हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा।
अल्लामा इकबाल ने हिन्दुस्तान के लिए क्या खूब लिखा है, लेकिन वह दक्षिण एशिया के लिए कोई सद्भावी कवि नहीं थे। उनकी कथनी और करनी में बड़ा भेद था, उन्होंने लिखा कि मजहब बैर करना नहीं सिखाता, लेकिन खुद ही मजहब के आधार पर खार खाए बैठ गए। बताते हैं कि इकबाल ने सद्भाव की बातें केवल अपनी तीन ही गीत-कविताओं में की, बाकी तो उन्होंने जो भी लिखा उस पाकिस्तान के लिए लिखा, जिसके चिंतन-साहित्य की गोद में हिन्दुस्तान को मिटाने के ख्वाब पले। यह हिन्दुस्तान की खूबी है कि हमने कभी अपने बच्चों को यह नहीं बताया कि सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा... लिखने वाला कवि कट्टर मजहबी व्यक्ति था। इकबाल के ये दो गीत हम गाते रहे हैं और गाते रहेंगे।
भारत आज भी भारत है इस बात के साथ कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी...
लेकिन पाकिस्तान आज भी अपने होने का मतलब तलाश रहा है। वह आतंकवाद में पाकिस्तान खोज रहा है, वह मजहबी कट्टरपन में पाकिस्तान खोज रहा है। वह लोकतंत्र व लोकलाज के विपरीत जाकर पाकिस्तान खोज रहा है। उनका देश उन्हें मुबारक हो। हम अपनी सोचें...
कश्मीर हमसे कौन छीन सकता है? पहले जितना चला गया, उसे तो छोटे भाईजान (पाकिस्तान) और बड़े भाईजान (चीन) ने आपस में बांट लिया है, उसकी तमन्ना तो रहेगी, लेकिन ज्यादा बेहतर यह होगा कि हम अपने हिस्से के कश्मीर को आदर्श बनाएं। पुलवामा के बाद युद्ध होता भी है, तो उसके बावजूद कुछ ऐसे कदम हैं, जो हमें आंतरिक स्तर पर उठाने पड़ेंगे। या यह भी संभव है कि ये कुछ कदम कड़ाई से उठाए जाएं, तो युद्ध की जरूरत ही न पड़े।
पहला कदम - कश्मीर के उन इलाकों को चिन्हित करना, जो समस्याग्रस्त हैं। जम्मू-कश्मीर की कुल आबादी 1.44 करोड़, जबकि अकेले दिल्ली में उससे लगभग दोगुने लोग रहते हैं। आतंकवाद की आधारभूत समस्या वाले करीब 16 जिले जम्मू-कश्मीर में हैं, जिनकी कुल आबादी करीब 90 लाख है। जाहिर है, यह कोई छोटी संख्या नहीं है, लेकिन पूरे 90 लाख कश्मीरियों का ब्रेनवॉश हो गया हो, यह संभव नहीं है। एक तिहाई कश्मीरियों का भी ब्रेनवॉश हो गया है, तो उनके इलाके कौन-से हैं, वे चिन्हित हों, ताकि उनके लिए अलग नीतियां बनें। इन इलाकों में कौन-सी सुविधाएं मिलेंगी और कौन-सी नहीं मिलेंगी, यह तय हो। एक नीति यह भी हो सकती है कि विशेष रूप से ऐसे ब्रेनवॉश लोगों को देश में कहीं और जाने से रोका जाए। जिस देश से प्यार नहीं, उस देश में घूमने की आजादी क्यों? पहले भारत जैसे देश में रहने के काबिल होइए, फिर आइए। भारत में रहकर पाकिस्तान के सपने वही देख सकता है, जो इतिहास नहीं जानता।
