हमारे देश में कुछ नेताओं का चिंतन इतना फिजूल है कि इससे केवल उनका बौद्धिक विलास झलकता है और यह भी जाहिर होता है कि वे जमीनी हकीकत से कितने कटे हुए हैं। आज अनेक समस्याएं विकराल रूप ले चुकी हैं, लेकिन इन नेताओं का शर्मनाक अतीत में झांकने का शौक देश की आम गरीब जनता को केवल निराश करता है। दार्जिलिंग से चुनाव जीतने वाले राजस्थानी नेता जसवंत सिंह ने किताब लिखी है जिन्ना - इंडिया, पार्टीशन, इंडिपेंडेंस। किताब में पंडित नेहरू को निशाना बनाया गया है और जिन्ना की छवि को सुधारने की कोशिश हुई है। जसवंत के मुताबिक, देश के विभाजन के लिए पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना नहीं, बल्कि पंडित नेहरू की बेहद केन्द्रीयकृत राजनीतिं जिम्मेदार थी। यह बात भारतीयों के मनोबल पर कितना नकारात्मक असर डालेगी, इस पर जसवंत ने कोई चिंतन नहीं किया है। कांग्रेस को निशाना बनाने की कोशिश में जिन्ना का महिमामंडन निंदनीय है। इतिहास गवाह है, जिन्ना बहुसंख्यक जमात के साथ रहने को तैयार नहीं थे, जबकि पंडित नेहरू को मजहब से कोई परेशानी नहीं थी। जिन्ना ने मुस्लिम राष्ट्र बनाया और पंडित नेहरू ने जो बनाया, वह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना। सांप्रदायिकता के आधार पर भारत वर्ष को विभाजित करने के बाद जिन्ना खुद भी चिंतित थे, क्योंकि पाकिस्तान में कथित धर्म प्रेम कट्टरता की हदें पार करने लगा था, तभी तो जिन्ना ने अपने देशवासियों से आह्वान किया था कि आज से हम हिन्दू या मुस्लिम नहीं, बल्कि पाकिस्तानी होंगे, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। जिन्ना भी भारत के अंदर कई पाकिस्तान देखना चाहते थे, कश्मीर हड़पने का अभियान उनके ही इशारे पर शुरू हुआ होगा। भाजपा नेताओं में पहले लालकृष्ण आडवाणी और अब जसवंत सिंह ने जिन्ना के प्रति अपने प्रेम को उजागर किया है। जसवंत ने एक वार्ता में कहा है कि जिन्ना महान थे। गांधी जी ने भी उन्हें महान भारतीय कहा था। जसवंत ने यह नहीं बताया है कि गांधी जी ने जिन्ना को महान भारतीय क्यों कहा था और जिन्ना किस तरह से भारतीयता को ठोकर मारकर भारतीयों को खून के आंसू रुलाकर पाकिस्तानी हो गए। जिन्ना के मुख से आए किन्हीं एक-दो बयानों का हवाला देते हुए उन्हें महान नहीं ठहराया जा सकता। वह ब्यक्ति राजनेता भले ही हो, लेकिन महान कैसे हो सकता है, जिसे दूसरे धर्म के लोगों के साथ रहना तक स्वीकार न हो। जिन्ना तो उसी दिन नाकाम हो गए थे, जब उनके वंशजों ने भारत में रहने का फैसला किया। आज जिन्ना के वंशज भारत में बेहद अमीर और सम्मानित हैं, लेकिन जसवंत को लगता है कि भारत में मुसलमानों के साथ दूसरे ग्रह के प्राणियों जैसा व्यवहार किया जाता है। क्या शाहरुख खान दूसरे ग्रह के प्राणी हैं, जिन्हें अमेरिका में परेशान किए जाने पर सभी जागरूक भारतीय नाराज हैं? जसवंत को केवल यही नजर आया कि मुसलमानों ने विभाजन की कीमत चुकाई है। क्या हिन्दुओं ने कीमत नहीं चुकाई है? जसवंत की इस बात का समर्थन किया जा सकता है कि अविभाजित भारत में मुसलमान ज्यादा मजबूत हो सकते थे, लेकिन क्या उन्हें यही बात हिन्दुओं के लिए नहीं कहनी चाहिए थी? इस किताब से आतंकवाद, महंगाई, मंदी और मौसम की मार झेल रहे देश को कोई लाभ नहीं होने वाला, उल्टे इससे पाकिस्तान और बांग्लादेश में भारत विरोध को ही बढ़ावा मिलेगा।
1 comment:
dharm nirpekshta ka jaisa galat arth is desh men lagaya jata hai uspar aashcharya bhee hota hai aur unkee budhi par rona bhee aata hai. vastav men rajneeti itanee gandee ho chukee hai ki rajneta apne swarth ke liye kuchh bhee karne avam kahne ko taiyar hain.
m singh
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