यदि किसी सभ्यता की गुणवत्ता जांचनी हो, तो यह देखा जाना जरूरी है कि वहां लोग अपने शिशुओं और बच्चों को कैसे रख रहे हैं। ठीक इसी तरह से आपको इस बात से भी आंका जाएगा कि आप अपने पालतू पशुओं और अन्य अबोध जीवों के प्रति कैसा व्यवहार करते हैं। जैसे गाय - पूरी तरह से हम पर निर्भर। जैसे शिशु पूरी तरह से ममता की छांव पर निर्भर। छत्तीसगढ़ में दोनों का हाल कैसा है, समाचारों ने बता दिया है, लेकिन आगे क्या? क्या हम कोई सबक सीखेंगे? पृष्ठभूमि निर्ममता और हिंसा की है और तुर्रा यह कि बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं और गाय माता होती है। तो बताइए कि रायपुर में ईश्वर के चार प्रतिरूप की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है? छत्तीसगढ़ में करीब ३५० गौ माताओं की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है? ध्यान रहे, थोड़े से प्रयास से इन मौतों को हत्या सिद्ध किया जा सकता है। माना कि इस साल छत्तीसगढ़ में पानी कम बरसा है, लेकिन इतना कम भी नहीं बरसा कि आंखों का पानी सूख जाए। राज्य के लोग व्यवस्था की आंखों में आंसू नहीं खोज रहे, वे तो केवल इतना चाह रहे हैं कि व्यवस्था आंख खोले। उठे कि ईश्वर के प्रतिरूपों और माताओं की हत्या का हिसाब देना है, न्याय करना है। ईश्वर के प्रतिरूपों और माताओं की सेवा में व्यवसाय खोजने वालों के चेहरे पहचानने चाहिए। हम अगर ईश्वर और माताओं को पूजते हैं, तो कुछ आधारभूत परिवर्तन हमें करने ही पड़ेंगे। यह परिवर्तन हर स्तर पर होगा। दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के साथ ही लोगों और व्यवस्था की मानसिकता में परिवर्तन लाना पड़ेगा। शिशु अस्पतालों और गौशालाओं की निगरानी चुस्त करने की जरूरत है। देखना होगा कि ऐसी जगहों पर संवेदनाहीन, शराबी और भ्रष्ट लोग न पल रहे हों।
महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘दुनिया को अगर असली शांति का पाठ पढ़ाना है, अगर युद्ध के विरुद्ध असली युद्ध लडऩा है, तो हमें बच्चों से शुरुआत करना पड़ेगी।’ बच्चों को सबसे पहले सुरक्षित करना पड़ेगा। सुनिश्चित करना पड़ेगा कि बच्चों के साथ अपराध करने वाला बच के न जाने पाए। सावधान रहिए, आप बच्चों की निगाह में हैं, वे भी समाचार पढ़ते हैं, उन्हें पता है कि हम उन्हें शराबियों के भरोसे छोड़ रहे हैं। उन्हें पता है कि हम उन्हें भगवान भरोसे छोड़ रहे हैं। यकीनन, वे जैसा व्यवहार पाएंगे, वैसा ही हमें और समाज को लौटाएंगे। संभव है, वे बदला लेंगे। बुजुर्ग अपमानित होंगे, समाज लुटेगा-बिखरेगा और वृद्धाश्रम खुलेंगे। एक प्रसिद्ध उक्ति है, जिसे हमेशा ध्यान में रखना चाहिए - ‘चिंता न कीजिए कि बच्चे आपको सुनते नहीं हैं, चिंता कीजिए कि वे हमेशा आपको देख रहे हैं।’
महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘दुनिया को अगर असली शांति का पाठ पढ़ाना है, अगर युद्ध के विरुद्ध असली युद्ध लडऩा है, तो हमें बच्चों से शुरुआत करना पड़ेगी।’ बच्चों को सबसे पहले सुरक्षित करना पड़ेगा। सुनिश्चित करना पड़ेगा कि बच्चों के साथ अपराध करने वाला बच के न जाने पाए। सावधान रहिए, आप बच्चों की निगाह में हैं, वे भी समाचार पढ़ते हैं, उन्हें पता है कि हम उन्हें शराबियों के भरोसे छोड़ रहे हैं। उन्हें पता है कि हम उन्हें भगवान भरोसे छोड़ रहे हैं। यकीनन, वे जैसा व्यवहार पाएंगे, वैसा ही हमें और समाज को लौटाएंगे। संभव है, वे बदला लेंगे। बुजुर्ग अपमानित होंगे, समाज लुटेगा-बिखरेगा और वृद्धाश्रम खुलेंगे। एक प्रसिद्ध उक्ति है, जिसे हमेशा ध्यान में रखना चाहिए - ‘चिंता न कीजिए कि बच्चे आपको सुनते नहीं हैं, चिंता कीजिए कि वे हमेशा आपको देख रहे हैं।’