Tuesday, 17 January 2012

An article in jansatta

Thursday, 12 January 2012

रोटी से पोर्न तक


बड़ी खुशी हुई थी यह जानकर कि प्रेस को सुधारक, उद्धारक मिल गया, आत्महत्या कर रहे किसान अब आत्महत्या नहीं करेंगे, क्योंकि किसानों के दुख-तकलीफ की खबरें अब अखबारों में छपने लगेंगी। गरीबों को रोटी दिलवाने के लिए प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू दृढ़ संकल्प नजर आ रहे थे। वे मीडिया को कोसने में लगे थे कि मीडिया गरीबों की चिंता नहीं करता, लेकिन स्वयं उन्होंने जो ताजा चिंता की है, वह कैसी है, कितनी जायज है और उसका प्रभाव क्या होगा?
काटजू एक पोर्न कर्मी के समर्थक होकर आगे आए हैं। रोटी का समर्थक परोक्ष रूप से पोर्न का समर्थक हो गया है? कायदे से काटजू को इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी, लेकिन संभलकर टिप्पणी करने की नसीहत तो दूसरों के लिए है, काटजू स्वयं पर इस नियम को शायद लागू नहीं करते। उन्होंने कहा है कि पोर्न सितारा सनी लियोन के साथ समाज बहिष्कृत की तरह व्यवहार न किया जाए। उन्होंने यह भी कहा है कि अगर भारत में उनका व्यवहार सामाजिक रूप से स्वीकार्य है, तो अमरीकी पोर्न सितारा सनी के अतीत को भारत में उनके खिलाफ इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
काटजू ने न जाने कैसे यह तय कर लिया कि सनी अपने पोर्न इतिहास को पीछे छोड़ चुकी हैं? किसी ऐसे कार्य को इतिहास कैसे ठहराया जा सकता है, जो कार्य वर्तमान में आर्थिक लाभ दे रहा हो? सनी लियोन बाकायदे एक कंपनी में हिस्सेदार हैं, उनकी अपनी वेबसाइट है, जिसके जरिये लाखों डॉलर का वयस्क व्यवसाय होता है। गौर करने की बात है, सनी ने अभी तक यह घोषणा नहीं की है कि वो पोर्न इंडस्ट्री छोड़ रही हैं, लेकिन तब भी काटजू उनके पोर्न अतीत को इतिहास मान रहे हैं?
जिस जस्टिस ने पूरी निर्ममता के साथ मीडिया को उसके हल्के काम के लिए धिक्कारा, वही जस्टिस पूरी उदारता के साथ किसी के संगीन काम को रंगीन स्वीकार्य बनाने की कोशिश में है?
बचाव में काटजू कहते हैं, सनी ने अमरीका का कोई कानून नहीं तोड़ा, तो खुले दिमाग के उदार भारतीयों को इस मामले को भी इसी भावना के साथ लेना चाहिए। सनी अगर भारत में किसी कानून को नहीं तोड़ती हैं, तो उन्हें यहां सामाजिक रूप बहिष्कृत के तौर पर नहीं देखना चाहिए। गजब हो गया, मतलब यह कि आप अमरीका में भारतीयता का खून कीजिए, भारतीय कानूनों की धज्जियां उड़ाइए, लेकिन तब भी जब भारत आइए, तो आपका तहेदिल से स्वागत है। नैतिकता के भारतीय पैमाने अमरीका में लागू नहीं होते, इसलिए अमरीका का अनैतिक आदमी भारत आकर नैतिक हो जाता है, क्योंकि उसके पास यहां अनैतिक आचरण के वैध मौके नहीं हैं। भारतीयता की नजर में जो चीज भारत में अवैध है, वह चीज अमरीका हो या ब्रिटेन, हर जगह अवैध ही होनी चाहिए। अनैतिकता या नैतिकता को देशों की परीधि में बांधकर देखना कतई भारतीयता नहीं है।
