Thursday, 8 March 2012

राहुल पर नहीं फूटने देंगे हार का ठीकरा!

उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजे आने के पहले 6 मार्च को पत्रिका में प्रकाशित टिप्पणी


एक्जिट पोल में ही नहीं, सट्टा बाजार में भी कांग्रेस के भाव कम लगाए गए। वो सपने शायद साकार नहीं होंगे, जो कांग्रेस ने देख रखे हैं। कांग्रेस विगत लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद से उत्तर प्रदेश से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगाए बैठी है। मतदान के खत्म होते ही कांग्रेसियों के माथे पर शिकन उभर आई है। कांग्रेस के महास्टार प्रचारक राहुल गांधी ने जिस कांग्रेस को बचाने के लिए अपना काफी कुछ दांव पर लगा दिया, वही कांग्रेस हार के आसार देखकर राहुल गांधी के बचाव में खुलकर उतर आई है। जो पार्टी को बचाने निकला था, अब उसी को बचाने की कवायद में पार्टी नेता अभी से जुट गए हैं। अभी भी 125 सीटों पर जीत का दावा कर रहे कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह घोषित हार से पहले ही हार की जिम्मेदारी लेने को तैयार बैठे हैं।

पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी भी आगे बढ़कर हार का ठीकरा अपने सिर फुड़वाना चाहती हैं। कम से कम चार साल की कड़ी मेहनत, 200 से ज्यादा रैलियां, भारी-भरकम कागजी और जमीनी तैयारियां, वोटरों को लुभाने की तरह-तरह की योजनाएं, कार्यक्रम, प्रदर्शन, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण, वादे और सपने! इतना सब करने के बावजूद ऎसा लग रहा है कि जिस तरह से बिहार में कांग्रेस को पिछड़ जाना पड़ा, उसी तरह से उत्तर प्रदेश में भी तीसरे या चौथे स्थान से ही संतोष करना पड़ेगा। राहुल के प्रयासों में कोई कमी नहीं है। केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा भी उत्तर प्रदेश में राहुल की मेहनत की सराहना करते नहीं थक रहे हैं। शायद अभी भी कांग्रेस यह महसूस नहीं करेगी कि यदि यूपी में मुख्यमंत्री पद के लिए राहुल गांधी का नाम पेश कर दिया जाता, तो कांग्रेस के आंकड़े रिकॉर्ड तोड़ देते। कांग्रेस बाईस सीटों से बढ़कर 200 से भी ज्यादा तक पहुंच जाती, लेकिन अब लगता है, कांग्रेस बाईस से बयासी तक पहुंच जाए, तो गनीमत है। मतलब साफ है, कांग्रेस राहुल गांधी और उनकी पूरी ऊर्जा को 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए बचाना चाहती है और उसे लग रहा है कि राहुल बचेंगे, तो पार्टी बचेगी।

हालांकि हमेशा की तरह उनकी प्रशंसा भी जारी है। बेनी प्रसाद वर्मा मानते हैं कि उत्तर प्रदेश मे आज तक किसी भी नेता ने राहुल गांधी जितने प्रयास नहीं किए। कांग्रेस नेता हरीश रावत भी राहुल गांधी का पूरा पक्ष ले रहे हैं। मतलब, यूपी में नतीजे चाहे जो हों, कांग्रेस में राहुल की पूछ-परख कतई कम न होगी। दिलचस्प बात यह है कि अगर कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन किया, तो जीत का श्रेय तत्काल राहुल की झोली में डाला दिया जाएगा और सामूहिक जिम्मेदारी के स्वर कम सुनाए पड़ेंगे। यही कांग्रेस की निष्ठावान संस्कृति है और कांग्रेस की ताकत भी। एक और बात, कांग्रेस का पिछड़ना राष्ट्रीय पार्टियों के लिए बुरा संकेत है, क्योंकि राहुल ने क्षेत्रीय पार्टियों की सरकारों को राज्य के पिछड़ेपन के लिए खुलकर जिम्मेदार ठहराया था। अगर लोग क्षेत्रीय पार्टियों पर भरोसा बरकरार रखते हैं, तो राहुल गांधी व कांग्रेस को अपनी पूरी रणनीति पर फिर विचार करना चाहिए।
- ज्ञानेश उपाध्याय