Sunday 29 March, 2009

यादों को किसने रोका है


ताउम्र हमको इक यही अफसोस रहेगा


कि हम न मुस्कुरा सके आपकी तरह।


सुरों और गीतों का अंबार था लगा,


पर हम न गुनगुना सके आपकी तरह।


(मुझे अपने कुछ पुराने शेर याद आ गए, जो कॉलेज के अंतिम दिनों में लिखे गए थे। उसे मैंने अब यों पूरा किया है -


आज भी बातें पुरानी जर्रा-जर्रा याद हैं,


हम कुछ नहीं भुला सके आपकी तरह।


करते-करते कोशिश थक गए हैं हम


दिल को न समझा सके आपकी तरह।

4 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है कभी कभी पुरानी बातें याद करना अच्छा लगता हैबधाई लिखिये लिखने की क्षमता है

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया ... लिखते रहें।

Dileepraaj Nagpal said...

wow sir, aap to bahut ache shaayer bhi hain...

TARUN JAIN said...

karte karte kosish thak gaya hai hum kya likhe is khoobsurat abhivayakti ke liye