सनी ने अपने किए के लिए माफी नहीं मांगी, बल्कि यह कहा कि आप अगर मुझे पसंद नहीं करते, तो भाड़ में जाइए, आपकी मुझे कोई परवाह नहीं। आपको जो भी पसंद हो आप कीजिए, यह अमरीका में तो चल जाएगा, लेकिन आपको भारत में अगर कुछ करना है, तो आसपास के लोगों की सहमति तो आपको लेनी पड़ेगी, परिवार है, समाज है, मित्र हैं, उन्हें आप खारिज नहीं कर सकते।
बताया जाता है, सनी को उसके परिवार वालों में से किसी ने भी बधाई नहीं दी, लेकिन सनी को जब जस्टिस काटजू साहब का समर्थन मिल गया है, तो फिर कमी क्या रह गई? सबके देखते-देखते सनी ने परिवार तो बना ही लिया है। दिलफेंक हसीनाओं को वैसे भी दिल जीतने में कितना वक्त लगता है?
आश्चर्य है, इतिहास के गहरे जानकार जस्टिस काटजू ने आम्रपाली की तुलना एक पोर्न सितारा से की है। क्या आम्रपाली पोर्न सितारा थी? जस्टिस साहब जानते नहीं हैं कि आम्रपाली क्या थी और वैशाली में उसका कितना स मान था। आम्रपाली के साथ बैठना या उसकी महफिल में शामिल होना भी एक स मान की बात थी। आम्रपाली की पोर्न सितारा से तुलना आम्रपाली और भारतीय संस्कृति का अपमान है। आम्रपाली की तो किस्मत थी, उसे गौतम बुद्ध मिले थे, पता नहीं सनी लियोन को कब कोई गौतम बुद्ध मिलेगा, जो उसका उद्धार कर देगा?
इतना ही नहीं, जस्टिस काटजू ने जिसस के चरण धोने वाली मैरी मेगडालेने की भी चर्चा पोर्न सितारा के संदर्भ की है। अद्भुत हैं ये नई उपमाएं, जो शायद भारतीय प्रेस के लिए बड़े काम की साबित होंगी? धन्य हैं प्रेस परिषद के अध्यक्ष, चर्चा के लिए क्या धांसू गरीब हितैषी मुद्दा उठाया है?
सनी के बिग बॉस में शामिल होने के खिलाफ ३८ वैध शिकायतें आईं, लेकिन ब्रॉडकास्ट कंज्यूमर्स क प्लेंट काउंसिल (बीसीसीसी) ने कुछ नहीं किया। बिग बॉस के जरिये सनी की छवि को चमकाने की पूरी कोशिश हुई। कोशिश कामयाब हुई है, यह जस्टिस काटजू के सनी समर्थक बयानों से लगता है।
आगे का रास्ता खुल चुका है, अब हर रियलिटी कार्यक्रम में एक पोर्न कर्मी को शामिल किया जा सकता है? भारतीय मनोरंजन उद्योग तो ऐसी गंगा है, जहां दुनिया भर में बड़े-बड़े पापी अपने पाप धोएंगे। सरकार रोकेगी नहीं, क्योंकि उसे तत्कालिक लाभ चाहिए और जस्टिस काटजू जैसे प्रेस के दिग्गज महापुरुष जमाने भर के पापियों को बहिष्कार से बचाने के लिए अपील जारी करेंगे।
मनोरंजन और मीडिया की दुनिया में एक गजब का हरिद्वार बन गया है, जहां तन धोने या हाथ धोने के पूरे मौके हैं। जिसे जितना हाथ लग रहा है, धो रहा है।

