मराठी आज बहुत खुश होगी, क्योंकि हिन्दी ने फिर माफ़ी मांग ली है, महाराष्ट्र के नव निर्माण में लगे लोगों का सीना चौडा हो गया होगा, मुंबई-महाराष्ट्र में फिर एक बार क्षेत्रवादी जहर उफान पर है और इसके लिए मूल रूप से जया बच्चन दोषी हैं, जिन्होंने अपने बेटे अभिषेक बच्चन की भूमिका वाली भावी फिल्म की संगीत रिलीज पार्टी में फिर हिन्दी और उत्तर भारतीयों का झंडा बुलंद कर दिया। उन्होंने कहा, `महाराष्ट्र के लोग माफ करें, वे उत्तर प्रदेश की हैं और हिन्दी में बोलेंगी।´ क्या संगीत रिलीज के अवसर पर यह बोलना जरूरी था? एक फिल्म की पार्टी में आखिर जय यूपी या जय महाराष्ट्र का नारा क्यों लगना चाहिए? जया इस टिप्पणी से बच सकती थीं। एक संभावना है, वे जोश में मन की बात बोल गई होंगी, उन्होंने सोचा नहीं होगा कि उनके व्यक्तिगत बयान का सार्वजनिक असर क्या होगा? इसे सुपर हीरो की भूमिका में उतर रहे बेटे की फिल्म के प्रति उमड़ा एक मां का प्रेम कहें या फिर फिल्म को विवाद के सहारे चर्चित कराने की सोची-समझी मुहिम? उन्होंने जो कहा है, वह निंदनीय है।
यह बताते चलें, अमिताभ से विवाह होने मात्र से जया उत्तर प्रदेश की कहलाने को बेताब हैं जबकि वे बंगलाभाषी हैं और मध्य प्रदेश मे रही हैं, उन्होंने उत्तर प्रदेश में रहना कभी पसंद नहीं किया, असली ससुराल भी वे कभी नहीं जाती हैं, उत्तर प्रदेश उनके लिए मात्र राजनीत का अखाडा है, हिन्दी फिल्मों का एक मुख्य ब्यापार केन्द्र। लेकिन उनके कथित उत्तर प्रदेश प्रेमी बयान के जवाब में महाराष्ट्र नवनिर्माण पर जो असर पड़ा है, उसे समझना बेहद मुश्किल है। क्या ऐसे बयानों से महाराष्ट्र को भय लगता है? क्या कट्टर मराठी नेता राजभाषा हिन्दी से अचानक डरने लगे हैं? क्या महाराष्ट्र या मुंबई की तरक्की में हिन्दी का हाथ नहीं रहा है? क्या यूपी और बिहार के लोगों ने वहां खून-पसीना नहीं बहाया है? हिन्दी के अनादर से मुंबई, महाराष्ट्र या मराठी भाषा का कदापि भला नहीं होगा। वास्तव में जो लोग हिन्दी का विरोध कर रहे हैं, वे मुंबई के भरोसे पलने वाले करोड़ों रुपहले सपनों का कत्ल कर रहे हैं। हिन्दी के विरोध से सपनों का शहर ध्वस्त हो रहा है। न जाने कैसे बॉलीवुड की रचना कुछ लोग करना चाहते हैं? क्या हॉलीवुड में अंग्रेजी का विरोध हो सकता है?
दूसरी ओर, शिव सेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे भी क्षेत्रवाद की सेवा में फिर कलम चलाया है, उन्होंने शाहरुख खान के दिल्लीवाला होने के गुमान पर आपत्ति की है। उन्होंने कहा है, आप दिल्ली वाले हो, तो दिल्ली जाओ, मुंबई में क्या कर रहे हो? आश्चर्य होता है, देश के एक वयोवृद्ध नेता के मुख से ऐसी हल्की टिप्पणी कैसे आ जाती है? उनका काम देश को मजबूत करना होना चाहिए, लेकिन वे युवाओं को न जाने क्या संदेश देना चाहते हैं? बाला साहेब जैसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति ने मुंबई और महाराष्ट्र के हित चिंतन तक ही खुद को समेटकर न केवल पत्रकारिता, बल्कि राजनीति के साथ भी न्याय नहीं किया है। काश, क्षेत्रवाद और भाषा के भंवर से ऊपर उठकर उनकी ऊर्जा पूरे राष्ट्र को मजबूत करने में लगती, तो कितना अच्छा होता।
7 comments:
त्रासद स्तिथि है बंधू...हम अभिशिप्त हैं इस ये सब देखने सुनने को...
नीरज
hindi aur marathi me to aisa prem he dono ki lipi hi devnagri he. maharastra ke sign board hindibhashiyon ko hindi ilakon se behtar ehsas karaten hein.
भाषा के नाम पर भी वही लोग विवाद खड़ा करते हैं जिन्हें फूट डालो व राज करो की राजनीति करके वोटों की फसल उगानी होती है।
क्षेत्रवाद की क्षुद्र मानसिकता से ग्रसित विघटनवादी तत्वों द्वारा राष्ट्र को विखण्डित करने का एक कुत्सित प्रयास है यह।
सोरी हिन्दी ने नहीं कहा.. राजनिति ने कहा..
अफसोसजनक....दुखद....निन्दनीय!!
Ranjan jee, maafi koi bhi mange apmaan to hidi ka hota hai, rajneet ke sorry bolne ka koi matlab hai kya,
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