दूसरा कदम - पाकिस्तान को भूल जाइए। एक मरा हुआ देश सबको कब्र में देखना चाहता है। इधर हमें सुनिश्चित करना होगा कि पाकिस्तान या अलगाववाद के स्थानीय छुटभैय्यों दलालों को किसी भी तरह की सुविधा न मिले। तमाम अलगाववादी नेताओं को चिन्हित कर लेना चाहिए, ऐसे नेता दलाल न केवल कश्मीर में, बल्कि बाकी देश में भी फैले हुए हैं। ये लोग भारत में कश्मीर का सपना ठीक वैसे ही देख रहे हैं, जैसे कभी पाकिस्तान का सपना देखा गया था। ऐसे कथित धर्म आधारित अपवित्र सपनों का कोई अर्थ नहीं है। भारत कोई बार-बार टूटने के लिए नहीं बना है। भारत सेकुलर होने की प्रतिबद्धता की वजह से कब तक टूटता रहेगा? जितना टूट गया, बहुत है, अब तो तोडऩे का सपना देखने वालों को तोडक़र रख देना चाहिए।
तीसरा कदम - कश्मीर को अपराध के विरुद्ध शून्य असहिष्णुता का क्षेत्र घोषित करना होगा। भारत धर्म को न देखे। यह हिन्दू-मुस्लिम की लड़ाई नहीं है, यह एक जिम्मेदार देश और अपराधियों की लड़ाई है। भारत केवल अपराध को देखे और उसे खत्म करे। आज आतंकवाद जघन्य अपराध है। जिस दौर में लोगों को वोट देने का अधिकार न था, जिस दौर में शासन-प्रशासन अत्याचारी हुआ करता था, उस दौर में आतंकवाद या उग्रवाद की बात समझ में आती है, किन्तु भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में वो तमाम लोग बहुत बड़े अपराधी हैं, जो लोकतंत्र की बजाय बंदूक से सत्ता पाना चाहते हैं। अपराधी या आतंकवादी वो लोग भी हैं, जो कई तरह की लूट-खसोट में लगे हैं। खाए-पिए-अघाए उन अफसरों से भी कश्मीर को छुटकारा दिलाना होगा, जो हिंसा की आंच पर मोटी-मोटी रोटियां सेंकते रहे हैं। ऐसे अफसर वहां तैनात करने होंगे, जो जमीनी स्तर पर प्रशासन में बदलाव लाएंगे।
चौथा कदम - पूरा देश विशेष, हर नागरिक समान। कश्मीर को जो विशेष सुविधाएं मिली हुई हैं, वो कश्मीरियों के अहंकार को बढ़ाती रही हैं। वे स्वयं को बाकी भारतवासियों से श्रेष्ठ मानते हैं। अहंकार और श्रेष्ठता बोध की इसी उर्वर जमीन पर पाकिस्तान आतंकवाद की फसलें ले रहा है। एक-एक कर इन सुविधाओं, विशेषताओं को खत्म करना होगा। आप प्रशासन और शासन को ईमानदार बनाइए, तो आप ऐसा कर पाएंगे, यह असंभव नहीं है। ऐसे कार्य में चीन (बड़े भाईजान) विशेषज्ञ है, उनसे हमें जरूर सीखना चाहिए। कश्मीर में जमीन खरीदने का अधिकार सबको होना चाहिए, इससे कश्मीर का ही फायदा है। कश्मीर को दुनिया से अलग-थलग नहीं रखा जा सकता। कश्मीर को दुनिया की उसी मुख्यधारा में लाना होगा, जिसमें पंजाब या उत्तर प्रदेश या तमिलनाडु है।
पांचवा कदम - एक और मामले में हमें चीन का अनुकरण करना चाहिए, जैसे चीन हमारा पानी रोक रहा है, ठीक उसी तरह से हमें भी पाकिस्तान का पानी रोकना चाहिए। जो जल संधियां पहले हुई हैं, उन्हें रखिए किनारे और घोषित कर दीजिए, शैतानों के इलाके में नहीं जाएंगी नदियां। पहले इंसान बनो, तब नदियों का मतलब समझ में आएगा। पांडव यदि धर्मराज युधिष्ठिर के नेतृत्व में चलते, तो कतई नहीं जीतते, कृष्ण के नेतृत्व में ही महाभारत का शानदार समापन हुआ था। एक नए समाज की नींव रखी गई थी।
