Monday, 23 June 2008
भारतीय समझदारी पर शक
Friday, 20 June 2008
चुभ गया कोटा का कांटा
खड़े गणेश जी को देखकर अपने जयपुर में मोती डुंगरी वाले गणेश जी की याद आ गई। जमीन आसमान का फर्क। यहां बैठे हुए गणेश जी वाकई काफी जगह लेकर बैठाए गए हैं, देखकर मन प्रसन्न हो जाता है, लेकिन कोटा में खड़े गणेश जी की दुर्दशा आहत करती है। अंदर जाकर मालूम हुआ कि केवल दो पंडितों के खड़े होने की जगह है, इसलिए लोगों को काफी देर तक लाइन में लगना पड़ता है। गणेश जी को हाथ जोड़कर मन से मैंने प्रणाम किया और बिना तिलक, बिना प्रसाद बाहर निकल आया। मंदिर की बाईं ओर दीप-अगरबत्ती की जगह थी, तो दाईं ओर शिव मंदिर, यहां भी मन बहुत दुखी हुआ। शिवलिंग पर कथित शिव भक्तों ने मिसे हुए लड्डुओं का ढेर लगा रखा था, जल-दूध के प्रेमी शंकर जी को लोग जबरन लड्डू खिला रहे थे। यह शुद्ध बेवकूफी है। शिवलिंग पर लड्डू पोतने वालों की जितनी निंदा की जाए, कम है। वैसे अपने जयपुर में भी भगवानों की फोटुओं पर लड्डू-पेड़ा चिपकाकर लोग बड़े खुश होते हैं कि भोग सीधे भगवान को खिला दिया। पढ़े- लिखे -अपढ़ लोग खिलाने और चिपकाने का फर्क नहीं जानते?
हम खुद अपने साथ ऐसा व्यवहार पसंद नहीं करेंगे, जैसा व्यवहार हम भगवानों के साथ कर रहे हैं। क्या भगवान को सांस लेने की जरूरत नहीं है? क्या उनके मुंह-नाक में लड्डू-पेड़ा ठूंस देना चाहिए? कोई अगर हमारे मुंह-नाक-शरीर में लड्डू लीप दे, तो क्या हम उसे लगे हाथ पांच गालियां नहीं सुनाते हैं? क्या ईश्वर को हम पर रोष नहीं आता होगा? बहरहाल, कोटा में खड़े गणेश जी के मंदिर के बाहर जितने पैसे खर्च किए गए हैं, उतने पैसे से मंदिर के गर्भगृह को आसानी से बड़ा बनाया जा सकता था, खड़े गणेश जी को ठीक से खड़े होने की जगह दी जा सकती थी? लेकिन मंदिरों और भगवानों को बाजारू उत्पाद बनाकर-सजाकर बेचने का शौक रखने वालों को कौन समझाए? लोभी-भोगी पंडितों का वर्ग भी तो इसमें शामिल है?
एक और बात बता दूं, खड़े गणेश जी मंदिर और उसके आसपास मुझे कोई भी स्वयंसेवक, व्यवस्थापक या पुलिस वाला नजर नहीं आया। कोटा का यह कांटा न जाने कब तक मेरे दिल में चुभेगा और याद आएंगे, कमरे में कैद गणेश जी और लड्डुओं में गुम शिव जी।
Wednesday, 11 June 2008
वर्दी में शर्म नहीं आती !
