Monday, 30 December 2019

डर को धूल चटाकर जीता आसमान



सबिहा गोचेन (पहली महिला फाइटर पायलट)


क्रांति होती है, देश आजाद होता है, तो सारे लड़के एक साथ आजाद हो जाते हैं, लेकिन क्या लड़कियां भी वैसे ही आजाद होती हैं? दुनिया में लड़कियों को क्यों अनसुना कर दिया जाता है? लड़कों की किस्मत में सब कुछ है और लड़कियों की किस्मत में सिर्फ रसोई, गुलामी और सबकी सेवा? और ऊपर से यह सवाल भी कि लड़कियां आखिर करती क्या हैं? लड़कों की जिंदगी बढ़ती है, लेकिन लड़कियों की ठहरी-सी रहती है, जैसी मेरी ठहरी है? तुर्की देश के बुर्सा शहर में 12-13 साल की अनाथ लड़की सबिहा के मन में ऐसे ही ख्याल उमड़ते रहते थे। नए गणराज्य तुर्की में जश्न का माहौल था, लेकिन सबिहा की जिंदगी गम के स्याह अंधेरे में थी। अर्मेनिया नरसंहार में मां की गोद छिन गई, पिता का साया न रहा, तो किस्मत ने अनाथालय ला पटका, जहां खैरात से टुकड़ा भर रोटी और टुकड़ा भर पढ़ाई नसीब होने लगी थी। उस बच्ची की जिंदगी में सब कुछ टुकड़ा-टुकड़ा था, सिवाय गम के। वह दूसरे बच्चों को सज-धजकर अच्छे स्कूलों में जाते देखती, तो उसके आंसू बह निकलते। काश! मैं भी अच्छे स्कूल जाती, अच्छे कपड़े पहनती, अच्छी जगह रहती। 

संयोग की बात है, उन्हीं दिनों तुर्की गणराज्य के संस्थापक राष्ट्रपति मुस्तफा कमाल पाशा बुर्सा आए हुए थे। जहां वह ठहरे थे, वहां उन्हें आते-जाते सबिहा रोज दूर से देखती थी। मिलने की इच्छा जागती। अब पूरे देश के पिता मुस्तफा क्या एक अनाथ, लाचार, गरीब और अकेली लड़की की सुनेंगे? कई बार उसके कदम उठते, लेकिन फिर ठहर जाते। कभी डर का बोझ बढ़कर बैठा देता, तो कभी हिचक पांव में बेड़ियां डाल देती। कुछ दिन ऐसे ही चला। पता नहीं कब, राष्ट्रपति राजधानी अंकारा के लिए निकल जाएंगे? अभी मिल पाने की थोड़ी गुंजाइश है, लेकिन बाद में हो सकता है, उन्हें देखना भी नामुमकिन हो जाए। लेकिन एक दिन, हिचक और डर को दरकिनार कर सबिहा चल पड़ी, जो होगा, देखा जाएगा, कोशिश तो करूं कि जिंदगी में आगे कोई अफसोस न रहे। वह बढ़ती गई, सुरक्षा घेरों को बेहिचक-बेरोक पार करती गई। उसने महसूस किया कि जब कोई आत्म-विश्वास से भरपूर चलता है, तो दुनिया भी नहीं टोकती। उसने आगे बढ़कर राष्ट्रपति का अभिवादन किया और कहा, ‘मुझे आपसे बात करनी है?’ राष्ट्रपति ने गौर किया, एक छोटी लड़की कुछ कहना चाहती है, ‘क्या बात है?’

‘मदद मांगने आई हूं। आप सबके लिए कुछ न कुछ कर रहे हैं, क्या आप मेरी मदद करेंगे? मेरा कोई नहीं है, अनाथ हूं, गरीब हूं, लेकिन मैं बोर्डिंग स्कूल में पढ़ना चाहती हूं। हिम्मत जुटाकर आपके पास बहुत आस लिए आई हूं, मेरे लिए कुछ कीजिए..।’ देखने वाले चकित थे, कहां से आ गई यह लड़की,  लेकिन वह तो सिर्फ राष्ट्रपति को देख रही थी, तब दुनिया को क्या देखना? वर्षों बाद जो शख्स गौर से दुखड़ा सुन रहा था, उसे निडर होकर लड़की सुनाए जा रही थी। पूरी बातें सुनने के बाद राष्ट्रपति ने उस अनाथ के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘अब तुम अनाथ नहीं हो, आज से मैं तुम्हारा पिता हूं। चलो उस घर, जहां तुम्हारा यह पिता रहता है।’ अनाथालय से राष्ट्रपति भवन के बीच यही वह छोटा-सा लम्हा था, जिसने हिचक और डर को धूल चटाकर सबिहा की जिंदगी को आमूल-चूल बदल दिया। वह राष्ट्रपति भवन में अकेली नहीं थीं, उनकी करीब तेरह बहनें और एक भाई साथ रहते थे। सबको राष्ट्रपति ने गोद ले रखा था, लेकिन इन सभी में सबसे खास निकली सबिहा। अच्छी पढ़ाई, अच्छी संगत में जिंदगी संवर गई। जब वह 21 की हुई, परंपरागत पढ़ाई पूरी होने वाली थी, तब पिता ने नाम दिया, सबिहा गोचेन। गोचेन का अर्थ है- आसमानी अर्थात आकाश का।

इस नाम ने सबिहा को नई ऊर्जा से भर दिया। पिता एक बार वायु सेना के करतब दिखाने ले गए। सबिहा के दिमाग में पायलट बनने का जुनून सवार हो गया। पिता ने हामी भर दी। फिर शुरू हुई पुरुषों में अकेली महिला पायलट की ट्रेनिंग। सीखते-सीखते सबिहा दुनिया की पहली महिला फाइटर पायलट बन गईं। दुश्मनों पर बम बरसाने और कामयाब लौटने का उनका रिकॉर्ड दुनिया भर में पायलटों और महिलाओं को प्रेरित करता है। सबिहा की जिंदगी आज भी साबित करती है कि लड़कियां डर और हिचक के पार निकल जाएं, तो शक्ति बन जाती हैं। सबिहा जैसी बेटियों और माताओं ने ही मुस्तफा को प्रेरित किया और महिलाओं को मताधिकार देने वाला तुर्की दुनिया का अग्रणी देश बना। सबिहा हमेशा मिसाल रहेंगी। उनके जिंदा रहते ही तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में विशाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बना, जिसका नाम रखा गया : सबिहा गोचेन इंटरनेशनल एयरपोर्ट। 

प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय

1 comment:

Rishikant Prakash said...

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