राजस्थान के नतीजों ने असंख्य लोगों को अचंभित किया है, लेकिन ये नतीजे कदापि अप्रत्याशित नहीं हैं। राजस्थान के लोग स्वभाव से परिवर्तन पसंद रहे हैं, अत: भाजपा की वापसी आसान नहीं थी। जहां तक अच्छा काम करने की बात है, तो अशोक गहलोत की सरकार ने भी अच्छे काम किए थे, लेकिन वह तो और बुरी तरह हारी थी। इस बार तो भाजपा ने हारते हुए भी अपनी नाक को संभाल लिया। भाजपा 75 सीटों के साथ मजबूत विपक्ष की भूमिका अदा करेगी, जो कांग्रेस विपक्ष में रहते नहीं कर पाई थी। बहरहाल, यह सवाल आने वाले दिनों में बार-बार पूछा जाएगा, भाजपा क्यों हारी? पहली बात, भाजपा का अति-आत्मविश्वास उसे ले डूबा। भाजपा इसी वजह से कांग्रेस पर `बिना दूल्हे की बारात´ जैसी हल्की टिप्पणी कर पा रही थी। आठ दिसंबर को जब मतगणना हुई, तो बिना दूल्हे की यह बारात 96 सीटों के आंकड़े तक पहुंच गई। सत्ता के मंडप तक पहुंचने के लिए मात्र पांच कदम और बढ़ाने हैं। थोड़े से प्रयास से पांच क्या, पंद्रह कदम बढ़ाने वाले भी मिल जाएंगे। दूसरी बात, सत्ता और जनता के बीच एक दूरी विगत दो वर्षों में पनप रही थी, जिस पर भाजपा के नेतृत्व ने गौर नहीं किया। बड़े-बड़े आंदोलन हुए, गोलियां चलीं, विस्फोट हुए। सक्षम भाजपा सरकार बेहतर कर सकती थी, लेकिन वह नहीं कर पाई। और तो और, जयपुर में जब दूषित जल की वजह से लोग काल के गाल में समा रहे थे, तब जिम्मेदारी स्वीकार करने की बजाय तत्कालीन जलदाय मंत्री सांवरलाल जाट ने कहा था, `जो आया है, वो जाएगा।´ तो देख लीजिए, न सांवरलाल जीतकर आ सके, न उनकी सरकार लौटने का दमखम दिखा पाई। पिछले साल भर से मिल रहे संकेत स्पष्ट थे, लेकिन इस वजह को भी भाजपा की हार के लिए पूरी तरह जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। तीसरी बात, दरअसल राजस्थान में भाजपा ने खुद अपना खेल बिगाड़ा। न केवल प्रत्याशियों की सूचियां देर से आई, बल्कि लुभावना घोषणा पत्र भी काफी लेटलतीफी के साथ पेश किया गया। गुर्जर आंदोलन के समय भी सुस्ती का परिचय दिया गया था। चौथी बात, सहयोग-समर्पण से सेनाएं मजबूत और एकजुट होती हैं, जबकि मूंछों की लड़ाई से पराजय के मार्ग खुलते हैं। विगत दिनों से भाजपा की पराजय के मार्ग लगातार खुल रहे थे, जिन्हें बंद करने को कई नेताओं ने अपनी शान के खिलाफ समझा। नतीजा सामने है। बाजी कांग्रेस के हाथ में है। अब उम्मीद कीजिए, कम से कम जद्दोजहद के बाद राजस्थान को अपना भावी मुख्यमंत्री नसीब हो जाएगा।
साधु को सदा याद रहे कि वह साधु है
1 month ago
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