छठा कदम - अंतरराष्ट्रीय घेराबंदी। पाकिस्तान को सुधरने के लिए मजबूर करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए। एक शांत और लोकतांत्रिक पाकिस्तान हमारे लिए वरदान होगा। पाकिस्तान को सुधारने में ही दुनिया की भलाई है। चीन तो व्यावसायिकता में धूर्तता और निर्ममता दोनों का ही परिचय दे रहा है। भारत को यह बात समझ लेनी चाहिए कि चीन हमारा शुभचिंतक नहीं है। ठीक से समझ लीजिए, भारत के खिलाफ आतंकवाद केवल पाकिस्तान का एजेंडा नहीं है, चीन का भी एजेंडा है। हम उससे युद्ध भले न करें, लेकिन उसके साथ झूला झूलने का कोई मौका नहीं आने दें। चीन हमें खोखला कर रहा है, उससे व्यावसायिक तरीके से ही जवाब देना होगा। दूसरी ओर, वो तमाम देश, जो पाकिस्तान से पीडि़त हैं या नाराज हैं या शत्रुता भाव वाले हैं, उन्हें अपने साथ लाना होगा। पाकिस्तान के स्याह चेहरे से नकाब हटाने के लिए बड़े-बड़े शिखर सम्मेलन करने होंगे। हर दुष्ट का हर स्तर पर अपमान तब तक होना चाहिए, जब तक उसकी दुष्टता ठिकाने न लग जाए।
सातवां कदम - विदेशी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों और देशी ठिकानों का अंत। भारत इस मामले में स्वयं पहल करे या फिर इजराइल जैसे किसी कुशल साथी को साथ लेकर आतंकवादियों पर सीधे सीमा पार प्रहार करे। घोषणा हो जाए, हमारी लड़ाई पाकिस्तान से नहीं, आतंकवादियों से है। पाकिस्तान को बार-बार याद दिलाएं कि उसने कब कब क्या क्या वादे किए थे। कोई देश कब तक झूठ बोल सकता है, उसे कभी तो सच बोलना ही होगा।
भारत चूंकि उदार और क्षमाशील देश है, इसलिए हम अपने दुश्मनों को बहुत आसानी से भूल जाते हैं, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। कृष्ण ने आतंकवादी कृत्य करने वाले अश्वत्थामा के सिर से मणि निकालकर उसे जीवित छोड़ दिया था, लेकिन अब वह समय नहीं है, जब हम किसी अश्वत्थामा को चिरंजीवी बनाकर छोड़ दें। आतंकवाद का समापन होना चाहिए। भारत सरकार अगर ठान ले, तो यह कतई असंभव नहीं है।
यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा।
अल्लामा इकबाल ने हिन्दुस्तान के लिए क्या खूब लिखा है, लेकिन वह दक्षिण एशिया के लिए कोई सद्भावी कवि नहीं थे। उनकी कथनी और करनी में बड़ा भेद था, उन्होंने लिखा कि मजहब बैर करना नहीं सिखाता, लेकिन खुद ही मजहब के आधार पर खार खाए बैठ गए। बताते हैं कि इकबाल ने सद्भाव की बातें केवल अपनी तीन ही गीत-कविताओं में की, बाकी तो उन्होंने जो भी लिखा उस पाकिस्तान के लिए लिखा, जिसके चिंतन-साहित्य की गोद में हिन्दुस्तान को मिटाने के ख्वाब पले। यह हिन्दुस्तान की खूबी है कि हमने कभी अपने बच्चों को यह नहीं बताया कि सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा... लिखने वाला कवि कट्टर मजहबी व्यक्ति था। इकबाल के ये दो गीत हम गाते रहे हैं और गाते रहेंगे।
भारत आज भी भारत है इस बात के साथ कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी...
लेकिन पाकिस्तान आज भी अपने होने का मतलब तलाश रहा है। वह आतंकवाद में पाकिस्तान खोज रहा है, वह मजहबी कट्टरपन में पाकिस्तान खोज रहा है। वह लोकतंत्र व लोकलाज के विपरीत जाकर पाकिस्तान खोज रहा है। उनका देश उन्हें मुबारक हो। हम अपनी सोचें...
