Thursday, 15 May 2008
शक्ति हमें देना दाता
दूसरी अफसोस की बात यह कि इन विस्फोटों में राजनीति के भी मौके तलाशे गए हैं। जनता ऐसी राजनीति को अब समझने लगी है, उसे पता है, सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की, आतंकवाद के सामने सभी लाचार हो जाते हैं। गरीबों को लाठियों से खदेड़ने वाली पुलिस के हाथ-पांव आतंकी हमलों के समय फूल जाते हैं। वक्त की मांग है, आतंकवाद के खिलाफ विशेष नीति, विशेष बल और विशेष कानून लाया जाए।
आज लाल है गुलाबी
पत्रकार होने का धर्म
यह मेरे इस शहर जयपुर के लिए पहला बड़ा हादसा था, यों तो मैंने बहुत शहर dekhe हैं मगर जयपुर दिखने में वाकई अजब-गजब है। लोगों के बारे में मेरी राय अभी प्रशंसनीय नहीं बन पाई है, लेकिन शहर के बारे में समग्रता में मेरी राय दुरुस्त है। मैं डेली न्यूज के संपादकीय पेज का प्रभारी हूं, मैं पेज लगाकर घर के लिए रवाना हो चुका था, लेकिन रास्ते से ही लौट आया, क्योंकि जयपुर में विस्फोट की खबर लग चुकी थी, एक फोन घर किया, सलामती की खबर ली और दफ्तर में मोर्चे पर लग गया। पहले संपादकीय लिखा और फिर मन न माना, तो एक लेख। मुझे उम्मीद थी, शहर के दोनों नामी अखबार संपादकीय पेजों को विस्फोट जनित विचारों से रंग देंगे। ये दोनों अखबार शहर की सेवा का घमंड पाला करते हैं, लेकिन अफसोस, 14 मई को दोनों ही अखबारों के संपादकीय पेज पर विस्फोट की चिंता की एक लकीर तक नहीं थी। पता नहीं, ऐसे मौकों पर कई पत्रकार भाइयों को नींद कैसे आ जाती है? आश्चर्य होता है। जो समय पर सो जाए, उसके बाद में जागने का क्या मतलब है? उसमें और एक आम आदमी में क्या फर्क है? 11 अक्टूबर को जब अजमेर में ख्वाजा के दरबार में विस्फोट हुआ था, तब भी मुझे नींद नहीं आई थी, देर रात तक दफ्तर में रहा था। तब भी तत्काल टिप्पणी करने वालों में डेली न्यूज ही था। हां, एक और बात, 11 अक्टूबर को वरिष्ठ सम्मानित पत्रकार राजीव तिवारी के साथ मेरा मिलना तय था, लेकिन मैं अजमेर कांड के कारण वह मुलाकात अधूरी रह गई थी, आज मेरा सौभाग्य है, वह मेरे संपादक हैं। 13 मई को जब मैंने लिखा, आज लाल है गुलाबी, तब राजीव जी ने मेरी ओर ऐसी अभिभूत नजरों से देखा, जिसे मैं भूल नहीं सकता। पत्रकारिता आगे भी जारी रहेगी, लेकिन इस शहर का यह हादसा और उसके अनुभव हमेशा याद रहेंगे।