हम जिससे गुजरे, वह कोई मामूली आतंकी कारवाई नहीं, बल्कि हमारे देश पर हमला था। लगता है, आतंकियों ने आम भारतीयों की बजाय संपन्न वर्ग को निशाना बनाने की साजिश पर काम शुरू कर दिया है। अब निशाना सीधे निर्णायक वर्ग पर है, उस वर्ग पर है, जो व्यवसाय से जुड़े अहम फैसले लेता है। जो मुंबई लोकल ट्रेनों में धमाकों से नहीं रुकी थी, उसे वीआईपी जगहों पर हमले करके रोकने का दु:साहस आतंकियों ने दिखाया। अब वक्त प्रहार का है और यह बात सरेआम हो गई है कि हमारी सरकारें प्रहार के मूड में नहीं हैं। शिथिलता की बीमारी ने सरकारों को ठस बना रखा है, सरकारों को कुछ सूझ नहीं रहा। बड़े-बड़े सूरमा जासूस, अफसर, नेता भी हाथ-पांव फुलाए-बेतरह घबराए बैठे हैं। भ्रष्ट सरकारों की जितनी निंदा की जाए कम है। राजनीतिक पार्टियों की जितनी निंदा की जाए कम है। किसी ने भी ईमानदारी से आतंकवाद के खिलाफ जंग का इरादा पेश नहीं किया है, तभी तो एक के बाद एक हमारे शहर निशाने पर लिए जा रहे हैं। आतंकवाद का पानी सिर के ऊपर से बहने जा रहा है। अब काली कमाई का पाप-कर्म छोड़कर कुछ कदम उठाने ही होंगे। पहला कदम, मंत्री हो या संत्री, ढीले लोगों को आतंकवाद के खिलाफ जंग में शामिल नहीं करना चाहिए। ये लोग जंग में जंग लगाने का काम करते हैं। तेरा कानून-मेरा कानून का हल्ला मचाते हैं, तेरा मजहब-मेरा मजहब का खेल खेलते हैं, तेरा वोट बैंक-मेरा वोट बैंक के नारे लगाते हैं। अब ऐसे नेताओं को शर्म आनी चाहिए। देश को आतंकवाद के खिलाफ धूर्तता भरे बयान नहीं, ईमानदारी की ललकार चाहिए। अफसोस, सरकार में एक भी ऐसा मंत्री नहीं है, जो आतंकवादियों को खुली आवाज में ललकार सके। नरमी, मीठी बोली और शालीनता किस काम की, जब अपने ही लोगों का खून बह रहा हो। अब नेताओं को मुंबई के दौरे का दौरा पड़ गया है, वे जांच के काम में परोक्ष रूप से बाधा पहुंचा रहे हैं। नेताओं को गौर करना चाहिए, लोग भरे बैठे हैं। समय रहते सरकारें खुद को सुधार लें, क्योंकि टिकेगा वही, जिसमें मुकाबले का माद्दा होगा।
----27 नवंबर को लिखा गया संपादकीय--------
2 comments:
अरे भाई सरकारें सोने के लिए ही होती है ,जागने के लिए नही | जागने के लिए तो हम जैसे नागरिक है ना, वो भी इसलिए जाग रहें है क्योकि एसा ही माहोल रहा तो नींद आएगी ही नही |
sarkar abhi jagi hui hai,
dua kijiye ki jagi rahe
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