Monday 26 September, 2011

अपने दिल का ख्याल रखें



ह्रदय रोग को ध्यान में रखकर मेरे नेतृत्व में बनाया गया विशेष सन्डे जैकेट पेज,

हृदय रोग उपचार में कैसे हुई तरक्की

टाइम लाइन
• 1628 : अंग्रेज फिजिशियन विलियम हार्वी ने रक्त संचार को समझाया।
• 1706 : फ्रांसीसी एनाटोमी प्रोफेसर रेमण्ड डी वीयूसेंस ने पहली बार हार्ट चेम्बर्स और नसों के ढांचे का वर्णन किया।
• 1733 : अंग्रेज वैज्ञानिक स्टीफन हेल्स ने पहली बार रक्तचाप को मापा।
• 1816 : फ्रेंच फिजियोलॉजिस्ट टी. एच. लेन्नेक ने स्टेथोस्कोप का आविष्कार किया।
• 1903 : डच फिजियोलॉजिस्ट विल्लेम इनथोवेन ने इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ का विकास किया।
• 1912 : अमरीकी फिजिशियन जेम्स बी हेर्रिक ने बताया कि आर्टेरीज के हार्ड होने की वजह से हृदय रोग होता है।
• 1927 : पुर्तगीज फिजिशियन व न्यूरोलॉजिस्ट इगस मोनिज ने लिस्बन में सेरेब्रल (मस्तिष्कीय) एंजियोग्राम तकनीक को अंजाम देकर कोरोनरी (हृदय सम्बंधी) एंजियोग्राफी की आधारशिला रखी।
• 1929 : लिस्बन में ही रेनॉल्डो सिड डोस सेंटोस ने आर्टोग्राम का इस्तेमाल किया।
• 1938 : अमरीकी सर्जन रॉबर्ट ई. ग्रॉस ने पहली बार हार्ट सर्जरी की।
• 1951 : अमरीकी सर्जन चाल्र्स हफनेगल ने ऑर्टिक वाल्व को दुरुस्त करने के लिए प्लास्टिक वाल्व तैयार किया।
• 1951 : अमरीकी सर्जन एफ. जॉन लेविस ने ओपन हार्ट सर्जरी को अंजाम दिया।
• 1953 : सेल्डिंगर तकनीक की शुरुआत हुई, कैथेटर के जरिये हृदय के अंदर नसों को देखना संभव हुआ, एंजियोग्राफी पहले की तुलना में ज्यादा सुरक्षित व कारगर हुई।
• 1953 : अमरीकी सर्जन जॉन एच. गिबॉन ने पहली बार मैकेनिकल हार्ट और ब्लड प्यूरीफायर का उपयोग किया।
• 1960 : अमरीका में डॉक्टर रॉबर्ट गोएट्ज की टीम ने पहली सफल कोरोनरी आर्टरी बाइपास सर्जरी की
• 1961 : अमरीकी कार्डियोलॉजिस्ट जे.आर. जुडे ने हृदय को पुन: चलाने के लिए बाह्य हृदय मसाज करने वाली टीम का नेतृत्व किया।
• 1964 : इंटरवेंसनल रेडियोलॉजिस्ट चाल्र्स डोट्टेर ने एंजियोप्लास्टी को अंजाम दिया, उन्हें फादर ऑफ इंटरवेंसनल रेडियोलॉजी कहा जाता है।
• 1965 : अमरीकी सर्जन माइकल डीबेकेय और एड्रियन केन्ट्रोविट्ज ने बीमार हृदय के सहयोग के लिए मैकेनिकल डिवाइस का प्रत्यारोपण किया।
• 1967 : दक्षिण अफ्रीकी सर्जन करिस्टिआन बर्नार्ड ने एक व्यक्ति से लेकर दूसरे व्यक्ति में हृदय प्रत्यारोपित किया।
• 1968 : मेल्विन जुडकिन्स की मेहनत रंग लाई, हृदय धमनियों तक आसानी से पहुंचने में सक्षम कैथेटेर निर्मित होने लगे।
• 1977 : स्विस कार्डियोलॉजिस्ट एंड्रेस ग्रुएनजिग ने मरीज के होश में रहते हुए ही एंजियोप्लास्टी की।
• 1982 : अमरीकी सर्जन विल्लेम डे व्राइज ने स्थायी कृत्रिम हृदय प्रत्यारोपित किया इस हृदय को अमरीकी फिजिशियन रॉबर्ट जारविक ने डिजाइन किया था।
• 1986 : पहली बार हृदय में एंजियोप्लास्टी के जरिये सफलतापूर्वक स्टंट लगाया गया।

