ज्ञानेश उपाध्याय
आपकी जाति क्या है? जाति बता दिया, तो बताइए कि बिरादरी या उपजाति क्या है? जोधपुर शहर में आपकी बिरादरी की जानकारी हालिया माहौल में बहुत जरूरी है। मान लीजिए, आप ‘ए’ बिरादरी के हैं और ‘बी’ और ‘सी’ के लोग पकडक़र आपको बुरी तरह पीट रहे हैं, तो आप कृपया अपनी ‘ए’ बिरादरी के लोगों को ही मदद के लिए पुकारिए। न बुलाया, पिट गए, पुलिस में शिकायत हो गई। पुलिस सक्रिय हुई, तो ‘बी’ और ‘सी’ के लोग अपनी बिरादरी के आरोपियों के बचाव में लग जाएंगे। कुछ इंतजार कीजिए, हम पुलिस में भी खूब जाति देखेंगे। ‘बी’ गिरफ्तार होगा, तो ‘बी’ बिरादरी वाले चाहेंगे कि गिरफ्तारकर्ता पुलिस वाला भी ‘बी’ हो, मुकदमा लडऩे वाला वकील भी ‘बी’ हो और न्याय के मंदिर में भी कोई ‘बी’ मिल जाए, तो सोने पर सुहागा हो जाए?
शहर के आयोजनों, सभाओं, विवाहों, प्रदर्शनों, रैलियों पर गौर कीजिएगा, लग जाएगा कि हमें बिरादरी में जीने की आदत पड़ रही है। ऐसा लगेगा कि हम देश में नहीं, बिरादरी में सांस ले रहे हैं। हम बिरादरी देखकर प्रतिभाओं के साथ-साथ अपराधियों का भी सम्मान करने लगे हैं। शिक्षक भर्ती घोटाले में गिरफ्तार महानुभावों और भय से छिपे लाभार्थियों का जाति-बिरादरीगत विश्लेषण पेश कर दिया गया है और इस आधार पर यह भी बता दिया गया है कि जोधपुर में सरकार किस-किस जाति का शोषण कर रही है। लेकिन यह कोई नहीं देख रहा कि कथित शोषक किस जाति-बिरादरी के हैं। मुख्यमंत्री से लेकर हवालात में ताले लगाने वाले पुलिसकर्मी तक की जाति-बिरादरी की सूची अगर बनाई जाए, तो साफ हो जाएगा कि जाति-बिरादरी का हल्ला बेमतलब है।
जिस देश में वसुधैव कुटुंबकम का उद्घोष हुआ था, उसी देश में अपनी संकीर्ण बिरादरी को समाज मानते हुए जयकारे लग रहे हैं। जब देश को लूटा और तोड़ा जा रहा था, तब महान संत रामानंद ने सबको जोडऩे के लिए नारा दिया था, जात-पात पूछे नहीं कोई...हरि को भजे से हरि का होई। लेकिन आज सबसे पहले आपसे जाति-बिरादरी पूछी जाती है और देस-देश बाद में आते हैं। चिंतन की संकीर्ण शैली का एक उदाहरण देखिए कि भगवान परशुराम अब केवल ब्राह्मणों के बैनर पर नजर आते हैं, क्या मजाल कि कोई दूसरी जाति-बिरादरी परशुराम के चित्र का इस्तेमाल कर ले। हालात ऐसे हैं कि तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की टिप्पणी याद आ रही है। चर्चिल ने भारत को आजाद करते हुए यह भाव प्रकट किया था कि ये इंडियन आपस में लड़ेंगे और इनका देश टूट जाएगा। बेशक, हम भारतीय जन चर्चिल का सपना कभी पूरा नहीं होने देंगे, लेकिन हम यह तो जरूर सोचें कि हम अपनी संगठन शक्ति कहां लगा रहे हैं। किसको संगठित होना चाहिए और कौन संगठित हो रहा है? ये कुछ लोगों के निहित स्वार्थ साधक संगठन किसके काम आएंगे? किस बिरादरी में गरीब या गैरबराबरी नहीं है? बिरादरी की संगठन शक्ति अगर पूरी तरह से बिरादरी में समानता-संपन्नता लाने में लग जाए, अगर बिरादरी के अपराधियों को सुधारने में लग जाए, अगर बिरादरी के भ्रष्ट अफसरों-उद्यमियों को ईमानदार बनाने में लग जाए, तो कोई गलत बात नहीं, लेकिन कहां लग रही है? बिरादरी की कोरी अपणायत हमें कहां ले जाएगी, यह जरूर देखिए और सोचिए।
published in rajasthan patrika- jodhpur edition