Friday, 18 December 2009

सिंपल की स्पेशल यादें


मेरे साथ बड़ी मुश्किल है, जितना मैं वर्तमान में जीता हूं, उतना ही अतीत में और भविष्य की चिंता का दौर शुरू करने के बारे में केवल सोचता रहता हूं। पिछले दिनों कुछ फालतू की व्यस्तताएं रहीं, कुछ थोपी गईं, तो कुछ ओढ़ी हुईं। मौका ही नहीं मिला, कई ऐसी घटनाएं निकल गईं, जिन पर लिख न सका। अखबार के लिए लिखा भी, तो ब्लॉग पर डालना न हुआ। अब जब ब्लॉग खोलता हूं, तो उदासी का अहसास होता है। तो आइए उदासी दूर करने की कोशिश करते हैं।
किशोरवय में देखी गई फिल्में, अभिनेता व अभिनेत्रियां जिंदगी भर याद आते हैं। पिछले दिनों मेरी एक प्रिय अभिनेत्री सिंपल कपाडिया का निधन हो गया। सिंपल वाकई सिंपल थीं, अपनी बहन डिंपल की ग्लैमरस इमेज से बिल्कुल अलग। डिंपल में एक उच्च्वार्गियता थी, आज भी है, लेकिन सिंपल ने हमेशा मध्यवर्गीयता का ही प्रतिनिधित्व किया। जैसे मध्य वर्ग को निर्णायक मौके कम मिलते हैं, ठीक उसी तरह सिंपल को भी कम मिले। जितना भी काम किया, अच्छा किया, सच्चा किया। खूब बतियाती शरारती आंखें, चेहरे पर दूसरों को सहज ही अपना बना लेने का भाव। सिंपल के जमाने में अभिनेत्रियों को जीरो फीगर का सपना नहीं आता था, अभिनेत्रियां खाते-पीते घरों की हुआ करती थीं। गौर कीजिए, तो पहले की अभिनेत्रियां स्वस्थ्य नजर आती हैं, यह बात नई अभिनेत्रियों के साथ नहीं है। शायद इसीलिए पहले की अभिनेत्रियां याद रह जाती हैं और अब की अभिनेत्रियों को बीतते समय नहीं लगता। सिंपल भी स्वस्थ्य थीं, सुंदर थीं।
तब मैं दस-ग्यारह का बच्चा था। शायद 1985-86 की बात है। पिता जी वेस्टन का रंगीन टीवी 1984 में ही खरीद चुके थे। बचपन में हम सिनेमा हॉल तो कम ही गए। बामुश्किल तीन फिल्में मैंने बचपन में सिनेमा हॉल में देखीं। पहली फिल्म मैंने दीपक टॉकीज, राउरकेला में नूरी देखी थी, दूसरी फिल्म मासूम और तीसरी दर्द का रिश्ता कोणार्क टॉकीज में देखी। हां, सामुदायिक भवनों के पास खुले में पर्दा टांगकर प्रोजेक्टर से दिखाई जाने वाली कुछ फिल्मों की यादें हैं, जैसे डॉन, मां, धर्मात्मा, रास्ते का पत्थर इत्यादि। बहरहाल, सिंपल का जो चेहरा सर्वाधिक ध्यान में आता है, वह अनुरोध फिल्म का है, जो मैंने घर में टीवी पर देखी थी। राजेश खन्ना गायक हैं। सफेद कोट पर नीली-लाल धारियां। खड़े होकर झूमते हुए रेडियो पर गा रहे हैं - आते जाते खूबसूरत आवरा सड़कों पर....। दूसरी ओर, सिंपल, नीली साड़ी, नीला ब्लाउज, खुले बाल, खिला-खिला, मुस्कराता, लजाता मादक चेहरा। पांच मिनट के इस गाने के फिल्मांकन में शक्ति सामंत के निर्देशन की शक्ति भी चरम पर है। रेडियो के शीशे पर सिंपल का ठिठका हुआ चेहरा उभरता है। और गीत जारी है - ...किस कदर ये हसीन खयाल मिला है, राह में एक रेशमी रुमाल मिला है, जो गिराया था किसी ने जानकर, जिसका हो ले जाए वो पहचानकर...। मुझे अच्छे से याद है, इस गीत के समय कोई हिल भी नहीं रहा था। सब मोहित थे। मैंने तब अहसास किया था कि मेरे जीवन में कुछ विशेष घट रहा है। वह गीत खत्म हो गया, लेकिन जो गीत मेरे अंदर शुरू हुआ, वह अभी भी जारी है। इसी गीत की एक पंक्ति मुझे बार-बार याद आती है - काश फिर कल रात जैसी बरसात हो, और मेरी उसकी कहीं मुलाकात हो, मुलाकात हो।
अफसोस, केवल यादें रह जाएंगी, न वैसी बरसात होगी, न मुलाकात होगी। जब भी दिल या दिल के बाहर यह गीत बजेगा, यही ध्यान आएगा कि सिंपल अब संसार में नहीं रहीं।

4 comments:

Rajeysha said...

आज भी देखने, सुनने और बुनने के लि‍ए बहुत सी खूबसूरत, रोमांचक और जि‍न्‍दा चीजें हैं। और वो बीते या आने वाले कल से बहुत ही ज्‍यादा नजदीक और छू जा सकने योग्‍य हैं... आपको नहीं लगता उनकी उम्‍मीदों का ना लौटायें ???

Udan Tashtari said...

इससे बेहतर सिंपल को और कोई क्या श्रृद्धांजलि दे सकता है. बहुत शिद्दत से अपनी पसंद को याद किया है आपने. कई व्यक्तित्व इसी तरह अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

Arshia Ali said...

इन स्पेशल यादों को संभाल कर रखिएगा, बहुत कीमती हैं।
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जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।

manglam said...

मानस पटल पर अंकित स्मृति को आपने शब्दों का जो जामा पहनाया है, वह वाकई प्रशंसनीय है। सिंपल कपाड़िया को बहुत ही उपयुक्त श्रद्धांजलि दी आपने। अपनी यादें शेयर करने के लिए धन्यवाद।