कभी-कभी पुलिस का ऐसा निर्मम चेहरा सामने आता है कि शर्म से सिर झुक जाता है। हरियाणा में एक महिला पुलिस वालों के सामने जब न्याय की गुहार लगाते-लगाते हार गई, तब उसने आत्महत्या जैसा मजबूर कदम उठाया। उसके साथ दो पुलिसकमियों ने बलात्कार किया था और महिला की बार-बार गुहार के बावजूद पुलिस दोषियों को बचा रही थी। आला अधिकारी भी कान में तेल डाले बैठे थे, अंतत: महिला द्वारा आत्महत्या के बाद ही पुलिस जागी। दोषी व फरार पुलिसकमियों को बर्खास्त किया गया। आज इस देश का हर जागरूक इंसान इस घटना और पुलिस के व्यवहार से स्तब्ध है। दोषी पुलिसकर्मी फरार हैं और परदे के पीछे रहकर बचने की जुगाड़ बिठा रहे हैं। हरियाणा के पुलिस महानिदेशक भी इस वाकये को पुलिस बल पर धब्बा बता रहे हैं, लेकिन क्या इस मामले में उनका कोई दोष नहीं है? उनके पास भी तो न्याय के लिए दो छोटे-छोटे बच्चों की पीडि़त मां ने आवेदन किया था। महानिदेशक अमानवीय बने रहे। आराम से नौकरी बजा रहे दोनों दोषी पुलिस वाले महिला और उसके पति को आरोप वापस लेने के लिए धमकाने में जुटे हुए थे। हरियाणा की कांग्रेस सरकार को इस शर्मनाक वाकये के लिए माफी मांगनी चाहिए। सोनिया गांधी को इस घटना का संज्ञान लेना चाहिए। दोषियों की गिरफ्तारी होनी चाहिए, उन्हें सजा मिलनी चाहिए। केवल यही नहीं, जो आला अधिकारी कान में तेल डालकर बैठे थे, उनके खिलाफ भी कारवाई होनी चाहिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज ने कभी पुलिस बल को संगठित गिरोह कहा था। उस टिप्पणी को कोई और नहीं, बल्कि स्वयं पुलिस वाले साबित करते रहते हैं। जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पुलिस को सबसे भ्रष्ट महकमा होने का अपमान हासिल है, तो फिर जयपुर, पटना जैसे शहरों में पुलिस के बारे में क्या कहा जाए? देश की पहली नागरिक महिला हैं, सत्तारूढ़ गठबंधन की मुखिया भी एक महिला ही हैं, लेकिन क्या इस देश में कोई सभ्य महिला अकेले शिकायत दर्ज कराने के लिए थाने जाने के बारे में सोच सकती है? अफसोस, हरियाणा के इस हादसे ने साबित कर दिया, खूब पढ़-लिखकर आईपीएस बने अधिकारियों में भी मानवीयता का स्तर शर्मनाक हो चला है।
Monday, 9 June 2008
डॉक्टर जी डराते हैं
Sunday, 1 June 2008
कुछ सत्य
दस साल पहले-------आज से दस साल पहले 1998 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल मात्र 10 डॉलर थी। तब भारत में पेट्रोल की कीमत मात्र 23.94 रुपये और डीजल की कीमत 9.87 रुपये प्रति लीटर थी।
जब यूपीए सरकार बनी------मई 2004 में जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी, तब कच्चे तेल की कीमत 34 डॉलर प्रति बैरल, पेट्रोल की कीमत ३५.71 रुपये प्रति लीटर व डीजल की कीमत प्रति लीटर २२.70 रुपये थी। तब रसोई गैस प्रति सिलेंडर की कीमत २८१।60 रुपये थी।
30 मई 2008 का हाल------स्थितियों में कुछ सुधार के बाद कच्चे तेल का भाव 126 डॉलर प्रति बैरल (शुक्रवार को) पर रहा। पेट्रोल की कीमत ४८।62 रुपये, डीजल ३४.17 रुपये प्रति लीटर और रसोई गैस की कीमत 300 रुपये प्रति सिलेंडर रही।
कुछ और सत्य
तेल कंपनियों को घाटा हो रहा है लेकिन सरकार फायदे में है, वह पेट्रोल से खूब कमाई कर रही है, पेट्रोल पर बोझआयात और उत्पाद शुल्क शिक्षा अधिभार सहित : १४.78 प्रतिशत, विक्रय कर 28 प्रतिशत, पथ कर अधिभार 50 पैसे प्रति लीटर, डीलर का हिस्सा 1 रुपये पांच पैसे प्रति लीटर (जयपुर मे )डीजल पर बोझउत्पाद, आयात शुल्क अधिभार सहित ४.74 प्रतिशत, विक्रय कर 20 प्रतिशत, पथ कर अधिभार 50 पैसे प्रति लीटर, डीलर का हिस्सा 63 पैसे प्रति लीटर (जयपुर में )