दिल है, तो जान है और जान है तो जहान है।

Thursday 22 September, 2011

अपने और अपनी किताब के बारे में कुछ शब्द


मेरी किताब के बारे में अनेक अख़बारों और पत्रिकाओं में शब्द प्रकाशित हुए हैं, उनमें श्रेष्ठ प्रकाशन प्रथम प्रवक्ता का रहा है। प्रकाशन तो काफी पहले हो गया था लेकिन संकोच के कारण पोस्ट नहीं कर रहा था, खैर आप भी देखिये, जाने माने पत्रकार और शायर श्री दिनेश ठाकुर जी ने यह टिप्पणी लिखी है, उनका ह्रदय से आभार। वैसे तो मैं हमेशा ही बहुतों को उपकृत करने की स्थिति में रहा हूँ लेकिन ऐसा कभी किया नहीं, इस मामले में मैं बहुत काम का आदमी नहीं हूँ. ऐसा बहुत सारे लोग भी मानेंगे. न कभी किसी को अनुचित रूप से उपकृत किया और न कभी स्वयं अनुचित रूप से उपकृत हुआ। पत्रकारिता के प्रति गहरी ईमानदारी रही है, पत्रकारिता पर विश्वास भी गहरा रहा है इसलिए कभी अनुचित लाभ नहीं उठाया। इसका नुक्सान जरूर रहा है, लेकिन मैं अपना तरीका नहीं बदलूँगा मेरी किताब मेरी कथनी नहीं बल्कि करनी का प्रतिफल है। उन तमाम मित्रों का आभार जो निःस्वार्थ भाव से मेरे साथ रहे हैं। अग्रज दिनेश ठाकुर जी की जितनी प्रसंशा की जाए कम है, मुझे लगा था कि मेरे जैसे किसे ब्यक्ति की किताब पर मेरे जैसा ही एक अग्रज लिखे, तो ईमानदारी ज्यादा सुनिश्चित होगी और वह हुई, आज भी हम दोनों के बीच न तो फालतू की बटरिंगबाजी है और न कोई सेटिंग, ऐसा ही बहुत कुछ है मेरे पास, जो पोलिटिकली गलत है, बाकी फिर कभी....

Wednesday 21 September, 2011

मेरी किताब पर राजेंद्र शेखर जी की टिप्पणी

मैंने आपकी पुस्तक बड़े चाव और चिंतन भाव से पढ़ी. आपकी भाषा सहज, एक बहती नदी के निरंतर प्रवाह के माफिक है और शैली आकर्षक और ज्ञान वर्धक है. पुस्तक केवल पत्रकारिता के ही लिए नहीं बल्की आकांक्षी लेखकों के लिए भी उपयोगी है. क्योंकी पत्रकार और लेखक का ध्येय एक ही है की रोचक और आकर्शंपूर्ण सामग्री से पाठक को प्रभावित करना. और यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है की पत्रकारिता और लेखन स्थाई छाप तभी छोड़ सकते हैं जब की वे बेलाग इरादों से और पूरी इमानदारी से अपना पक्ष पेश करें.
यह तथ्यात्मक सत्य है की जन तंत्र में खबर जनता के लिए होती है और अधिनायकवाद में सरकार के लिए. आपने इस विचार को सटीक तरीके से यूं उद्धृत किया है की पत्रकार का काम प्रसार करना है न की प्रचार. इसी सन्दर्भ में अन्ना प्रकरण से आहत सरकार ने पत्रकारिता पर नकेल डालने के उपाय सोचने शुरू कर दिए हैं.क्योंकी वह अपने पक्ष के प्रचार को ज्यादा महत्व देती है.
इस विषय में आपने गांधीजी का उद्धरण किया है. महात्मा लिखते हैं की बाहर से आया हुआ अंकुश , निरंकुशता से भी विषैला होता है; अंकुश तो अन्दर से ही लाभदायक है.
दुर्भाग्य वश बढ्ता हुआ व्यवसाय-केन्द्रित सोच, अनैतिक होड़ और २४गुना ७ के बेतहाशा दबाब ने पत्रकारिता अथवा इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर से यह अंकुश कमोवेशी गायब ही कर दिया है. जैसा की आपने बड़ी निर्भीकता और ठोस तरीके से कई स्थानों पर ज़िक्र किया है. प्रबंधन भी स्व-अस्तित्व बनाए रखने की फिराक में अंदरूनी अंकुश लगाने मैं संकुचित है. इलेक्ट्रोनिक मीडिया में तो यह बीमारी टी.आर. पी. और ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में नैतिकता को पीछे धकेल कर काले बादल की तरह परदे पर छा गयी है. जब की ये दोनों उबाने वाले नौटंकी के घिसे पिटे अविश्वनीय औजार बन गए हैं.
आपने आंकड़ों से हिन्दी भाषा में पत्रकारिता की लोकप्रियता में अभूतपूर्व बढ़ोतरी की भविष्यवाणी की है और में आप से सहमत हूँ. इस झुकाव का एक अहम कारण है हिन्दी का शब्दकोष दूसरी भाषाओं के अंतर्वाह, खासकर अंग्रेज़ी से. आपने भी अपनी पुस्तक में ऐसे आयातित शब्दों का उपयुक्त उपयोग किया है
जन तंत्र में व्यक्तिगत गोपनीयता का महत्व सर्वोपरी है। इस लिए पत्रकारिता खोजपूर्ण हो सकती है लेकिन इओस प्रयास में अनधिकृत घुसपैठ का वर्जित होना ज़रूरी है. आपने इस कमजोरी का कई स्थानों पर ज़िक्र किया है. पत्रकारिता का असली चेहरा आपने निर्भीकता से बेनकाब किया है. और न्यूज़ रूम तथा सम्पादकीय डेस्क का चित्रण अति इमानदारी और उपयोगी ढंग से किया है.,जिससे आशा की जा सकती है की आपके सहकर्मी और संचालक पत्रकारिता की शुचिता बनाए रखने के लिए ज़रूरी अहतियात बरतेंगे और उचित प्रकार से अंकुश लगाने को प्रेरित होंगे.
मेरी ओर से आपको सहर्ष शुभ कामनाएं इस आशा के साथ की आप भविष्य में भी रोचक और उपयोगी प्रसंग लिखते रहेंगे।
शुभेच्छ
(श्री राजेंद्र शेखर, पूर्व सीबीआई निदेशक व नॉट अ लाइसेंस टू किल जैसी पुस्तक के लेखक)