गोधरा कांड के बारे में अवकाशप्राप्त न्यायमूर्ति जी.टी. नानावटी आयोग की रिपोर्ट न केवल चौंकाती है, बल्कि कई सवाल भी खड़े करती है। आम भारतीय के नजरिये से देखिए, तो सितंबर 2004 में केन्द्रीय रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर यू.सी. बनर्जी आयोग गठित हुआ था और उसने अपनी जांच के बाद नवंबर 2005 में बताया था कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के बॉगी नंबर एस-6 का जलना एक हादसा था, इसमें किसी की साजिश नहीं थी। बनर्जी आयोग की रिपोर्ट साल भर में तैयार हो गई थी, लेकिन नानावटी आयोग ने छह साल तक जांच करने के बाद अपनी पहली रिपोर्ट दे दी है। एक आम भारतीय की नजर में बनर्जी आयोग भी सरकार द्वारा गठित था, नानावटी आयोग भी सरकार ने गठित किया और दोनों की रिपोटोüZ के नतीजे एक दूसरे के बिल्कुल खिलाफ आए हैं। अब जनता किस पर विश्वास करे? बनर्जी साहब सच बोल गए या नानावटी साहब सच बोल रहे हैं? दो-दो आयोगों की दो-दो रिपोटोüZ के बाद गोधरा कांड का सच कहीं भ्रम में खो चुका है। 27 फरवरी 2002 की रात गोधरा में 58 हिन्दू जलकर मरे थे, जिसमें 25 औरतें और 15 बच्चे शामिल थे। बनर्जी साहब ने कहा, ये लोग हादसे के शिकार हुए थे, जबकि नानावटी साहब नाम लेकर बता रहे हैं कि किन लोगों ने साजिश करके एस-6 बॉगी को आग के हवाले किया था।
बनर्जी आयोग की रिपोर्ट लालू तब लेकर सबके सामने आए थे, जब बिहार, हरियाणा, झारखंड इत्यादि राज्यों में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी थी। लेकिन लालू बनर्जी आयोग के दम पर बिहार में अपनी सत्ता नहीं बचा पाए। उधर, नरेन्द्र मोदी भी नानावटी आयोग की पहली रिपोर्ट गुजरात विधानसभा में लेकर तब आए हैं, जब कुछ राज्यों में चुनाव का माहौल गरमा रहा है। बताया जा रहा है, दिसंबर में अंतिम रिपोर्ट आएगी, तो क्या उसमें गुजरात सरकार को दंगों के सिलसिले में भी क्लीन चिट दी जाएगी? सच यह कि हमारी सरकारें राजनीति द्वारा संचालित होती हैं। चाहे सिख विरोधी दंगा हो या बाबरी विध्वंस या गुजरात दंगा, किसी भी दंगे का पूरा सच सामने नहीं आता। सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की, कोई फर्क नहीं पड़ता। सभी अपने दामन को पाक साबित करने की साजिश आयोगों की आड़ में करते नजर आते हैं। स्पष्ट नहीं होता, कौन आईना दिखा रहा है और कौन धूल झोंक रहा है। गोधरा कांड पर ही जो भ्रम तैयार हुआ है, उसके कारण दो आयोगों की रिपोर्ट के बावजूद तीसरे आयोग की जरूरत महसूस हो रही है, लेकिन हम आश्वस्त नहीं हो सकते कि वह तीसरा आयोग हमें पूरा सच दिखाएगा। हमारी व्यवस्था में तेरा आयोग मेरा आयोग का खेल सतत है। गोधरा कांड की जांच में भी हम तीन आयोग देख चुके हैं, सबसे पहले शाह आयोग बना था, लेकिन भाजपा से करीबी की वजह से अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति के.जी. शाह को जांच का काम छोड़ना पड़ा था।
यह आयोगबाजी क्या किसी राजनीतिक चालबाजी से कम है?
भगवत्स्मरण करें
3 months ago
No comments:
Post a Comment