पटना से लेकर जयपुर तक जूनियर डॉक्टरों ने सेवा को तबाह कर रखा है, बार बार हड़ताल कर रहे हैं इस सन्दर्भ में कुछ बातें हैं, जिन पर विशेष गौर करना चाहिए। पहली बात, स्वास्थ्य जीवन-मरण से जुड़ा मसला है, इसलिए इसे हड़ताल से परे रखने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए। डॉक्टरी कोई मोबाइल सेवा, दूध सेवा, सड़क सेवा या रेल सेवा नहीं है कि बाधित होने के बावजूद जनता का काम चल जाए। स्वास्थ्य सेवा तो जीवन सेवा है, इसे बाधित करने को भला किस आधार पर सही ठहराया जाएगा? दूसरी बात, यह सरकारी डॉक्टरों की खुशकिस्मती है कि उनके पास मजबूत संगठन हैं और मरीजों का कोई संगठन नहीं है। आज हमें अच्छी, ईमानदार और संतोषजनक सेवा मुहैया करवाने वाला कोई कानून नहीं है। तीसरी बात, सरकारी मेडिकल कॉलेजों में जनता के पैसे पर डॉक्टरों को सस्ती शिक्षा नसीब होती है, लेकिन डॉक्टर बनने के बाद उसी जनता को दुत्कारना कहां तक उचित है? चौथी बात, डॉक्टर हड़ताल, मारपीट, अभद्रता करके वास्तव में अपना ही अहित कर रहे हैं, उनके ऐसे व्यवहार से सरकारी अस्पतालों की प्रासंगिकता खत्म हो रही है। ज्यादा से ज्यादा मरीज उन निजी अस्पतालों में इलाज करवा रहे हैं, जहां डॉक्टरों के सारे अधिकार अस्पताल प्रबंधन के हाथों में होते हैं। क्या ये डॉक्टर किसी निजी अस्पताल या निजी मेडिकल कॉलेज में हड़ताल का दु:साहस कर सकेंगे? पांचवी बात, रेजिडेंट डॉक्टरों की लड़ाई गोखले होस्टल के लड़कों के साथ थी, लेकिन उन्होंने अपना गुस्सा निदोüष मरीजों पर उतार दिया गया। पूरी डॉक्टर बिरादरी को इस दुष्प्रवृत्ति पर विचार करना चाहिए।
2 comments:
Patrakar sahab.....you have a lovely blog....the issues seem to be apt and it is forming nicely....
Nice amlendu, I am trying my best to make the world beutiful.
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