पहले जमाने में मुर्गे लड़वाए जाते थे। लोग खूब मजे लेते थे। मुर्गे लहुलूहान हो जाते थे। बाजी लगा करती थी, हारने वाला मुर्गा अक्सर कटकर कढ़ाई में पककर थाली में सजता था। नए जमाने में मुर्गे मजेदार नहीं रहे, ब्यॉलर के दौर में लेयर मुर्गों को कौन पूछे, मुर्गों की कुश्ती तो दूर, सुबह-सबेरे उनकी बान तक सुनाई नहीं पड़ती। नतीजा यह कि मुर्गे की कमी आदमियों को पूरी करनी पड़ रही है। तो अब जमाना मुस्टंडे पहलवानों का है, मुस्टंडा अगर द ग्रेट खली जैसा विशाल हो, तो फिर क्या कहना? जितना भार-उतना भाव!कुछ टीवी चैनल वालों की नजर में खली स्क्रीन पर पूरा फिट बैठता है, तो लीजिए, आए दिन खली की खाल खींचते कार्यक्रम चलते रहते हैं। खली भी खूब पैसे लेकर इंटरव्यू देता है। वह भी कमा रहा है, चैनल वाले भी कमा रहे हैं और लोगों को मुर्गा लड़ाई का मजा तो चाहिए ही। डब्ल्यूडब्ल्यूई के मखमली अखाड़े में खली या तो दुश्मनों को पटकता है या फिर खुद धम्म से चारो खाने चित्त हो जाता है। अपने यहां का चौपाल-चबूतरा हो, तो हड्डी-पसली एक हो जाए, लेकिन डब्ल्यूडब्ल्यूई की तो बात ही कुछ और है। बटिस्टा पहलवान खली की कान में धीरे से फुसफुसाता है, `यार, तू दबाता ज्यादा है और पटकता कम है। पटकता है, तो इतना धीरे से कि मजा नहीं आता। ऐसे पटक कि पेट में जो पांच मुर्गे अभी-अभी गए हैं, झटके से पच जाएं कि फिर जगह बने, बाहर देख, मैनेजर दो किलो मटन पकाए बैठा है, जल्दी से पटकापटकी संपन्न कर कि चलकर जीमा जाए।´खली भी बोलता है, `भई, मैं तुझे इसलिए जोर से नहीं पटक रहा कि कहीं तू बुरा न मान जाए, तो ऐसा करते हैं, तू पहले मुझे पीट कि मेरे पेट में पड़े पांच चिकन, पांच किलो दूध और चौबीस अंडे, पच्चीस रोटियां ठिकाने लगें, तो बदन में फुर्ती आए।´ उधर से पहलवानों के ठेकेदारों की आवाज आती है, `एक दूसरे को पीटो, नामुरादो! पैसे गप्प मारने के लिए नहीं, लड़ने के लिए डकारे हैं। नहीं लड़े, तो दोनों की आधी-आधी रकम गोल कर देंगे।´ उधर, खली लड़ रहा है, कमजोर पहलवानों की खोपडि़यां दबा रहा है और इधर, चैनल वाले बल्ले-बल्ले कर रहे हैं। खली फिनले पहलवान को बस एक बार पटकेगा और दो-तीन चैनल वाले उसे दिन भर पटकेंगे। बार-बार इतना पटकेंगे कि अखाड़ों के जमाने वाले दादा जी परेशान हो उठेंगे। आजकल दादा जी ’यादा परेशान हैं, कहीं कोई एक पहलवान कचूमर काढ़ दे रहा है, तो कहीं, चार-चार पहलवान मिलकर खली की खटिया खड़ी कर रहे हैं। चैनल वाले पहले यह बताने पर तुले हैं कि खली भोला-भला भारतीय है, उसे धोखे से हराया जाता है, लेकिन वे यह नहीं बताते कि खली ने अंडरटेकर को भी अपने साथी पहलवान-मैनेजर की नाजायज मदद से हराया था, उसके बाद से अंडरटेकर खली को दो बार कूट चुका है। दादा जी बताते हैं, `खली जब बार-बार पिटेगा, तभी चैनल वाले उसका पीछा छोड़ेंगे।´ लेकिन दादा जी को बताया जाता है कि चैनल वाले खली का पीछा भले छोड़ दें, खली अब चैनल वालों का पीछा नहीं छोड़ेगा। उसने गुड़गांव में एक प्रवक्ता पदस्थ कर दिया है, ताकि चैनल वालों को खली ब्रांड खुराक लगातार मिल सके। आजकल खली का प्रवक्ता यह बताने में जुटा है कि खली को चार मुस्टंडों ने मिलकर हराया, उसके साथ अन्याय हुआ है। भारत में एक चैनल वीर उत्तेजित होकर चीख रहा है, `क्या खली को न्याय मिलेगा?´ और उधर अटलांटा में खली पहलवानों के एक डीलर को पटा रहा है, `सेठ जी, हारने के कितने डॉलर दोगे?´ डीलर बोलता है, `नहीं, इस बार आपको जीतना है,´ लेकिन खली हारने के लिए बेकरार है, बोल रहा है, `जीतने के लिए मेहनत करनी पड़ती है, हारने के लिए क्या है, रिंग में खड़े हो जाओ, तो कोई पिद्दी पहलवान भी छोटे से डंडे से काम लगा जाता है, मेहनत नहीं करनी पड़ती, देह तकलीफ से बच जाती है। बस एकाध दफा दुश्मन की खोपड़ी दबाने का नाटक कर दिया, एक दो हाथ चला दिए, एक दो बार सिर नीचे-ऊपर करके बाल झटक दिए, और करोड़ों रुपये जेब में चित्त, काम चोखा।´ भारतीयों का क्या, उन्हें बरगलाने के लिए एकाध लाख रुपये का निवेश बहुत है। आदमियों की मुर्गा लड़ाई को पॉपुलर बनाया जा रहा है। सात-आठ फुटे लोगों की आंखों में मुस्टंडा बनने के सपने सजने लगे हैं। चैनलों के हाथों खली ने खाल खिंचवाकर मुस्टंडों की एक्स्ट्रा लॉर्ज प्रजाति को पुनर्जीवन दिया है। खली, वाकई तुम ग्रेट हो। शाहरुख के सिक्स पैक की नहीं, तुम्हारे जैसे बिग पैक की मांग बढ़ने वाली है!