Tuesday 16 October, 2018

प्रशांत बाबू अब क्या करेंगे?

प्रसिद्ध चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर पिछले महीने जनता दल यूनाइटेड में शामिल हुए थे और उम्मीद के अनुरूप ही उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है। प्रशांत किशोर एक कुशल युवा हैं, जिनकी मदद नरेन्द्र मोदी ने भी प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में ली थी। वे २०१३-२०१४ में नरेन्द्र मोदी के मुख्य रणनीतिकार थे और फिर वर्ष २०१५ में वे नीतीश कुमार के रणनीतिकार बन गए। उनकी रणनीति से केन्द्र में भाजपा सत्ता में आई, तो अगले साल बिहार में हार गई और नीतीश-लालू सत्ता में आ गए। 
पहला स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है कि वह क्या रणनीति थी, जिसकी बदौलत नरेन्द्र मोदी सत्ता में आए थे। क्या जो बड़े-बड़े वादे किए गए थे, जो जुमले उछाले गए थे, उनके पीछे भी प्रशांत किशोर का हाथ था? बड़े-बड़े वादे करके सत्ता में आने की जिस रणनीति का खुलासा विगत दिनों गडकरी जी ने किया था, उसमें प्रशांत किशोर का कितना हाथ है? चूंकि प्रशांत किशोर राजनीति में आ गए हैं, तो ऐसे प्रश्न उनसे पूछे ही जाएंगे।
अब प्रश्न यह उठता है कि जनता दल यूनाइटेड में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद का क्या अर्थ है। क्या वे पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर अर्थात बिहार से बाहर दूसरे राज्यों में फैलाने का काम करेंगे? क्या पार्टी उनकी रणनीति की बदौलत दूसरे राज्यों में पैर जमा लेगी? बिहार में शराबबंदी, अपराधियों पर थोड़ी रोक और भ्रष्टाचार के विरुद्ध कुछ कदमों को छोड़ दीजिए, तो अभी भी विकास की वह रफ्तार नहीं है, जो युवाओं को पलायन से रोक सके। रोज हजारों युवा बिहार छोडऩे को मजबूर हैं और बिहार सरकार की नीति कहती है कि जो बिहारी बाहर चले गए हैं, उन्हें लौटने की कोई जरूरत नहीं है। बिहार को विकास करता हुआ, तभी माना जाएगा, जब वहां लोगों को समय पर तनख्वाह मिलने लगेगी, जब वहां से युवाओं को पलायन रुकेगा। 
अभी एक दिन पहले ही कुछ बिहारी युवाओं से बात हो रही थी, जो अहमदाबाद में काम करते हैं। उनके मन में एक डर है और असुरक्षा बोध भी। असुरक्षा बोध इस बात को लेकर भी है कि वे अगर बिहार लौट भी गए, तो आगे जीवन का क्या होगा? बिहार में ९-१० हजार की नौकरी भी नहीं मिलती। इतने ही रुपयों के लिए युवा अपनी जमीन से दूर कहीं जाकर मेहनत करते हैं। मार खाते हैं, अपशब्द झेलते हैं। क्यों? 
नीतीश कुमार तो सोच ही रहे होंगे, लेकिन अब प्रशांत किशोर को भी सोचना चाहिए कि बिहार में ऐसा कब तक होगा? लालू प्रसाद यादव या उनका परिवार बिहार के विकास का कोई मॉडल पेश करेगा, कहना मुश्किल है। नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर जैसे सुलझे हुए नेताओं से बिहारियों को उम्मीद है। उन्हें पैमाने पर खरा उतरना चाहिए। राजनीति में अच्छे लोग आएं, तो कामयाब होने की कोशिश भी करें। भ्रष्टाचार रुके, निवेश आमंत्रित किया जाए। सरकार अपराध को बिल्कुल रोके, ताकि निवेश सुरक्षित रहे और बढ़े। 
पता नहीं, अब कोई नीतीश कुमार को सुशासन बाबू बोलता है या नहीं? मजाक उड़ाने के लिए नहीं, बल्कि प्रेरित करते रहने के लिए भी उन्हें सुशासन बाबू बोलते रहना चाहिए, ताकि उन्हें याद रहे कि वे क्यों मुख्यमंत्री बनाए गए हैं। प्रशांत किशोर के पास एक अच्छा दिमाग है, वे उसे अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने के लिए इस्तेमाल करें, तो जरूरी नहीं कि सफलता मिल ही जाए। 
तो प्रशांत किशोर को ऐसा क्या करना होगा, जो नीतीश कुमार भी अभी तक नहीं कर पाए हैं। दरअसल, जरूरी है कि बिहार को एक ब्रांड बनाया जाए। उसके दामन पर लगे दाग मिटाए जाएं। बिहार को सशक्त बनाया जाए, बिहार को आदर्श राज्य बनाया जाए। नीतीश को मुख्यमंत्री के रूप में १२ से ज्यादा वर्ष मिल चुके हैं, रणनीति से १२ और वर्ष भी मिल जाएंगे, लेकिन बिहार कैसा होगा? क्या ऐसा बिहार कभी बनेगा, जो बाहर के राज्य के लोगों को भी खूब रोजगार देगा?  क्या ऐसा बिहार बनेगा, जहां से रोजगार के लिए कोई दुखी युवा पलायन नहीं करेगा? जहां कोई मां बाहर गए अपने बेटे के लिए नहीं रोएगी, जहां बेटा अपनी आंखों के सामने रहेगा? कम से कम ऐसे युवाओं को तो रोका जाए, जो अपना जिला-जवार छोड़ते हुए गमछा-रूमाल गीले कर देते हैं। कम से कम ऐसे किसी युवा को तो बाहर न जाना पड़े, जिस पर पूरा परिवार निर्भर है।
आखिर बिहार में इतने विरह गीत क्यों लिखे जाते हैं और कब तक लिखे जाएंगे? अकेली औरतें, माताएं, मजबूर पिता-दादा आखिर कब तक शहर की बाट जोहते रहेंगे? घर के लडक़ों को चंपारण, दरभंगा, छपरा, सिवान, आरा, पटना, गया, सुपौल, मोतीहारी जैसे शहरों में कब नौकरी मिलने लगेगी? बिहार की टे्रेनें कब तक मजदूरों को बाहर ले जाती रहेंगी? अब समय आना चाहिए, जब ये टे्रनें बाहर से मजदूर लेकर आएं। बिहार की मिट्टी को सब जानते हैं कि वह सोना उगल सकती है। जब वह सोना उगलने लगेगी, तो बिहार ब्रांड बन जाएगा, उस दिन नीतीश-प्रशांत की पार्टी अपने आप राष्ट्रीय पार्टी बन जाएगी। 

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