Thursday 12 January, 2012

रोटी से पोर्न तक


बड़ी खुशी हुई थी यह जानकर कि प्रेस को सुधारक, उद्धारक मिल गया, आत्महत्या कर रहे किसान अब आत्महत्या नहीं करेंगे, क्योंकि किसानों के दुख-तकलीफ की खबरें अब अखबारों में छपने लगेंगी। गरीबों को रोटी दिलवाने के लिए प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू दृढ़ संकल्प नजर आ रहे थे। वे मीडिया को कोसने में लगे थे कि मीडिया गरीबों की चिंता नहीं करता, लेकिन स्वयं उन्होंने जो ताजा चिंता की है, वह कैसी है, कितनी जायज है और उसका प्रभाव क्या होगा?
काटजू एक पोर्न कर्मी के समर्थक होकर आगे आए हैं। रोटी का समर्थक परोक्ष रूप से पोर्न का समर्थक हो गया है? कायदे से काटजू को इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी, लेकिन संभलकर टिप्पणी करने की नसीहत तो दूसरों के लिए है, काटजू स्वयं पर इस नियम को शायद लागू नहीं करते। उन्होंने कहा है कि पोर्न सितारा सनी लियोन के साथ समाज बहिष्कृत की तरह व्यवहार न किया जाए। उन्होंने यह भी कहा है कि अगर भारत में उनका व्यवहार सामाजिक रूप से स्वीकार्य है, तो अमरीकी पोर्न सितारा सनी के अतीत को भारत में उनके खिलाफ इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
काटजू ने न जाने कैसे यह तय कर लिया कि सनी अपने पोर्न इतिहास को पीछे छोड़ चुकी हैं? किसी ऐसे कार्य को इतिहास कैसे ठहराया जा सकता है, जो कार्य वर्तमान में आर्थिक लाभ दे रहा हो? सनी लियोन बाकायदे एक कंपनी में हिस्सेदार हैं, उनकी अपनी वेबसाइट है, जिसके जरिये लाखों डॉलर का वयस्क व्यवसाय होता है। गौर करने की बात है, सनी ने अभी तक यह घोषणा नहीं की है कि वो पोर्न इंडस्ट्री छोड़ रही हैं, लेकिन तब भी काटजू उनके पोर्न अतीत को इतिहास मान रहे हैं?
जिस जस्टिस ने पूरी निर्ममता के साथ मीडिया को उसके हल्के काम के लिए धिक्कारा, वही जस्टिस पूरी उदारता के साथ किसी के संगीन काम को रंगीन स्वीकार्य बनाने की कोशिश में है?
बचाव में काटजू कहते हैं, सनी ने अमरीका का कोई कानून नहीं तोड़ा, तो खुले दिमाग के उदार भारतीयों को इस मामले को भी इसी भावना के साथ लेना चाहिए। सनी अगर भारत में किसी कानून को नहीं तोड़ती हैं, तो उन्हें यहां सामाजिक रूप बहिष्कृत के तौर पर नहीं देखना चाहिए। गजब हो गया, मतलब यह कि आप अमरीका में भारतीयता का खून कीजिए, भारतीय कानूनों की धज्जियां उड़ाइए, लेकिन तब भी जब भारत आइए, तो आपका तहेदिल से स्वागत है। नैतिकता के भारतीय पैमाने अमरीका में लागू नहीं होते, इसलिए अमरीका का अनैतिक आदमी भारत आकर नैतिक हो जाता है, क्योंकि उसके पास यहां अनैतिक आचरण के वैध मौके नहीं हैं। भारतीयता की नजर में जो चीज भारत में अवैध है, वह चीज अमरीका हो या ब्रिटेन, हर जगह अवैध ही होनी चाहिए। अनैतिकता या नैतिकता को देशों की परीधि में बांधकर देखना कतई भारतीयता नहीं है।
सनी ने अपने किए के लिए माफी नहीं मांगी, बल्कि यह कहा कि आप अगर मुझे पसंद नहीं करते, तो भाड़ में जाइए, आपकी मुझे कोई परवाह नहीं। आपको जो भी पसंद हो आप कीजिए, यह अमरीका में तो चल जाएगा, लेकिन आपको भारत में अगर कुछ करना है, तो आसपास के लोगों की सहमति तो आपको लेनी पड़ेगी, परिवार है, समाज है, मित्र हैं, उन्हें आप खारिज नहीं कर सकते।
बताया जाता है, सनी को उसके परिवार वालों में से किसी ने भी बधाई नहीं दी, लेकिन सनी को जब जस्टिस काटजू साहब का समर्थन मिल गया है, तो फिर कमी क्या रह गई? सबके देखते-देखते सनी ने परिवार तो बना ही लिया है। दिलफेंक हसीनाओं को वैसे भी दिल जीतने में कितना वक्त लगता है?
आश्चर्य है, इतिहास के गहरे जानकार जस्टिस काटजू ने आम्रपाली की तुलना एक पोर्न सितारा से की है। क्या आम्रपाली पोर्न सितारा थी? जस्टिस साहब जानते नहीं हैं कि आम्रपाली क्या थी और वैशाली में उसका कितना स मान था। आम्रपाली के साथ बैठना या उसकी महफिल में शामिल होना भी एक स मान की बात थी। आम्रपाली की पोर्न सितारा से तुलना आम्रपाली और भारतीय संस्कृति का अपमान है। आम्रपाली की तो किस्मत थी, उसे गौतम बुद्ध मिले थे, पता नहीं सनी लियोन को कब कोई गौतम बुद्ध मिलेगा, जो उसका उद्धार कर देगा?
इतना ही नहीं, जस्टिस काटजू ने जिसस के चरण धोने वाली मैरी मेगडालेने की भी चर्चा पोर्न सितारा के संदर्भ की है। अद्भुत हैं ये नई उपमाएं, जो शायद भारतीय प्रेस के लिए बड़े काम की साबित होंगी? धन्य हैं प्रेस परिषद के अध्यक्ष, चर्चा के लिए क्या धांसू गरीब हितैषी मुद्दा उठाया है?
सनी के बिग बॉस में शामिल होने के खिलाफ ३८ वैध शिकायतें आईं, लेकिन ब्रॉडकास्ट कंज्यूमर्स क प्लेंट काउंसिल (बीसीसीसी) ने कुछ नहीं किया। बिग बॉस के जरिये सनी की छवि को चमकाने की पूरी कोशिश हुई। कोशिश कामयाब हुई है, यह जस्टिस काटजू के सनी समर्थक बयानों से लगता है।
आगे का रास्ता खुल चुका है, अब हर रियलिटी कार्यक्रम में एक पोर्न कर्मी को शामिल किया जा सकता है? भारतीय मनोरंजन उद्योग तो ऐसी गंगा है, जहां दुनिया भर में बड़े-बड़े पापी अपने पाप धोएंगे। सरकार रोकेगी नहीं, क्योंकि उसे तत्कालिक लाभ चाहिए और जस्टिस काटजू जैसे प्रेस के दिग्गज महापुरुष जमाने भर के पापियों को बहिष्कार से बचाने के लिए अपील जारी करेंगे।
मनोरंजन और मीडिया की दुनिया में एक गजब का हरिद्वार बन गया है, जहां तन धोने या हाथ धोने के पूरे मौके हैं। जिसे जितना हाथ लग रहा है, धो रहा है।

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