बिहारी राजनीति को ज्यादा महत्व देते हैं, क्या यह बात फिर साबित नहीं हुई है? बिहार को क्या अपना फायदा नहीं देखना चाहिए था? एक पिछड़ा हुआ प्रदेश, जहां बिजली, सडक़, पानी इत्यादि कोई भी मूलभूत व्यवस्था सही नहीं है, वहां के लोग जब राजनीति करते दिखते हैं, तो दुख ही होते हैं। बिहार के पुराने नेताओं ने भी यही किया, सारा प्यार दूसरे प्रदेशों पर उड़ेलते रहे। देश को पहले देखने की यही अदा बिहारियों पर भारी पड़ी, बिहारी राजनेताओं की समझ अभी भी नहीं खुली है। पंजाब, महाराष्ट्र या दक्षिण के राज्यों से बिहार ने कुछ नहीं सीखा है, इसलिए ये राज्य प्रगति करते गए हैं और बिहार वर्षों तक पिछड़ता चला गया है। बिहार तो इस देश के लिए सस्ते और मेहनती श्रमिक पैदा करने का कारखाना है। बिहार विकास के लिए रो रहा है, लेकिन यहां के नेता सिर्फ राजनीति में जुटे हैं। बिहार की माटी बार-बार आह्वान कर रही है, रहम करो, विकास करो, राजनीति छोड़ो, लेकिन बिहार के नेता तो मानों राजनीति के ठेकेदार हैं। नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी को रोकने को अपना परम कत्र्तव्य बना लिया। दूसरे किसी राज्य में किसी नेता ने मोदी के खिलाफ वैसे तेवर नहीं दिखाए, जैसे नीतीश ने दिखाए। नरेन्द्र मोदी का देश के सभी राज्यों में स्वागत है, लेकिन बिहार की सरकार उनका स्वागत करने को तैयार नहीं, शिष्टाचार का भी आभास नहीं है, क्यों? क्योंकि राजनीति करनी है, राजनीति बड़ी चीज है, बिहार तो बस बिसात है, जिस पर राजनीति के मोहरे चले जाएंगे। कभी लालू के हाथ में बाजी होगी, कभी नीतीश कुमार के हाथ में, बिहार तो हर हाल में हारेगा-लुटेगा।
बिहारी जब बिहार लौटकर जाते हैं, तो सुविधाओं का अभाव देखकर दिल रोता है। हिन्दू भी रोते होंगे और मुसलमान भी। न अंधेर नगरी कहीं जा रही है और न राजा चौपट होने से बच रहा है। कथित सेकुलरिटी की झूठी आफत गले पड़ी हुई है, लोग शायद अंधेरे में रहकर सेकुलरिटी को बचाना चाहते हैं। अगर व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए, अगर कानून और थाने सक्षम हों और ठीक से काम करें, तो सेकुलरिटी का प्रदर्शन करने की कोई जरूरत नहीं। विकास का लाभ मुसलमानों को भी मिलेगा और हिन्दुओं को भी। भाजपा ने कभी सेकुलरिटी का दावा नहीं किया, उसका जोर विकास पर है, कुछ राज्यों में उसने अच्छा काम किया है। दूसरी ओर, कांग्रेस सबसे सेकुलर पार्टी कहलाती है, उसी के राज्य में सत्येन्द्र नारायण सिन्हा मुख्यमंत्री थे, बिहार के भागलपुर में दंगा हुआ था। सैंकड़ों लोग मरे थे। कांग्रेस से लोगों ने मुंह फेर लिया, लालू को सत्ता हासिल हुई, तब नीतीश कुमार भी लालू के साथ थे, लालू-राबड़ी जब तक रहे, भागलपुर दंगा पीडि़तों को पूरा न्याय नहीं मिला। फिर भी लालू टोपी लगाकर अल्पसंख्यक हितैषी होने का ढोंग रचते हैं, लेकिन कौन मुस्लिम हैं, जो ताली बजाते हैं। लालू सबसे सेकुलर नेता थे, उन्होंने आडवाणी के रथ को बिहार में रोक दिया था, नीतीश कुमार भी सेकुलर नेता हैं, उन्होंने मोदी के रथ के राह पर निकलने से पहले ही अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं। क्यों? क्योंकि बिहार ने सेकुलरिटी का ठेका ले रखा है? उधर, देखिए, जो असम कुछ दिनों पहले सांप्रदायिक दंगे की आग में जल रहा था, वहां से राज्यसभा सांसद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नीतीश कुमार को धर्मनिरपेक्ष बता रहे हैं, और नीतीश कुमार फुल के कुप्पा हो गए हैं।
लेकिन क्या उनके फुल के कुप्पा होने से मुसलमानों का पेट भर जाएगा? क्या कथित उदारवादी हिन्दुओं को विकास नहीं चाहिए? हम झूठी सेकुलरिटी को कब तक बचाते रहेंगे, और क्यों बचाते रहेंगे? बिहारी अपना हित क्यों नहीं देख रहे हैं, सेकुलरिटी राजनीति के पेड़ पर लगने वाला कोई फल नहीं है, सेकुलरिटी तभी फलेगी-फुलेगी, जब विकास होगा। विकास होगा, रोजगार होगा, तो अमन-चैन अपने आप आएगा, और तब जो दंगाई होंगे, उन्हें भीड़ से छांटकर अलग करना ज्यादा आसान हो जाएगा, अपने विकास के प्रति सजग लोग हिंसा की निरर्थकता को समझेंगे। लालू और नीतीश ही क्यों, आप रामविलास पासवान को देख लीजिए, जो ओसामा बिन लादेन के हमशक्ल को साथ लेकर वोट मांगने निकलते थे, क्या यही सेकुलरिटी है?
धिक्कार है ऐसे बिहारी नेताओं पर जो राजनीति का संकीर्ण आकलन करते हैं, बिहार का हित नहीं देखते। जब लालू के पास सत्ता थी, तो केन्द्र में विरोधी पार्टी की सरकार थी। जब नीतीश के पास सत्ता आई, तो केन्द्र में विरोधी पार्टी की सरकार थी, अगर मान लीजिए, केन्द्र में नरेन्द्र मोदी आ गए, तो उस बिहार के साथ क्या होगा, जहां की सरकार नरेन्द्र मोदी को अपने राज्य में घुसने से रोकना चाहती है? बिहार के मुखिया मोदी के साथ गलत कर रहे हैं, शिष्टाचार तक भुला चुके हैं, क्या उनके पास आंकड़े हैं कि गुजरात से कितने बिहारियों की रोजी-रोटी चल रही है? बिहार वही गलती कर रहा है, जो पश्चिम बंगाल और उड़ीसा कर रहे हैं, विडंबना देखिए, तीनों ही राज्य पिछड़े हैं, लेकिन शायद यहां के नेता सेकुलरिटी की गारंटी देना चाहते हैं, क्योंकि यह गारंटी आसान है। मुश्किल तो विकास की गारंटी में है, जो कोई नहीं देता।