Sunday, 22 February 2009

वाह सोना वाह

सोने का भाव
(प्रति 10 ग्राम
31/3/1925 : 18 रु 12 आने
31/3/1940 : 36 रु 8 आने
31/3/1951 : 98 रु
31/3/1960 : 111 रु 14 आने
31/3/1975 : 540 रु।
31/3/1980 : 1330 रु।
31/3/1990 : 3209 रु
31/3/1995 : 4675 रु।
21/2/ 2009 : 15780 रु
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भारत का स्वर्ण प्रेम
भारत सोने का सबसे बड़ा ग्राहक है। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार वर्ष 2001 में भारत में 843.2 टन सोने की मांग थी, जो विश्व की कुल मांग का 26.2 फीसदी थी। यहां प्रतिवर्ष 600 से 700 टन तक सोने की मांग रहती है, जबकि भारत स्वयं मात्र करीब 2 टन सोने का उत्पादन करता रहा है। यह कुछ अजीब ही है कि दुनिया में भारत को गरीब देश के नजरिए से देखा जाता है, लेकिन यहां 11 हजार टन से भी अधिक सोना मौजूद है। भारत की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में बसती है और 65 से 70 फीसदी ग्रामीण ही सोने की खरीदारी करते हैं।

6 comments:

मसिजीवी said...

ऐसे थोड़े ही सोने की चिडि़या कहा जाता है, अब तो सोने का (सफेद) हाथी हो गया है।

15780/- की दर से 11000 टन सोने का मूल्‍य हुआ 17358 अरब रुपए। घर की तिजौरियों में पत्‍थर की तरह पड़े होन की जगह यगर ये पैसा अर्थव्‍यवस्‍था में घूमे तो कितनी संपन्‍नता आए देश भर में।

Udan Tashtari said...

मसिजीवी भाई, सोने की चिड़िया उस जमाने में कहते थे जब इस पर सट्टा नहीं होता था. अब सट्टे बाजों के बीच आखिर चिड़िया कब तक गुनगुनाये, उनके सामने तो सोने का गिद्ध भी होता तो जान बचा कर भाग लेता. :)

ये उन्हीं लोगों की करनी है जिन्होंने ६ माह पूर्व तक तेल को १४० डालर प्रति बैरल पहुँचा दिया था और आज ४० डालर में पसीने छूट रहे हैं. सोना भी कईयों को ऐसे ही सूली चढ़वायेगा.

Shastri JC Philip said...

"भारत की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में बसती है और 65 से 70 फीसदी ग्रामीण ही सोने की खरीदारी करते हैं।"

इस कथन को दुबारा जांच लें. ग्रामीण में आप ने किन लोगों को शामिल किया है.

सस्नेह -- शास्त्री

Gyanesh upadhyay said...

शास्त्री जी, मान लीजिए, 60 प्रतिशत भारत ही गांवों में रहता है, लेकिन हम उस करीब 10-15 प्रतिशत भारत को कैसे भूल जाएं, जो रहता तो शहरों में है, लेकिन शादियों के लिए गांव जाता है और वहीं सोने-जेवर की खरीदारी करता है। ये खरीदारियां क्या गांवों के खातों में नहीं जाएंगी?
शास्त्री जी, आप जानते हैं, कृषि आय पर टैक्स नहीं लगता है, तो बड़ी संख्या में ऐसे किसान हैं, जो हाथ में पैसा आते ही उसे सोने में परिवर्तित कर लेते हैं। मैं तो गरीब उड़ीसा में जन्मा-पला-बढ़ा हूं, वहां भी खूब सोना बिकता है। ऐसे गरीब मैंने देखे हैं, जो पोखाल या साग-भात खाते हैं, लेकिन उनके घर में एक पाव और आधा किलो तक सोना विराजता है।
रही बात आंकड़ों की, तो मैंने शुरू में ही वल्र्ड गोल्ड काउंसिल का हवाला दिया है। वेल्यूनोट्स डॉट कॉम पर आप इंडियाज लव ऑफ गोल्ड देख सकते हैं।
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आपने आपत्ति की, अच्छा लगा। धन्यवाद

Gyanesh upadhyay said...

शास्त्री जी, अगर आपको वाक्य में कुछ गड़बड़ लग रही हो, तो आप वाक्य को इस तरह भी पढ़ सकते हैं कि भारत में 65 से 70 प्रतिशत सोने की खरीदारी ग्रामीण ही करते हैं।

राजीव जैन said...

badia sankalan kiya sir