हम इंसान चाहें, तो सब संभव है। इरादा नेक हो, तो हम यहीं स्वर्ग सजा सकते हैं और अगर बुरा हो, तो नर्क पसारने में जरा भी वक्त नहीं लगता। अजमेर के कायड़ गांव के लोगों ने जो किया है, वह वास्तव में अपने इलाके को स्वर्ग बनाने की दिशा में उठाया गया शानदार कदम है। गांव वालों ने हत्या के चार आरोपियों और उनके परिजनों के सामाजिक बहिष्कार का फैसला कर एक स्वागतयोग्य और अनुकरणीय फैसला किया है। वरना आम तौर पर होता यह है कि ज्यादातर लोग अपनी गली के बदमाश के साथ खड़े नजर आते हैं और साथ ही, यह भी चाहते हैं कि कोई बाहर वाला आए और बदमाश को हथकड़ी लगाकर घसीटते हुए ले जाए। ऐसे बाहर वालों के इंतजार में गलियां बदमाशों से अट जाती हैं। गांव-मुहल्ले, कस्बे, शहर में हर जगह आपराधिक ·किस्म के लोग दिन दूनी-रात चौगुनी तरक्की करते चले जाते हैं और हम लगातार शिकायत करते रहते हैं कि यह समय-समाज-दुनिया भले लोगों के रहने लायक नहीं रही। इस शिकायत से निकलकर हमें समाधान की ओर आना होगा और समाधान कायड़ गांव के लोगों ने बता दिया है। अपने देश-समाज में अपराधियों-असामाजिक तत्वों, महिलाओं से दुव्र्यवहार करने वालों, बलात्कारियों, अन्यायियों का बहिष्कार होना ही चाहिए। यदि हम इनका बहिष्कार नहीं करेंगे, तो समाज का परिष्कार नहीं होगा। कानून और जेल अपने आप में पर्याप्त नहीं हैं। किसी लोकतांत्रिक देश में सकारात्मक सामाजिकता अगर विकसित हो जाए, तो कानून और जेल की ज्यादा जरूरत ही नहीं पड़ेगी। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आज लोग बात-बात पर कानून हाथ में ले लेते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि उनका परिवार-समाज उनके साथ है, उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। लोगों और अपराधियों की यह भ्रांति टूटनी ही चाहिए। ऐसे तत्वों और उनसे जुड़े लोगों का बहिष्कार तभी खत्म होना चाहिए, जब समाज आश्वस्त हो जाए कि ये लोग फिर गलती नहीं दोहराएंगे। जिन अनगिनत पंचायतों-गांवों को प्रेमी जोड़ों और उनके परिजनों को निशाने पर लेते देखा गया है, उन्हें भी अपना लक्ष्य सुधारना चाहिए और अपराध-हीन समाज का सपना साकार करने की दिशा में बढऩा चाहिए।
गौर करने की बात है - पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों में कम अपराध होते हैं, थाना-पुलिस की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि वहां लोग सजग हैं। समाज से पहले परिजन ही दोषियों का बहिष्कार कर देते हैं। हर व्यक्ति इस बात को समझता है कि यदि उसने अपराध किया, तो उखाड़ फेंका जाएगा, अपने मां-बाप, समाज से बिछड़ जाएगा। जाहिर है - समाज जहां वास्तव में जागृत हैं, वहां अपराध के अंधेरे कम हैं। कायड़ गांव के लोगों ने सजग सामाजिकता का जो दीप जलाया है, उस ज्योत से ज्योत जलाते चले जाने की जरूरत है, तभी असामाजिकता के नाले-परनाले सूखेंगे और सच्ची-सहृदय सामाजिकता की पवित्र गंगा बह चलेगी।
(अजमेर राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित टिप्पणी)
गौर करने की बात है - पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों में कम अपराध होते हैं, थाना-पुलिस की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि वहां लोग सजग हैं। समाज से पहले परिजन ही दोषियों का बहिष्कार कर देते हैं। हर व्यक्ति इस बात को समझता है कि यदि उसने अपराध किया, तो उखाड़ फेंका जाएगा, अपने मां-बाप, समाज से बिछड़ जाएगा। जाहिर है - समाज जहां वास्तव में जागृत हैं, वहां अपराध के अंधेरे कम हैं। कायड़ गांव के लोगों ने सजग सामाजिकता का जो दीप जलाया है, उस ज्योत से ज्योत जलाते चले जाने की जरूरत है, तभी असामाजिकता के नाले-परनाले सूखेंगे और सच्ची-सहृदय सामाजिकता की पवित्र गंगा बह चलेगी।
(अजमेर राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित टिप्पणी)