलिए शब्दों को भूलकर उसके धुन में रमना मेरे लिए आसान है। इस सीडी के अलावा भरत शर्मा और शारदा सिन्हा के गानों की सीडी भी खरीदकर लौटा।
दुख होता है, जो समृद्ध है, वह किनारे पर पड़ा है। भिखारी ठाकुर का पूरा काम और पूरबी, विदेशिया को बहुत ऊंचाइयों पर ले जाया जा सकता है, लेकिन वांछित प्रयास नदारद हैं। जगह-जगह 'चोलिया के हूक राजा जी लगाए दीहीं और 'हम पाड़े हईं टाइप गाने गूंजते सुनाई पड़ते हैं। ऐसे ही गानों का बड़ों और बच्चों पर भी गहरा प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे ही गाने लोगों की जुबान पर चढ़ रहे हैं। उदाहरण के लिए, पिछले दिनों एनडीटीवी के मनीष बिहार के आरा जिला के गांवों में रिपोर्ट कर रहे थे। इन इलाकों में पानी में आर्सेनिक की मात्रा इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि ऐसे बच्चे पैदा हो रहे हैं, जिनकी आंख ही नहीं होती है। रवीश कुमार की जानदार आवाज वाली वह डाक्यूमेंट्री मुझे याद है। एक बिना आंख वाला बच्चा कैमरे के सामने नाचते हुए गा रहा था, 'चोलिया के हूक राजा जी लगाए दीहीं। यह सुनकर मैं सिहर गया था, वह सिहरन अभी लिखते हुए भी उतनी ही महसूस हो रही है।
बिहार के संगीत के बारे में मैं कहना चाहूंगा कि संगीत समृद्ध है, लेकिन शब्द भटक चुके हैं। दिलों में काफी उजास है, लेकिन बाहर जो झलक रहा है, वह केवल अंधेरा है।
मैं एक और अच्छा गाना खोज रहा था, जो सुर संग्राम कार्यक्रम में शायद नंदन-चंदन नाम के दो गायक भाइयों ने गाया था, 'काहे खिसियाइल बाड़ू जान लेबू का हो, बोलो हमारा सुगनी परान लेबू का हो। यह भी नहीं मिला। नेट पर खोजा, तब भी नहीं मिला। ३१ मई को जब भतीजे की बारात पटना जा रही थी, तो भतीजों की मांग पर यह गाना मैंने सुनाया था। भतीजों ने कहा है कि वे यह गाना खोजने में मेरी मदद करेंगे।
खैर, बारात यात्रा के दौरान आर।डी बर्मन का एक बांग्ला गाना भी खूब याद आया, उसे भी मैंने गाया।
मोने पोड़े रूबी राय, कोबिताय तोमाके
एक दिन कतोकिरी देखीछे,
आज हाय रूबी राय,
देके बोलो आमाके
तोमाके कोथाय जेनो देखीछे।
रोड जोला दुपुरे, सुर तुले नुपुरे।
बस थाके तुमी जोबे नामते ।
एक टी किशोर छेले, एका केनो डारिये
से कोथा कि कोनोदिनू भाबते।
मोने पोड़े रूबी राय...
इसी गीत के संगीत को बाद में आरडी ने हिन्दी फिल्म अनामिका में इस्तेमाल किया। तब उसके बोल हो गए थे : मेरी भीगी भीगी से पलकों पे रह गए...। बांग्ला गाना आरडी की अपनी आवाज में है। बांग्ला संस्करण में यह गाना किशोर कुमार से भी मीठी आवाज में आरडी ने गाया है। बांग्ला गाना गाते हुए आरडी की सुविख्यात खुरदुरी आवाज रसोगुला माफिक मीठी हो जाती है, शायद यह बांग्ला का जादू है, जो भोजपुरी की पड़ोसी भाषा है। बहरहाल, भोजपुरी पीछे छूट चुकी है, लेकिन बांग्ला तो बहुत आगे है।
साधु को सदा याद रहे कि वह साधु है
2 months ago
2 comments:
बहुत बढ़िया रचना
ज्ञानेश जी,
पूरबी के बारे में पढकर उसे सुनने की चाह हो उठी है ...लोक संगीत के साथ बिहार में ही नहीं पूरे देश में यही हो रही है. सब्दों के बोल बदल दिए जा रहे हैं, राजस्थानी लोक संगीत में भी इधर जो मिक्स मसाला किया जा रहा है, उससे जड़ों से दूर जा रहा है हमारा संगीत. जो आस्वाद मूल में होती है वह अनुकरण में कहाँ मिलेगा. मुझे तो संकट इस बात का भी लग रहा है की ऐसा ही चलता रहा तो आने वाली पीढ़ी नकल को ही असल समझेगी, जैसे कि आपने अपनी टिप्पणी में लिखा है.
बहरहाल, आपने सहज बेहद सुंदर आलेख लिखा है...स्म्रतियों को संजोते... सुखद लगा यह जानकर कि आप गाते भी हैं...पूरबी कब सुनायेंगे?
डॉ. राजेश कुमार व्यास
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