जब चुनाव के समय १० दिन बिहार में था तब लग तो रहा था कि नितीश कुमार को लोग फिर मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहते हैं , लेकिन इतनी बड़ी जीत का सपने में भी अनुमान नहीं था. क्योंकि मेरे जिले मतलब सारण में विकास नहीं के बराबर हुआ है इसकी सबसे बड़ी गवाही एकमा और मांझी के बीच की सड़क देती है इस सड़क पर चलना मुश्किल है . एकमा में तो इतना कम काम हुआ है कि इलाके के विधायक रहे गौतम सिंह को चुनाव लड़ने के लिए मांझी आना पड़ा , गौतम सिंह बिहार सरकार में मंत्री रहने के बावजूद एकमा की सूरत नहीं बदल पाए अब वे मांझी से भरी अंतर से जीते हैं तो इसके लिये लोग नीतीश कुमार को ही श्रेय दे रहे हैं .
मांझी में पूर्व मंत्री रविन्द्र नाथ मिश्र खटिया चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में थे . उन्होंने भी अपने समय में कोई काम नहीं किया था . वे तीसरे स्थान पर रहे. वहां लोगों ने चुनाव नतीजों के बाद एक जुमला चला दिया : लालटेन के पेंदी फूट गइल, बंगला जर गइल , हाथ टूट गइल और खटिया खड़ा हो गइल.
नीतीश की विशालता के आगे लालू बहुत बौने साबित हुए हैं. अब गौतम सिंह जैसे विधायकों और मंत्रियो को भी अपने काम से अपनी विशालता साबित करनी चाहिए . इतनी ताकत जनता बार बार नहीं देती है, ताकत का उचित इस्तेमाल होना चाहिए वरना पांच साल बीतेते ज्यादा समय नहीं लगेगा. नीतीश की टीम के निकम्मे सदस्यों को यह ध्यान रखना चाहिए कि काम न करने की वजह से ही लालू की ऐसी दुर्गति हुई हैं,
साधु को सदा याद रहे कि वह साधु है
2 months ago
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