पत्रकारिता आधार, प्रकार और व्यवहार पत्रकारिता एक अत्यधिक व्यावहारिक क्षेत्र है। यहां मची आपाधापी में शायद ही किसी के पास फुरसत है कि वह समस्याओं के विस्तार में जाए और विधिवत समाधान बताने का कष्ट करे। मैंने पत्रकारिता में अनेक नए व पुराने लोगों को भी अपने सवालों के साथ परेशान-भटकते देखा है। एक बड़ी जमात है, जो गलतियां तो निकालती है, आलोचना भी करती है, लेकिन यह नहीं बताती कि आखिर काम कैसे किया जाए, काम कैसे सुधारा जाए। हर काम अच्छा नहीं होता, लेकिन जो अच्छा नहीं है, उसे अच्छा कैसे बनाया जा सकता है, ऐसे ही अनेक सवाल हैं, जिनके जवाब खोजने की कोशिश में ही धीरे-धीरे यह किताब लिखी गई है। प्रस्तुत पुस्तक में अकादमिक पहलुओं को लगभग छोड़ दिया गया है और केवल व्यावहारिक दृष्टि से उत्तर देने या समाधान बताने की कोशिश की गई है। यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि मैंने इस पुस्तक में अनेक विषयों पर स्वतंत्रतापूर्वक विचार करने की कोशिश की है, समस्याओं के समाधान बढऩे की कोशिश की है। हमेशा इस लक्ष्य का ध्यान रखा है कि पुस्तक लाभदायक बने। इस किताब को लिखते हुए कई बार मैंने विचार किया कि क्या मैं ठीक लिख रहा हूं, क्या ऐसी किताब की वाकई जरूरत है। न जाने कितने नए व प्रशिक्षु पत्रकारों ने अनजाने में ही मुझे यह पुस्तक लिखने की प्रेरणा दी है, मैं सबसे पहले उन्हीं का शुक्रगुजार हूं। प्रस्तुत पुस्तक में प्रथम खंड आधार में मैंने पत्रकारिता के आधारभूत पक्षों को समझने-समझाने की कोशिश की है। प्रकार खंड में मैंने विभिन्न तरह की पत्रकारिता की चर्चा की है। अंतिम खंड व्यवहार में मैंने कुछ ऐसे पक्षों को उठाया है, जिनसे आम तौर पर बचने की परंपरा रही है। पुस्तक में न केवल पत्रकार बिरादरी की बेहतरी की कामना की गई है, बल्कि पाठकों-श्रोताओं-दर्शकों की भी मदद करने की कोशिश हुई है। आदरणीय रामशरण जोशी जी को जरूर याद करूंगा, उन्हें मैंने लगभग साल भर पहले पुस्तक के कुछ अध्याय दिखाए थे और पूछा था कि क्या ऐसी कोई पुस्तक अभी है, क्या मुझे लिखना चाहिए। उन्होंने उत्साह भी बढ़ाया, सुझाव भी दिए। मित्र डॉ. राजेश कुमार व्यास ने मुझे किताब को जल्दी लिखने के लिए हमेशा प्रेरित किया। शास्त्री कोसलेन्द्रदास से हुई चर्चाएं प्रेरणादायी रहीं। राजीव जैन जैसे कुशल युवा पत्रकार और मनीष शर्मा जैसे नवागंतुक को मैंने कुछ अध्याय पढऩे के लिए दिए, ताकि यह पता चले कि मैं जो लिख रहा हूं, वह फायदेमंद है या नहीं। आदरणीय रामबहादुर राय द्वारा प्राप्त सहयोग अतुलनीय रहा। मैं तो न्यू मीडिया जैसे विषय को छोड़कर आगे बढ़ रहा था, लेकिन उन्होंने मुझे प्रेरित किया और इस विषय पर भी शोध व लेखन की सलाह दी। पुस्तक के रूप में मेरी यह कोशिश अगर पत्रकारों की नई व पुरानी पीढ़ी और पत्रकारिता में रुचि रखने वाले आम पाठकों को थोड़ी भी लाभान्वित कर सके, तो मैं अपनी मेहनत को सार्थक मानूंगा।
साधु को सदा याद रहे कि वह साधु है
2 months ago