Wednesday, 11 January 2012

बिग बॉस पांच और नैतिकता

बिग बॉस में होने वाली तमाम नाटकीयता, फिक्सिंग, पक्षपात और आरोपों के बावजूद मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं कि बिग बॉस मेरा एक प्रिय कार्यक्रम रहा था। मुझे पहले के चार बिग बॉस पसंद आए, लेकिन पांचवां बिग बॉस ऐसा था, जिसे देखते हुए मुझे लगा कि अब पहले वाली बात नहीं रही।
एक तो हाउस मेट्स का चयन ही घटिया स्तर का था। बुद्धू बक्से से चमके चेहरों की भरमार थी। अंतिम पांच हाउस मेट्स में चार - जूही परमार, सिद्धार्थ, स्काई और अमर टीवी से ही चमके हैं। अव्वल तो बिग बॉस पांच का घर झगड़ों, गुटबाजी और अतार्किकता का गढ़ था। हंसी-ठिठोली, भावनात्मक लमहे, संगीतमय लमहे, मिलने-जुलने के लमहे कम ही रहे। टास्क पर कैमरा कम था और झगड़े पर ज्यादा। शायद बिग बॉस के सम्पादक ऐसे लोग थे, जिन्हें दूसरों के फालतू झगड़ों में ज्यादा आनंद आता है। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि रागेश्वरी के घर से निकलने के बाद से बिग बॉस का माहौल और प्रभाव लगातार गिरता गया और उठा तब जब ऑस्ट्रेलियन क्रिकेटर एंड्र्यू साइमंड्स का आगमन हुआ। आती क्या खंडाला को जब उन्होंने हाथी का रुंडाला गाया, तो वास्तव में बिग बॉस के घर में ऐसे ठहाके गूंजे, जिसके लिए यह घर ही नहीं, बिग बॉस के प्रेमी भी तरस गए थे।
वरना इस बार घर में न तो कोई हंसोड़ गया, न कोई गवैया और न कोई गंभीर कलाकार। सारे नौसिखियों ने इसमें भागीदारी की और केवल खुद से प्यार किया। सबकी नजर एक करोड़ रुपए पर थी।
सबसे बुरा तब हुआ, जब एक ऐसी हस्ती घर में पहुंची, जिसका परिचय खुलकर नहीं दिया जा सकता और उस भाषा में दिया भी नहीं गया, जो बिग बॉस के घर की भाषा है। पोर्नोग्राफी की इंडस्ट्री की उपयोगिता पर कोई सामाजिक विवेचना मेरी नजर में नहीं आई है। पोर्नोग्राफी निजता का निर्मम विस्फोट है। खुशी के अभाव पर विलाप है। सतत रुदन है। इसमें न केवल निजता के चिथड़े उड़ जाते हैं, बल्कि मानवीयता भी सवालों के घेरे में आ जाती है, उसमें स्वाभाविकता तो नहीं के बराबर होती है। उसकी नाटकीयता एक ऐसे लोग में ले जाती है, जहां कामसूत्र के रचनाकार वात्स्यायन भी नहीं ले गए थे। ताले टूटने का मतलब ही है कि चोरी या फिर चोरी को आमंत्रण। चोरों को जब यह समाज स्वीकार नहीं करता, तो फिर किसी पोर्न कर्मी को कैसे करेगा? ये किसी दूसरी दुनिया के लोग हैं, एक लंबी-चौड़ी भटकी हुई इंडस्ट्री, पैसा कमाने का सबसे आसान जरिया। अमरीका में तो इससे नाम भी कमाते हैं लोग, जैसे सनी लियोन ने कमाया और पहुंच गई भारत। वह हुआ, जो नहीं होना चाहिए था। यह देश नगरवधुओं और आम्रपालियों को स्वीकार कर सकता है, लेकिन माफ कीजिएगा, पोर्न कर्मियों के लिए कोई जगह नहीं है और होनी भी नहीं चाहिए। नगरवधुओं और आम्रपालियों की भी निजता रही है, उन्होंने कभी अपनी निजता का व्यापार नहीं किया, पोर्नोग्राफी आखिर क्या सिखाती है, सहज प्रेम के अभाव का शोकगीत! यह देश उत्सवों का देश रहा है, शोकगीतों का नहीं।
बेशक, इस शोकगीत को रोकना सरकार का काम था। कहा जाता है, जो सरकारें अपने लोगों को अच्छा शासन नहीं देतीं, रोजी-रोटी नहीं देतीं, ऐसी सरकारें खुलेपन के साथ आम लोगों का मनोरंजन करती हैं, ताकि आम लोग बेहोश रहें। अन्ना को कुछ देर के लिए ही सही, भूल जाएं और सनी पर चर्चा करें। अपने देश में सनी का मतलब है सुनील मनोहर गावस्कर और सनी देवोल, और यही मतलब बचा रहना चाहिए। जो नया मतलब खड़ा किया जा रहा है, वह हमारे समाज और टीवी इंडस्ट्री को दुखद रसातल में ले जाएगा। कूड़े की किस्मत ही यही है कि उसे पीछे फेंका जाए, आगे कतई नहीं। हमारी मनोरंजन इंडस्ट्री को कपड़े खोलने या दूसरों से खुलवाने के इस दुखद स्तर तक नहीं जाना चाहिए। मनोरंजन की दुनिया इतनी संकुचित नहीं है, उसमें अभी बहुत गुंजाइश है।
जिनके पास मसाले नहीं हैं, या जिनके मसाले खत्म हो चुके हैं, ऐसे महेश भट्ट की दुकानदारी क्या अब पोर्नकर्मी संभालेंगे? क्या भट्ट साहब का यही ‘सारांश’ है?
अगर सनी लियोन के विचारों की नारीवादी विवेचना करें, तो भी वह टिकती नहीं है। वह साफ कहती है, उसने पैसे के लिए यह काम किया। ज्यादा और ज्यादा पैसा मिलता गया और वह अपने क्षेत्र में आगे बढ़ती चली गई। छिपाकर किया गया एक ऐसा काम, जिसे उसके पिता-माता नहीं देख सकते। लेकिन वह पिता कैसा है, जो कहता है, बेटी, तुझे जो करना था, बताकर करना था, लेकिन अब जो भी करना ठीक से करना।
क्या यहां परिवार और समाज के शव की सड़ांध नहीं आ रही है?

