Saturday, 4 July 2009

रेलवे में भी मजहब की पूछ?

मदरसा छात्रों को मुफ्त मासिक टिकट देने का फैसला कितना सही है? यह एक विचारणीय प्रश्न है। क्या यह रेलवे में धर्म आधारित रियायत की शुरुआत नहीं है? क्या यह कदम एक नए तरह के झमेले की शुरुआत नहीं करेगा? अगर हम गंभीरता से देखें, तो यह एक नया ताला खुलवाने जैसी बात है, अयोध्या में ताला खुलवाने का काम श्री राजीव गांधी ने किया था और उसके बाद लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट तक वह खुला ताला कितने कमाल दिखा गया, पूरा देश जानता है।

मुस्लिम विद्वान इस रियायत को किस आधार पर जायज व समानता आधारित ठहराएंगे? सभी भारत को हिन्दू प्रधान देश कहते हैं, लेकिन क्या यहां गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्रों को कभी रेलवे से रियायत मिली है? भारत की अपनी भाषा संस्कृत की सेवा में लगे बच्चों को रियायत के बारे में कोई नहीं सोचता, लेकिन मदरसा छात्रों को खुश करने की कोशिश क्यों होती है? अगर सरकार को मदरसों का भला ही करना है, तो वह मदरसों की डिगि्रयों को देश की मुख्य धारा की डिगि्रयों के समकक्ष क्यों नहीं मान लेती? हर बार मदरसों के लिए कुछ न कुछ घोषणा बजट में होती है, लेकिन इस बार रेलवे ने भी मेहरबानी की है। क्या ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अभी से तुष्टिकरण के महत्वपूर्ण काम में लग गई हैं?

ये नेता नहीं जानते कि मदरसे में पढ़ाई कितनी मुश्किल होती है? मदरसों में पढ़ने-पढ़ाने वालों के घरों में चूल्हे कैसे जलते हैं? उन्हें व्यापक भारतीय समाज में कितनी इज्जत नसीब होती है? उन्हें नौकरी कहां-कहां मिलती है? मदरसों में पढ़कर निकले कितने लोगों को ममता बनर्जी के विभाग ने नौकरी दी है? मदरसों से पढ़कर निकले कितने युवाओं को राहुल गांधी ने भारत के भविष्य के लिए चुना है? ऐसी उम्मीद भाजपा से कोई नहीं कर सकता, लेकिन कांग्रेस से सबको उम्मीद रहती है? लेकिन वह भी मुस्लिमों के विकास के लिए कृत्रिम उपाय करती रहती है, तो आइए, मन मसोस कर नई रियायत का इस्तकबाल करें और उम्मीद करें कि रियायत पाकर पढ़े बच्चे भी कभी लाखों रुपये कमाएंगे।

1 comment:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

भाई जी, कंग्रेसिए और उस टाइप के सारे दल इस काम में माहिर हैं। पहले आग का फुरफुरा लगाओ, दहकाओ, भड़काओ और फिर दमकल ले बुझाओ।

एक्सपर्ट हैं जी। सँभाल लेंगे। आप चिंता न करें।