Wednesday 22 April, 2009

क्या- क्या बेचेगी पुलिस ?

हमारी पुलिस में भ्रष्टाचार इस कदर बढ़ गया है कि पुलिस सुरक्षा का अहसास कराने की बजाय भय का अहसास कराने लगी है। जयपुर में एक सिपाही ने ड्यूटी लगाने के बदले रुपये लेने के गोरखधंधे का भंडाफोड़ कर दिया है। पुलिस में ड्यूटी का बिकना जितना शर्मनाक, उतना ही दुखद है। ड्यूटी का बिकना किसी बड़े अपराध से कम नहीं है। मालदार ड्यूटियों पर लगने के लिए पुलिस वाले ड्यूटी लगाने के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को रुपये देते हैं। जिम्मेदार अधिकारियों ने ड्यूटी के प्रकार और उससे होने वाली कमाई के लिहाज से उसकी कीमत तय कर रखी है। चूंकि मंत्रियों और बड़े अफसरों के यहां गार्ड की ड्यूटी करने के अपने मजे हैं, इसलिए इस ड्यूटी के लिए 4 से 15 हजार रुपये एकमुश्त अदा करने पड़ते हैं। योग्यता का यहां भी कोई अर्थ नहीं है। यह घूसखोरी है, दलाली है या चौथ वसूली, तीनों ही स्थितियों में ड्यूटी का बिकना पुलिस के नाम पर धब्बा है। पुलिस के आला अधिकारियों को शर्म आनी चाहिए। क्या उन्हें यह पता नहीं होगा? आला अधिकारियों ने इसे रोकने के लिए क्या किया? पुलिस वाले खुद पुलिस वालों से चौथ वसूली कर रहे हैं, क्या यह किसी को दिख नहीं रहा है? पुलिस वाले खुलेआम दारू पीकर अपनी वरदी का मखौल उड़ा रहे हैं, क्या यह नहीं दिख रहा है? चेतक मतलब पीसीआर वैन पर ड्यूटी लगवाने के लिए पैसे लिए-दिए जा रहे हैं, क्या यह भी नहीं दिख रहा? अब रात हो या दिन चेतक को देखकर लोगों को डरना चाहिए या सुरक्षित महसूस करना चाहिए? चेतक पर सवार कई पुलिस वाले क्या-क्या करते हैं, क्या इसकी पड़ताल की जाती है? क्या पुलिस महकमा अपनी सफाई और सुधार का इच्छुक नहीं है? क्या राज्य सरकार को इस पर ध्यान नहीं देना चाहिए?

कोई पुलिस वाला यह बोल सकता है, `हम तो अपनों को ही बिना लिए नहीं छोड़ते हैं, तो दूसरों को क्यों छोड़ दें? मलाईदार पोस्टिंग के लिए पुलिस में रुपये की लेन-देन कोई नई बात नहीं है। मलाईदार थानें बिकते रहे हैं। कई शिकायतें हैं, पुलिस की नौकरी भी बिकती रही है। नौकरी खरीदने वाला कोई पुलिसवाला अगर ड्यूटी खरीद रहा है, तो फिर इसमें आश्चर्य वाली कोई बात नहीं है। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे महकमे में यह तो होना ही है। पुलिस में बामुश्किल सौ में से 20 काम ईमानदारी से होते होंगे, वरना रिपोर्ट लिखाने से लेकर कार्रवाई करने तक के पैसे लिए जाते हैं। जयपुर में ही शिकायतें दर्ज होती रही हैं। कोई कार्रवाई करवाने के लिए पैसे देता है, तो कोई कार्रवाई रुकवाने के लिए पैसे देता है। पुलिस की पोल केवल अदालतें खोलती रहती हैं और कोई नहीं? राजनेताओं के लिए तो शायद पुलिस का भ्रष्ट होना ही फायदेमंद है। नेताओं, आला अफसरों और अमीरों के काम समय पर हो जाएं, बाकी सबको पुलिस एक ही डंडे से हांकने में सक्षम है। बेशर्मी तो यह कि पुलिस खुद को ही हांकने लगी है। खुद को हांकते हुए न जाने किस रसातल में जाएगी? कहा जाता है, बेहतर समाज और देश के लिए हमें एक दूसरे के काम आना चाहिए। आज किसी की, तो कल आपकी बारी होगी, लेकिन कई पुलिस वाले तो कल का इंतजार करना नहीं चाहते, आज जितना हाथ में आ जा रहा हो, उसे समेटने में लगे हैं। अपने सम्मान के प्रति लापरवाह होकर बेचने-खरीदने में लगे हैं। यह सिलसिला अगर चलता रहा, तो पुलिस खुद अपना अहित करेगी। अब समय आ गया है, न केवल जयपुर बल्कि देश की पूरी पुलिस व्यवस्था के कामकाज में आमूलचूल परिवर्तन किया जाए। उसे जवाबदेह और ईमानदार बनाया जाए, वरना देश में कानून-व्यवस्था का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

4 comments:

संगीता पुरी said...

मुझे तो लगता है कि जिन सौ में से 20 काम होते होंगे .. वो पैसे लेकर ही .. कम से कम ईमानदारी से तो इतनी उम्‍मीद नहीं की जा सकती है।

राजीव जैन said...

हमने भी शयद बिल्ली को दूध की रखवाली का काम सौप दिया है

Anil Kumar said...

लेकिन सुधार कैसे हो? कुछ सुझाव भी दे देते तो बहुत भला होता!

Gyanesh upadhyay said...

anil ji
police sudhar ke dher sare sujhao sarkari files ki shobha badha rahe hain,
kya naye sujhao dena jaroori hai?