पंद्रहवें लोकसभा चुनाव के नतीजों ने इतना चौंका दिया है कि कई नेताओं को धरातल पर आने में वक्त लग जाएगा। न तो कांग्रेस ने ऐसी जीत की कल्पना की थी और न भाजपा ने ऐसी हार का अंदाजा लगाया था। देश में खुशनुमा माहौल का अंदाजा लगाया जा सकता है, लोग इस बात से ज्यादा खुश हैं कि केन्द्र में पहले से ज्यादा मजबूत सरकार बनेगी और क्षेत्रीय दलों के नेताओं के नखरे कम होंगे। पूरे पांच साल शासन में रहने के बाद प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह की वापसी ने उन्हें विशेष प्रधानमंत्री की श्रेणी में खड़ा कर दिया है। नतीजों से साबित हो गया, अगर आपके पास दिखाने लायक नाम और काम हों, तो क्वएंटीइनकमबेंसीं का फैक्टर नाकाम हो जाता है। जनता ने महसूस किया कि कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए से बेहतर कोई विकल्प नहीं है, तो उसने यूपीए को ही चुना। बेशक, लोगों ने इस बार चतुराई और अच्छी सोच का परिचय दिया है। सोनिया गांधी लगातार यह बोल रही थीं कि कांग्रेस व यूपीए से बेहतर कोई विकल्प नहीं है और लोगों ने भी उनकी बात को माना। भाजपा नाकाम हुई, क्योंकि उसके पास न तो कांग्रेस की टक्कर के नाम थे और न काम था। लालकृष्ण आडवाणी और नरेन्द्र मोदी की एक सीमा है, जिसका अंदाजा भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ राजग के भी अनेक नेताओं को हो गया है। मौका गंवाने वाले कथित लौहपुरुष और दामन पर दंगों के दाग वाले भाजपा के नेतृत्वकर्ताओं को अब नए सिरे से सोचना होगा। अच्छा गुजराती नेता होने और अच्छा राष्ट्रीय नेता होने में फर्क है। गड़बड़ तो वहां शुरू हुई, जब हमले राष्ट्रीय स्तर के क्वपीएम इन वेटिंगं पर होते थे और जवाब एक मुख्यमंत्री की ओर से आता था। गड़बड़ वहां हुई, जब आडवाणी ने मनमोहन की चुनावी आरोपों पर दुख के इजहार के साथ अघोषित समर्पण कर दिया। -कांग्रेस अति-आत्मविश्वास में नहीं थी, तभी तो मनमोहन के लिए नया मकान तक खोजा जा रहा था। कांग्रेस नेता विपक्ष में बैठने को तैयार नजर आ रहे थे। कांग्रेस को अपनी विफलताओं का अंदाजा था, इसलिए कांग्रेस ने बार-बार आतंकवाद की बात की और लोगों को बताया कि राजग शासन के समय ज्यादा बुरी स्थिति थी। कांधार प्रकरण का बार-बार जिक्र और जवाब देने में भाजपा की विफलता ने कमाल दिखाया। एक हद तक यूपीए सरकार का कामकाज भी काम आया है। हालांकि कहना न होगा, पूरी सरकार नहीं जीती है। वाघेला, मणिशंकर अय्यर, रामविलास पासवान जैसे दिग्गज मंत्री लुट गए, लालू जैसा यूपीए सरकार का सबसे वाचाल मंत्री भी एक जगह से लुट गया। चिदंबरम जैसा काबिल मंत्री बामुश्किल जीता है। यह भी ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री सहित छह से ज्यादा कैबिनेट मंत्री चुनाव मैदान में नहीं उतरे थे। तो अगर सरकार का कामकाज बहुत प्रभावी होता, तो सारे मंत्री न केवल चुनाव लड़ते, बल्कि जीत कर लौटते। लालू दिल्ली पहुंचकर फिर सबसे हंसी-मजाक कर सकेंगे, लेकिन वह हंसी पहले जैसी नहीं होगी, उसमें एक मलाल होगा। यूपीए की क्वबड़ी जीतं में क्वथोड़ी-सी हारं शामिल है। यह देश के लिए अच्छा। अब काम और विकास पर पहले से ज्यादा गौर किया जाएगा। बहरहाल, कांग्रेस पूरी तारीफ की हकदार है, उसने वषो बाद उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में अकेले चलने का साहस दिखाया। यह साहस राहुल गांधी के विश्वास का नतीजा है, जिसके अनेक भावी नतीजे कांग्रेस को और सशक्त करेंगे।
साधु को सदा याद रहे कि वह साधु है
2 months ago
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