Monday, 9 January 2012

गाँधी जी के एक वंशज


पिछले दिनों अफ्रीका पर पेज तैयार करते हुए, साउथ अफ्रीका में गाँधी जी के एक वंशज से संपर्क हुआ. गाँधी जी के दूसरे बेटे मणिलाल गाँधी वहीँ साउथ अफ्रीका में रह गए थे, उनकी बेटी इला गाँधी की शादी वहीँ रामगोबिन परिवार में हुई. उनके बेटे किदार रामगोबिन से मेल के जरिये सवाल भेजे, मेल के जरिये ही जवाब आया और पत्रिका में काफी सम्पादित होकर प्रकाशित हुआ, पेश है उस बातचीत का मूल अंग्रेजी पाठ.

1st - what you feel about africa?
My grandparents settled in South Africa. My parents were born here and I
was born here. For me South Africa is my home and as such I love my
country. I am very hopeful about South Africa and Africa. While Africa is
a content which has only recently emerged from colonial oppression it is a
country with tremendous potential. It has sufficient land; the population
is not excessively high, it has fertile land and is rich in mineral wealth.
However it does face the threat of re colonisation through new means, among
which are the possibilities of sale of land to large overseas companies;
Sale of mineral wealth to these large companies; increasing dependency on
foreign capital and remaining technologically backward in a high tech
orientated world. Unless Africa does not seriously address these issues it
can find itself enslaved all over again.

2nd - Why the Africa is being considered as a hopeful continent?

I believe that the reason to place hopes in Africa is because the continent
remains unspoilt by development and pollution; it has the potential to
develop into a naturally beautiful continent offering shelter to many of
the over crowded countries of the word, it has the potential to be a
wealthy continent if it is able to keep its wealth within its borders.

3rd - What India and it's government should do for African countries?

I believe that Africa CAN LEARN A GREAT DEAL FROM India and other
countries. Perhaps some of the key points on which India can assist are:-
one, Skills transfer to enable each person in Africa to become self
sufficient through, production and manufacture of goods.
two. Transference of information on sustainable development.
three, Try to ensure that the raw materials remain in the country and that
the benefit of the wealth is distributed fairly among the people in a
bid to address the issues of poverty, hunger and homelessness.
four, Help to increase the technological skills and access to appropriate
instruments in Africa, without causing pollution and polarisation of
the population into those very wealthy and those who are absolutely
poor.
five, Instead of moving into large scale industrial development, look at
smaller scale industries with the potential of increased job
opportunities.
These are some thoughts on these three questions that I am able to provide
at this stage.

Sunday, 1 January 2012

Happy new year 2012




आज एक जनवरी है, जयपुर में भी ठंड काफी है, दोपहर तक सूरज महाराज के दर्शन नहीं हुए। सोचा, क्या नया किया जाए, कैसे आप सभी को मुबारकबाद दी जाए। देखा, तो घर के गमलों में खिले फूल नजर आए। उन्हें पहले मैंने कहा और फिर मेरे कैमरे ने कहा - हैप्पी न्यू ईयर। आप भी कहिए . . .





ग्रेगोरियन कलेंडर का नव वर्ष २०१२ आप सभी को मुबारक हो।