कश्मीर हमसे कौन छीन सकता है? पहले जितना चला गया, उसे तो छोटे भाईजान (पाकिस्तान) और बड़े भाईजान (चीन) ने आपस में बांट लिया है, उसकी तमन्ना तो रहेगी, लेकिन ज्यादा बेहतर यह होगा कि हम अपने हिस्से के कश्मीर को आदर्श बनाएं। पुलवामा के बाद युद्ध होता भी है, तो उसके बावजूद कुछ ऐसे कदम हैं, जो हमें आंतरिक स्तर पर उठाने पड़ेंगे। या यह भी संभव है कि ये कुछ कदम कड़ाई से उठाए जाएं, तो युद्ध की जरूरत ही न पड़े।
पहला कदम - कश्मीर के उन इलाकों को चिन्हित करना, जो समस्याग्रस्त हैं। जम्मू-कश्मीर की कुल आबादी 1.44 करोड़, जबकि अकेले दिल्ली में उससे लगभग दोगुने लोग रहते हैं। आतंकवाद की आधारभूत समस्या वाले करीब 16 जिले जम्मू-कश्मीर में हैं, जिनकी कुल आबादी करीब 90 लाख है। जाहिर है, यह कोई छोटी संख्या नहीं है, लेकिन पूरे 90 लाख कश्मीरियों का ब्रेनवॉश हो गया हो, यह संभव नहीं है। एक तिहाई कश्मीरियों का भी ब्रेनवॉश हो गया है, तो उनके इलाके कौन-से हैं, वे चिन्हित हों, ताकि उनके लिए अलग नीतियां बनें। इन इलाकों में कौन-सी सुविधाएं मिलेंगी और कौन-सी नहीं मिलेंगी, यह तय हो। एक नीति यह भी हो सकती है कि विशेष रूप से ऐसे ब्रेनवॉश लोगों को देश में कहीं और जाने से रोका जाए। जिस देश से प्यार नहीं, उस देश में घूमने की आजादी क्यों? पहले भारत जैसे देश में रहने के काबिल होइए, फिर आइए। भारत में रहकर पाकिस्तान के सपने वही देख सकता है, जो इतिहास नहीं जानता।
दूसरा कदम - पाकिस्तान को भूल जाइए। एक मरा हुआ देश सबको कब्र में देखना चाहता है। इधर हमें सुनिश्चित करना होगा कि पाकिस्तान या अलगाववाद के स्थानीय छुटभैय्यों दलालों को किसी भी तरह की सुविधा न मिले। तमाम अलगाववादी नेताओं को चिन्हित कर लेना चाहिए, ऐसे नेता दलाल न केवल कश्मीर में, बल्कि बाकी देश में भी फैले हुए हैं। ये लोग भारत में कश्मीर का सपना ठीक वैसे ही देख रहे हैं, जैसे कभी पाकिस्तान का सपना देखा गया था। ऐसे कथित धर्म आधारित अपवित्र सपनों का कोई अर्थ नहीं है। भारत कोई बार-बार टूटने के लिए नहीं बना है। भारत सेकुलर होने की प्रतिबद्धता की वजह से कब तक टूटता रहेगा? जितना टूट गया, बहुत है, अब तो तोडऩे का सपना देखने वालों को तोडक़र रख देना चाहिए।
तीसरा कदम - कश्मीर को अपराध के विरुद्ध शून्य असहिष्णुता का क्षेत्र घोषित करना होगा। भारत धर्म को न देखे। यह हिन्दू-मुस्लिम की लड़ाई नहीं है, यह एक जिम्मेदार देश और अपराधियों की लड़ाई है। भारत केवल अपराध को देखे और उसे खत्म करे। आज आतंकवाद जघन्य अपराध है। जिस दौर में लोगों को वोट देने का अधिकार न था, जिस दौर में शासन-प्रशासन अत्याचारी हुआ करता था, उस दौर में आतंकवाद या उग्रवाद की बात समझ में आती है, किन्तु भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में वो तमाम लोग बहुत बड़े अपराधी हैं, जो लोकतंत्र की बजाय बंदूक से सत्ता पाना चाहते हैं। अपराधी या आतंकवादी वो लोग भी हैं, जो कई तरह की लूट-खसोट में लगे हैं। खाए-पिए-अघाए उन अफसरों से भी कश्मीर को छुटकारा दिलाना होगा, जो हिंसा की आंच पर मोटी-मोटी रोटियां सेंकते रहे हैं। ऐसे अफसर वहां तैनात करने होंगे, जो जमीनी स्तर पर प्रशासन में बदलाव लाएंगे।
