ताउम्र हमको इक यही अफसोस रहेगा
कि हम न मुस्कुरा सके आपकी तरह।
सुरों और गीतों का अंबार था लगा,
पर हम न गुनगुना सके आपकी तरह।
(मुझे अपने कुछ पुराने शेर याद आ गए, जो कॉलेज के अंतिम दिनों में लिखे गए थे। उसे मैंने अब यों पूरा किया है -
आज भी बातें पुरानी जर्रा-जर्रा याद हैं,
हम कुछ नहीं भुला सके आपकी तरह।
करते-करते कोशिश थक गए हैं हम
दिल को न समझा सके आपकी तरह।
4 comments:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है कभी कभी पुरानी बातें याद करना अच्छा लगता हैबधाई लिखिये लिखने की क्षमता है
बहुत बढिया ... लिखते रहें।
wow sir, aap to bahut ache shaayer bhi hain...
karte karte kosish thak gaya hai hum kya likhe is khoobsurat abhivayakti ke liye
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