आंध्र के अनेक नेता दिल्ली में हैं, केन्द्रीय नेताओं व मंत्रियों से उनकी मुलाकात हो रही है, लेकिन कोई यह नहीं बता रहा कि बातचीत किस दिशा में जा रही है। आंदोलन कर रहे लोगों का संयम जवाब देने लगा है। 12, 13, 14 अक्टूबर को रेल रोकने का ऎलान हो गया है। आंध्र में अगर रेलों को रोका गया, तो दक्षिण भारत व उत्तर भारत के बीच रेल संपर्क काफी हद तक बाघित हो जाएगा।
इससे जो स्थितियां बनेंगी, शायद सरकार को उनका पूरा आभास नहीं है।
जिम्मेदार नेता अभी भी तेलंगाना मामले के राजनीतिक समाधान के मूड में हैं। अतीत की तरह तेलंगाना के कितने नेताओं को मंत्री बनाया जाएगा? तेलंगाना के मसले पर अब राजनीति रूकनी ही चाहिए। जो प्रदेश कभी तेजी से आगे बढ़ रहा था, जिस हैदराबाद का पूरी दुनिया में नाम है, उस शहर के नाम पर बट्टा लग रहा है। आंदोलन की वजह से जो नुकसान हुआ है या जो नुकसान आने वाले दिनों में सरकारें होने देना चाहती हैं, उनकी भरपाई कैसे होगी? प्रधानमंत्री तेलंगाना मसले को सुलझाने के लिए कुछ समय चाहते हैं, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि कितना समय? लोग भूले नहीं हैं, यह वही केन्द्र सरकार है, जिसने तेलंगाना गठन का मन बना लिया था और घोषणा भी कर दी गई थी, लेकिन पांव पीछे खींच लिए गए और राजनीति शुरू हो गई। बहुत दुख की बात है, अपने देश को दिनों-दिनों तक चलने वाले आंदोलनों का रोग-सा लग गया है।
आंदोलन गुर्जरों का हो, अन्ना या तेलंगाना का, जब तक पानी सिर के ऊपर से नहीं बहता, सरकारों के साये में कोरी बातचीत की राजनीति चलती रहती है। केन्द्र सरकार को ध्यान रखना चाहिए समस्याओं को सिर्फ संवाद में उलझाने पर समस्याएं बढ़ती हैं, घटती नहीं। सरकार और वोटों के शौकीन राजनेता क्या यह बता पाएंगे कि तेलंगाना के उन बच्चों का क्या दोष है, जो स्कूल नहीं जा पा रहे हैं? उन तेलंगानावासियों का क्या दोष है, जिन्हें दशकों से तेलंगाना का सपना दिखाया गया है? जब नए राज्य गठन के विगत अनुभव अच्छे रहे हैं, तो फिर तेलंगाना पर राज्य व देश का साधन व समय खराब नहीं करना चाहिए। समाधान जल्द होना चाहिए।
मेरे द्वारा लिखा गया एक सम्पादकीय
1 comment:
nice comment.....
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