बजट में गांवों और किसानों का खूब जोर चला है। गांवों के लिए इतना कुछ दिया गया है कि अगर तंत्र ईमानदारी हो, तो एक ही बजट राशि से गांवों का कायापलट हो सकता है। कागज पर नरेगा की सफलता से उत्साहित केन्द्र सरकार ने नरेगा के लिए आवंटित धन को 144 प्रतिशत बढ़ाकर 39,100 करोड़ रुपये कर दिया है। यह धन इतना ज्यादा है कि देश के किसी भी गांव में कोई भी मजदूर ऐसा नहीं बचेगा, जो नरेगा से न जुड़ा हो। इसके अलावा सरकार ने गांवों में सड़कों के लिए 12,000 करोड़ रुपये, आवास निर्माण वाली दो योजनाओं के लिए 10800 करोड़ रुपये, विद्युतिकरण के लिए 7000 करोड़ रुपये, स्वास्थ्य के लिए 257 करोड़ रुपये प्रस्तावित किए हैं। गरीबी को पचास फीसदी घटाने की कागजी घोषणा भी स्वागतयोग्य है।
लेकिन दुख की बात है कि प्रणव मुखर्जी महत्वाकांक्षी विकास योजनाओं को विफल करने वाले तंत्र पर कुछ नहीं बोले, उनका तंत्र वही है, जिसने ज्यादातर गांवों में नरेगा के तहत 100 दिन की बजाय लोगों को केवल 10-12 दिन का रोजगार प्रदान किया है। प्रणव अपने बजट भाषण में बार-बार कौटिल्य या चाणक्य का जिक्र कर रहे थे, लेकिन उन्होंने चाणक्य की नीतियों के बारे में कुछ खास नहीं कहा। उन्होंने यह नहीं बताया कि नरेगा या अन्य योजनाओं का धन खाने वाले भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों या अधिकारियों के लिए बारे में चाणक्य ने क्या कहा था। उन्होंने यह नहीं बताया कि चाणक्य के समय भ्रष्ट लोगों के साथ क्या सलूक होता था। उन्होंने कहा कि आयकर की नई संहिता 45 दिन में आ जाएगी, वित्त आयोग की रिपोर्ट अक्टूबर तक आ जाएगी, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि भ्रष्टाचार पर रोक के लिए संहिता कब आएगी। राहुल गांधी ने भी भ्रष्टाचार पर उंगली उठाई थी, लेकिन प्रणव मुखर्जी योजनाओं में ईमानदारी और पारदर्शिता संबंधी किसी भी घोषणा से बच निकले। गरीबों को तीन रुपये प्रति किलो चावल देने की घोषणा कर दीजिए, बजट में अरबों-खरबों आवंटित कर दीजिए, चाणक्य का बार-बार नाम ले लीजिए, लेकिन जब तक बेईमानी है, तब तक बजट बनते रहेंगे और नतीजों के इंतजार में आंखें पथराती रहेंगी।
साधु को सदा याद रहे कि वह साधु है
2 months ago