ए रंगबती रे रंगबती
रंगबती-रंगबती कनक लोता हसी पदे कह लो कोथा
हाय गो लाजे-लाजे गो लाजे-लाजे
लाज लागे नोई जाउछे माथा गो
नाईकर नाईकर ओथा...
यह गाना जब बजता है या याद आता है, तो नोस्टेलजिक बना देता है। मन करता है, भागकर उड़ीसा की गलियों में चले जाएं। इस गीत पर विवाद छिड़ गया है, एमटीवी के एक कार्यक्रम में संगीतकार राम संपत ने इसका एक नया आधुनिक संस्करण पेश किया है। इस गाने को उनकी ख्यात गायिका पत्नी सोना महापात्रा ने गाया है। सोना कटक की हैं, कुछ भारी लेकिन दमदार आवाज वाली सोना ने रंगबती गाने में नई जान डाल दी है। वैसे सोना इस गाने को पहले भी गाती रही हैं, लेकिन इस बार उन्होंने इस गाने को बहुत मन से गाया है।
रविवार को यह गाना मेरे हाथ लगा, मुझसे बड़े भाई ने वाट्सएप से भेजा, सुनकर आंखों में आंसू आ गए। लगा कि हम बेवकूफ रंगबती से जितने दूर आ गए, कितना पीछे छूट गया अपना राउरकेला, उड़ीसा।
वैसे इस गाने में रितुराज मोहंती भी हैं, जो उड़ीसा में ही पुरी के पास के हैं। रितुराज ने रिमिक्स का आगे का हिस्सा गाया है, जिसमें रंगबती के बोल नहीं हैं, कुछ और है.
काश! इस गाने को राम संपत युगल गीत ही रखते। मतलब पुरुष आवाज में रितुराज और महिला आवाज में सोना. वास्तव में रंगबती एक युगल गीत है, उसका पूरा अर्थ तभी उभरता है।
पुरुष पहले गाता है...
ए रंगबती रे रंगबती
रंगबती-रंगबती कनक लोता हसी पदे कह लो कोथा।
उसके बाद स्त्री गाती है...
हाय गो लाजे-लाजे गो लाजे-लाजे
लाज लागे नोई जाउछे माथा गो
नाईकर नाईकर ओथा...
कोई बात नहीं, सोना ने अकेले ही गाया है, लेकिन इससे सुनने वाले का मजा तो इसलिए भी बना रहेगा, क्योंकि यह गीत कालजयी का दर्जा रखता है, लेकिन समझने वाले को दिक्कत होगी।
खैर, बताते चलें कि रंगबती का अर्थ है रंगों वाली या कलरफुल लड़की अर्थात रंगवती।
इस गीत का मुखड़ा कुछ हिन्दी में बनाएं, तो संगीत को पकडऩा कठिन है, लेकिन अर्थ और भाव यों बनेगा -
नायक गाता है...
ए रंगवती रे रंगवती...
रंगवती-रंगवती कनक लता हंसो कुछ कहो न बात।
नायिका गाती है...
हाय ओ लाज-लाज ओ लाज-लाज
लाज लगे झुकता है माथा ओ
ना करो ना करो ऐसा।)
यह कोसली या संबलपुरी भाषा है। यह भाषा संबलपुर और उसके आसपास के सभी जिलों में आज भी बोली जाती है। भाषा बड़ी ही मीठी है, तो इसका असर बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और बंगाल तक दिखता है। यहां की भाषा शब्दों से अलग अनेक प्रकार की मीठी ध्वनियां हैं.. ए, ऐ, ओ, गो, हाय इत्यादि...