चौथा कदम - पूरा देश विशेष, हर नागरिक समान। कश्मीर को जो विशेष सुविधाएं मिली हुई हैं, वो कश्मीरियों के अहंकार को बढ़ाती रही हैं। वे स्वयं को बाकी भारतवासियों से श्रेष्ठ मानते हैं। अहंकार और श्रेष्ठता बोध की इसी उर्वर जमीन पर पाकिस्तान आतंकवाद की फसलें ले रहा है। एक-एक कर इन सुविधाओं, विशेषताओं को खत्म करना होगा। आप प्रशासन और शासन को ईमानदार बनाइए, तो आप ऐसा कर पाएंगे, यह असंभव नहीं है। ऐसे कार्य में चीन (बड़े भाईजान) विशेषज्ञ है, उनसे हमें जरूर सीखना चाहिए। कश्मीर में जमीन खरीदने का अधिकार सबको होना चाहिए, इससे कश्मीर का ही फायदा है। कश्मीर को दुनिया से अलग-थलग नहीं रखा जा सकता। कश्मीर को दुनिया की उसी मुख्यधारा में लाना होगा, जिसमें पंजाब या उत्तर प्रदेश या तमिलनाडु है।
पांचवा कदम - एक और मामले में हमें चीन का अनुकरण करना चाहिए, जैसे चीन हमारा पानी रोक रहा है, ठीक उसी तरह से हमें भी पाकिस्तान का पानी रोकना चाहिए। जो जल संधियां पहले हुई हैं, उन्हें रखिए किनारे और घोषित कर दीजिए, शैतानों के इलाके में नहीं जाएंगी नदियां। पहले इंसान बनो, तब नदियों का मतलब समझ में आएगा। पांडव यदि धर्मराज युधिष्ठिर के नेतृत्व में चलते, तो कतई नहीं जीतते, कृष्ण के नेतृत्व में ही महाभारत का शानदार समापन हुआ था। एक नए समाज की नींव रखी गई थी।
छठा कदम - अंतरराष्ट्रीय घेराबंदी। पाकिस्तान को सुधरने के लिए मजबूर करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए। एक शांत और लोकतांत्रिक पाकिस्तान हमारे लिए वरदान होगा। पाकिस्तान को सुधारने में ही दुनिया की भलाई है। चीन तो व्यावसायिकता में धूर्तता और निर्ममता दोनों का ही परिचय दे रहा है। भारत को यह बात समझ लेनी चाहिए कि चीन हमारा शुभचिंतक नहीं है। ठीक से समझ लीजिए, भारत के खिलाफ आतंकवाद केवल पाकिस्तान का एजेंडा नहीं है, चीन का भी एजेंडा है। हम उससे युद्ध भले न करें, लेकिन उसके साथ झूला झूलने का कोई मौका नहीं आने दें। चीन हमें खोखला कर रहा है, उससे व्यावसायिक तरीके से ही जवाब देना होगा। दूसरी ओर, वो तमाम देश, जो पाकिस्तान से पीडि़त हैं या नाराज हैं या शत्रुता भाव वाले हैं, उन्हें अपने साथ लाना होगा। पाकिस्तान के स्याह चेहरे से नकाब हटाने के लिए बड़े-बड़े शिखर सम्मेलन करने होंगे। हर दुष्ट का हर स्तर पर अपमान तब तक होना चाहिए, जब तक उसकी दुष्टता ठिकाने न लग जाए।
सातवां कदम - विदेशी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों और देशी ठिकानों का अंत। भारत इस मामले में स्वयं पहल करे या फिर इजराइल जैसे किसी कुशल साथी को साथ लेकर आतंकवादियों पर सीधे सीमा पार प्रहार करे। घोषणा हो जाए, हमारी लड़ाई पाकिस्तान से नहीं, आतंकवादियों से है। पाकिस्तान को बार-बार याद दिलाएं कि उसने कब कब क्या क्या वादे किए थे। कोई देश कब तक झूठ बोल सकता है, उसे कभी तो सच बोलना ही होगा।
भारत चूंकि उदार और क्षमाशील देश है, इसलिए हम अपने दुश्मनों को बहुत आसानी से भूल जाते हैं, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। कृष्ण ने आतंकवादी कृत्य करने वाले अश्वत्थामा के सिर से मणि निकालकर उसे जीवित छोड़ दिया था, लेकिन अब वह समय नहीं है, जब हम किसी अश्वत्थामा को चिरंजीवी बनाकर छोड़ दें। आतंकवाद का समापन होना चाहिए। भारत सरकार अगर ठान ले, तो यह कतई असंभव नहीं है।