बहरहाल इस गीत को लेकर कॉपीराइट का एक मुकदमा किया गया है, जिसमें इस गीत के वास्तविक लेखक मित्रभानु गोंटिया और संगीतकार प्रभुदत्ता प्रधान ने राम संपत, सोना महापात्रा, एमटीवी व अन्य को घेर लिया है। मूल लेखक, मूल संगीतकार को पूरी तरह से श्रेय नहीं दिया गया है और ना ही इस गीत का रिमिक्स बनाने की मंजूरी ली गई है।
रही बात इसके मूल गायक जीतेन्द्र हरिपाल की, तो उन्हें लोग कम ही याद करते हैं। देश के बड़े पत्रकार पी. साईनाथ ने हरिपाल को आज से करीब 15 साल पहले संबलपुर के स्लम एरिया में खोज निकाला था। हरिपाल जीवित हैं। उनका गाया गीत आज उड़ीसा का सबसे समृद्ध गीत है, लेकिन हरिपाल आज भी गरीब हैं। डोम जाति के हरिपाल शिक्षा और संगीत की दीक्षा से आज भी परे हैं और जानने वाले बताते हैं कि शराब उनकी राह में बड़ी बाधा रही है।
हरिपाल की आवाज जब उड़ीसा और उसके आसपास के लोगों के कानों में गूंजती है या जब उनकी आवाज याद आती है, तो उत्कल प्रेमी हर व्यक्ति मचल उठता है। यह एक तरह से उड़ीसा का उत्सव गीत है। कोई भी पार्टी, पूजा पंडाल हो, यात्रा हो, विवाह हो, बैंड हो, रंगबती का बजना अनिवार्य है। हरिपाल की आवाज में जो लय, मस्ती और मिठास है, वह अंदर तक मन को सजल कर देती है। हरिपाल को याद करें, तो इसी गाने की स्त्री आवाज कृष्णा पटेल को भी अवश्य याद करना चाहिए। ये सब आमतौर पर गुमनामी में जीने वाले लोक कलाकार हैं, जिनको पूरा फोकस कभी नसीब नहीं होता।
बेशक, रिमिक्स में राम संपत ने गाने को निखार दिया है, यह गाना पिछले सप्ताह यू ट्यूब पर जैसे ही लोड हुआ, उसे लाखों लोग ने हिट किया। कई लोग होंगे, जो इस गाने के लिए राम संपत और सोना महापात्रा को ही श्रेय देंगे, लेकिन क्या हरिपाल, कृष्णा, मित्रभानु, प्रभुदत्ता को भुला दिया जाए? नहीं, इस गीत के असली जन्मदाताओं को भूलना नहीं चाहिए। यह गीत अपने होने में नई पीढ़ी को इतना पुराना लगता है, मानो यह सदियों से उड़ीसा में रहा हो, जबकि इस गीत को बमुश्किल ३५-४० साल हुए हैं। सबसे खूबसूरत बात यह कि इसे बनाने वाले अभी जीवित हैं, लेकिन सबसे दुखद बात यह कि दुनिया उन्हें भूल-सी गई है। आज उन्हें फिर याद किया जा रहा है. रिमिक्स अगर कहीं मारता है, तो कहीं जिंदा भी तो करता है। राम संपत के काम को नकारा नहीं जा सकता। रिमिक्स ने रंगबती और उसके असली सृजनकर्ताओं को चर्चा में फिर जीवित कर दिया है, फैसला तो कोर्ट में होगा, लेकिन कोर्ट से बाहर रंगबती का आनंद क्यों खराब किया जाए। अपने दिल के पास चलते रहना चाहिए
ए रंगबती रे रंगबती...
ओ रंगबती रे रंगबती...
रंगबती-रंगबती कनक लोता हसी पदे कह लो कोथा
हाय गो लाजे-लाजे गो लाजे-लाजे
लाज लागे नोई जाउछे माथा गो
नाईकर नाईकर ओथा...
यह गाना जब बजता है या याद आता है, तो नोस्टेलजिक बना देता है। मन करता है, भागकर उड़ीसा की गलियों में चले जाएं। इस गीत पर विवाद छिड़ गया है, एमटीवी के एक कार्यक्रम में संगीतकार राम संपत ने इसका एक नया आधुनिक संस्करण पेश किया है। इस गाने को उनकी ख्यात गायिका पत्नी सोना महापात्रा ने गाया है। सोना कटक की हैं, कुछ भारी लेकिन दमदार आवाज वाली सोना ने रंगबती गाने में नई जान डाल दी है। वैसे सोना इस गाने को पहले भी गाती रही हैं, लेकिन इस बार उन्होंने इस गाने को बहुत मन से गाया है।
रविवार को यह गाना मेरे हाथ लगा, मुझसे बड़े भाई ने वाट्सएप से भेजा, सुनकर आंखों में आंसू आ गए। लगा कि हम बेवकूफ रंगबती से जितने दूर आ गए, कितना पीछे छूट गया अपना राउरकेला, उड़ीसा।
वैसे इस गाने में रितुराज मोहंती भी हैं, जो उड़ीसा में ही पुरी के पास के हैं। रितुराज ने रिमिक्स का आगे का हिस्सा गाया है, जिसमें रंगबती के बोल नहीं हैं, कुछ और है.
काश! इस गाने को राम संपत युगल गीत ही रखते। मतलब पुरुष आवाज में रितुराज और महिला आवाज में सोना. वास्तव में रंगबती एक युगल गीत है, उसका पूरा अर्थ तभी उभरता है।
पुरुष पहले गाता है...
ए रंगबती रे रंगबती
रंगबती-रंगबती कनक लोता हसी पदे कह लो कोथा।
उसके बाद स्त्री गाती है...
हाय गो लाजे-लाजे गो लाजे-लाजे
लाज लागे नोई जाउछे माथा गो
नाईकर नाईकर ओथा...
कोई बात नहीं, सोना ने अकेले ही गाया है, लेकिन इससे सुनने वाले का मजा तो इसलिए भी बना रहेगा, क्योंकि यह गीत कालजयी का दर्जा रखता है, लेकिन समझने वाले को दिक्कत होगी।
खैर, बताते चलें कि रंगबती का अर्थ है रंगों वाली या कलरफुल लड़की अर्थात रंगवती।
इस गीत का मुखड़ा कुछ हिन्दी में बनाएं, तो संगीत को पकडऩा कठिन है, लेकिन अर्थ और भाव यों बनेगा -
नायक गाता है...
ए रंगवती रे रंगवती...
रंगवती-रंगवती कनक लता हंसो कुछ कहो न बात।
नायिका गाती है...
हाय ओ लाज-लाज ओ लाज-लाज
लाज लगे झुकता है माथा ओ
ना करो ना करो ऐसा।)
यह कोसली या संबलपुरी भाषा है। यह भाषा संबलपुर और उसके आसपास के सभी जिलों में आज भी बोली जाती है। भाषा बड़ी ही मीठी है, तो इसका असर बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और बंगाल तक दिखता है। यहां की भाषा शब्दों से अलग अनेक प्रकार की मीठी ध्वनियां हैं.. ए, ऐ, ओ, गो, हाय इत्यादि...
बहरहाल इस गीत को लेकर कॉपीराइट का एक मुकदमा किया गया है, जिसमें इस गीत के वास्तविक लेखक मित्रभानु गोंटिया और संगीतकार प्रभुदत्ता प्रधान ने राम संपत, सोना महापात्रा, एमटीवी व अन्य को घेर लिया है। मूल लेखक, मूल संगीतकार को पूरी तरह से श्रेय नहीं दिया गया है और ना ही इस गीत का रिमिक्स बनाने की मंजूरी ली गई है।
रही बात इसके मूल गायक जीतेन्द्र हरिपाल की, तो उन्हें लोग कम ही याद करते हैं। देश के बड़े पत्रकार पी. साईनाथ ने हरिपाल को आज से करीब 15 साल पहले संबलपुर के स्लम एरिया में खोज निकाला था। हरिपाल जीवित हैं। उनका गाया गीत आज उड़ीसा का सबसे समृद्ध गीत है, लेकिन हरिपाल आज भी गरीब हैं। डोम जाति के हरिपाल शिक्षा और संगीत की दीक्षा से आज भी परे हैं और जानने वाले बताते हैं कि शराब उनकी राह में बड़ी बाधा रही है।
हरिपाल की आवाज जब उड़ीसा और उसके आसपास के लोगों के कानों में गूंजती है या जब उनकी आवाज याद आती है, तो उत्कल प्रेमी हर व्यक्ति मचल उठता है। यह एक तरह से उड़ीसा का उत्सव गीत है। कोई भी पार्टी, पूजा पंडाल हो, यात्रा हो, विवाह हो, बैंड हो, रंगबती का बजना अनिवार्य है। हरिपाल की आवाज में जो लय, मस्ती और मिठास है, वह अंदर तक मन को सजल कर देती है। हरिपाल को याद करें, तो इसी गाने की स्त्री आवाज कृष्णा पटेल को भी अवश्य याद करना चाहिए। ये सब आमतौर पर गुमनामी में जीने वाले लोक कलाकार हैं, जिनको पूरा फोकस कभी नसीब नहीं होता।
बेशक, रिमिक्स में राम संपत ने गाने को निखार दिया है, यह गाना पिछले सप्ताह यू ट्यूब पर जैसे ही लोड हुआ, उसे लाखों लोग ने हिट किया। कई लोग होंगे, जो इस गाने के लिए राम संपत और सोना महापात्रा को ही श्रेय देंगे, लेकिन क्या हरिपाल, कृष्णा, मित्रभानु, प्रभुदत्ता को भुला दिया जाए? नहीं, इस गीत के असली जन्मदाताओं को भूलना नहीं चाहिए। यह गीत अपने होने में नई पीढ़ी को इतना पुराना लगता है, मानो यह सदियों से उड़ीसा में रहा हो, जबकि इस गीत को बमुश्किल ३५-४० साल हुए हैं। सबसे खूबसूरत बात यह कि इसे बनाने वाले अभी जीवित हैं, लेकिन सबसे दुखद बात यह कि दुनिया उन्हें भूल-सी गई है। आज उन्हें फिर याद किया जा रहा है. रिमिक्स अगर कहीं मारता है, तो कहीं जिंदा भी तो करता है। राम संपत के काम को नकारा नहीं जा सकता। रिमिक्स ने रंगबती और उसके असली सृजनकर्ताओं को चर्चा में फिर जीवित कर दिया है, फैसला तो कोर्ट में होगा, लेकिन कोर्ट से बाहर रंगबती का आनंद क्यों खराब किया जाए। अपने दिल के पास चलते रहना चाहिए
ए रंगबती रे रंगबती...
ओ रंगबती रे रंगबती...